20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
महीधर स्वरूप ‘ब्रह्मचारी’
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जन्म 24 अप्रैल 1902
जन्म स्थान ग्राम विशेष खेरिया
स्थायी पता
ग्राम विशेष खेरिया हरदोई

महीधर स्वरूप ‘ब्रह्मचारी’

कहते हैं महापुरुष लोग अपने लिए ही नहीं जीते हैं, उनमें परोपकार-परसेवा की भावना बचपन से ही उत्प्रेरित करती रहती है। महीधर स्वरूप जी के विषय में यही बात सर्वविदित है। यायावर के रूप में ये आजन्म लोक-कल्याण कार्य में तल्लीन रहे। आपने भिक्षा-याचना तथा स्वतः की हरदोई स्थित पैतृक गृह को भी बेचकर श्री शिवसंकटहरण संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना में एवं उसके विकास में लगा दिया। अंग्रेजों की सरकार में कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए एक ऐसे रसीले अमृत फलवृक्ष की 1932 ई. में नींव रखी जो न जाने कितने संकृतज्ञों का आश्रय स्थल बनी और जहां से अध्ययन कर संस्कृत के बहुजनों ने संस्कृत क्षेत्र में अपना नाम रोशन किया।

लखनऊ से दिल्ली रेलमार्ग पर बेहता गोकुल नामक रेलवे स्टेशन से उत्तर सटा हुआ एक ग्राम विशेष खेरिया है, जहां पर पं. श्री लालमार्क पाण्डेय के घर में श्रीमती लक्ष्मी देवी ने एक कुलदीपक सुपुत्र को 24 अप्रैल, 1902 ई. को जन्म दिया जिनका नाम ‘महीधर’ रखा गया। सम्भवतः संस्कृत साहित्य में इस नाम के एक उत्कृष्ट संस्कृत के विद्वान् हुए हैं जिनके नाम के प्रभाव से इसमें भी वाग्देवी संस्कृत के प्रति अत्यधिक रुचि रही है क्योंकि कहते हैं-यथा नाम तथा गुणः। आपने आरम्भिक शिक्षा शिरोमणि नगर से परम्परागत रूप में प्राप्त कर शास्त्री एवं आचार्य की शिक्षा वाराणसी संस्कृत विश्वविद्यालय से प्राप्त किया था। आप संस्कृत सेवा में आजीवन लगे रहे।

इनका विवाह 1924 ई. में हुआ। इनके पुत्र स्व. श्याम सुन्दर पाण्डेय के पौत्र शिवदेव पाण्डेय तथा इनके पुत्र नीरज कुमार पाण्डेय अपने गृहस्थ जीवन का विधिवत् निर्वाह कर रहे हैं।

श्री शिव संकटहरण महाविद्यालय सत्तर और अस्सी के दशक में अपनी उत्कृष्ट संस्कृत सेवा के लिए विश्वविद्यालय में ख्यात रहा। यहां पर एक से एक योग्य संस्कृताचार्य संस्कृत की सेवा देते रहे। छात्रावासों की अच्छी व्यवस्ज्ञा रही। इन्हीं महीधर के नाम पर महाविद्यालय से संस्कृत पत्रिका प्रकाशित की जाती है जिसका नाम ‘महीधर प्रभा’ है।