20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
रामदत्त त्रिपाठी
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जन्म 17 जुलाई 1913
जन्म स्थान ग्राम बिरहर
निधन 24 जून 1984
स्थायी पता
ग्राम बिरहर, घाटमपुर

रामदत्त त्रिपाठी

देववाणी संस्कृत भाषा के उत्थान हेतु आचार्यप्रवर (स्व.) पंडित रामदत्त त्रिपाठी जी का योगदान अतुलनीय है। त्रिपाठी जी का जन्म ग्राम बिरहर, घाटमपुर, (कानपुर) में 17/जुलाई, 1913 को पंडित विश्वेश्वर दयाल त्रिपाठी के यहाँ हुआ था। आप बचपन से ही अत्यन्त सरल, सात्त्विक व तीव्र बुद्धि के थे। आपकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा प्राथमिक पाठशाला बिरहर में ही हुई। अनन्तर आपने उच्च शिक्षा में शास्त्री तथा आयुर्वेद में आचार्य की उपाधि जहानाबाद संस्कृत महाविद्यालय से प्राप्त की।

रामदत्त त्रिपाठी का विवाह (स्व.) श्रीमती सुन्दरबाई से हुआ, जो इटौरा (जनपद-जालौन) में अध्यापिका थीं। इनके दो पुत्र-1. (स्व.) श्री विद्याप्रकाश त्रिपाठी 2. श्री सुरेश चंद्र त्रिपाठी (सेवानिवृत्त अध्यापक व हिन्दी के प्रसिद्ध कवि, संस्कृत के अनेक ग्रन्थों का हिन्दी में पद्यानुवाद किया) तथा पुत्री-ज्ञानवती मिश्रा हुए। विवाहोपरांत आप इटौरा (जालौन) में ही आकर बस गए।

संस्कृत के समुत्थान हेतु अहर्निश प्रयत्नशील आपके मन में इटौरा में संस्कृत विद्यालय खोलने का शुभ संकल्प उदित हुआ। आपके सत्प्रयास से (लगभग सन् 1950 में) श्रीकृष्ण संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना हुई। उसी में आप प्राचार्य पद पर नियुक्त होकर संस्कृत शास्त्रों का प्रचार प्रसार करते हुए 1973 में कार्यमुक्त हुए।

आपकी गुरु-परम्परा तो अज्ञात है, किंतु शिष्य-परम्परा अत्यंत समृद्ध है। आपके शिष्यों में शिवबालक दीक्षित, सेवाराम (ग्राम परासन), रामावतार, ज्ञान सिंह क्षत्रिय, शिवबालक द्विवेदी (अध्यापक) आदि प्रमुख हैं।

श्री त्रिपाठी जी की विशेषता यह है कि आप  संस्कृत के आशुकवि थे। ज्योतिष वेदाङ्ग का आपको अद्भुत ज्ञान था। आप अत्यंत सात्विक व कीर्ति की अभिलाषा न रखने वाले थे। आप कर्मकाण्ड के क्षेत्र में अग्रगण्य थे, अनेक यज्ञों में आपने आचार्य पद का निर्वहण किया। हिंदी, संस्कृत के अतिरिक्त उर्दू भाषा का भी ज्ञान आपको अच्छा था।

संस्कृत भाषा के संवर्धन व सरलीकरण हेतु आपने निम्न पुस्तकों की रचना की- 1. सरल संस्कृत शिक्षा 2. हिंदी-संस्कृत व्याकरण (कालपी से प्रकाशित) 3. महालक्ष्मीव्रत कथा 4. हरितालिकाव्रत कथा 5. सत्यनारायणव्रत कथा (अप्रकाशित) 6. शुकसारिक संवादः (अप्रकाशित) आदि प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त आपने स्फुट पद्यों की रचना की थी। इस प्रकार  त्रिपाठी जी आजीवन संस्कृत सेवा में संलग्न रहे। 24 जून, 1984 को आपका देहावसान हो गया।