20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
गोस्वामी बलभद्र प्रसाद शास्त्री
जन्म स्थान ग्राम सकाहा
स्थायी पता
14 अशोक नगर, नैनीताल रोड, बरेली

गोस्वामी बलभद्र प्रसाद शास्त्री

वाणी संस्कृत के सहृदय कवि गोस्वामी डॉ. बलभ्रद प्रसाद शास्त्री का जन्म हरदोई जिले के सकाहा नामक ग्राम में हुआ। इनके पिता जी का नाम गोविन्द गोस्वामी तथा माता जी का नाम महादेवी था जो स्वभाव से अत्यन्त सरल सौम्य नारी थीं। डॉ. बलभद्र प्रसाद जी ने स्वयं ‘भागीरथीदर्शनम्’ नामक महाकाव्य में अपना विस्तृत जीवन परिचय देते हुए लिखा है-

समन्तात् ग्रामश्री सृजित रमणीये परिसरे।

सकाहा ग्रामेऽस्मिन् समभजनि कविः पावनकुले।

गुणाढ्यो गोविन्दोऽभवदपि पिता दिव्यचरितो

महादेवी माता सहज शुचि नात्यल्प हृदया।। भागीरथीदर्शनम् 3/23

बाल्यकाल में ही माँ का अवसान हो गया। पिता गोविन्द ने ही इनकी शिक्षा दीक्षा का समुचित ध्यान दिया। गाँव के ही चर्चित संस्कृत शिव संकट हरण संस्कृत महाविद्यालय सकाहा से ही इनकी शिक्षा का श्री गणेश पारम्परिक संस्कृत शिक्षा से ही हुआ। बाल्यकाल से ही ये कुशाग्र बुद्धिसम्पन्न बालक थे। शास्त्री आचार्य की शिक्षा संम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण करने के बाद विलग्राम स्थित बी.जी.आर. इण्टर कालेज में संस्कृत शिक्षक के रूप में नियुक्त होकर लगभग 12 वर्षों तक संस्कृत का अध्यापन कार्य करते रहे। किन्तु आप का मन गवर्नमेन्ट सेवा में जाने के लिए इच्छुक रहा। अतः 1961 ई. में उत्तर प्रदेशीय सामुदायिक विकास सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण कर आप खण्ड विकास अधिकारी बन गये। 26 वर्षों तक इस सेवा में रहकर आपने अपने कर्त्तव्य को निष्ठापूर्वक निभाया। किन्तु सहृदय कवि हृदय आप की लेखनी अबाध गति से चलती रही जिसके परिणाम स्वरूप संस्कृत साहित्य को कई ग्रन्थों से समृद्ध किया। अवकाश प्राप्ति के बाद आपने 14 अशोक नगर, नैनीताल रोड, बरेली में अपना निवास स्थान बनाया है।

डॉ. बलभद्र प्रसाद गोस्वामी जी ने कई ग्रन्थों का संस्कृत में सृजन किया है। इनमें तीन प्रमुख महाकाव्य चर्चित हैं-

(1) नेहरूयश: सौरभम् (महाकाव्य)

(2) भागीरथीदर्शनम् (महाकाव्य)

(3) इन्दिराजीवनम् (महाकाव्य)

(4) सतीशंकरम् (महाकाव्य)।

इसके अतिरिक्त चक्रव्यूहम्, ज्योतिष्मती स्तुति, यौतुकम् दशमग्रह: (एकांकी नाटक) सेतुबन्धनम् (नाटक) कर्णाभिजात्यम् (नाटक) दूताञ्जनेयम् जिसका विमोचन राज्यपाल महामहिम शंकर दयाल शर्मा के हाथों किया गया। ‘लिङ्ग महापुराण का समीक्षात्मक अध्ययन’ आपका शोध ग्रन्थ है जिस पर डॉक्टरेट की उपाधि से भूषित किया गया।

नेहरूयशः सौरभम्-द्वादश सर्गों में ग्रथित यह गोस्वामी बलभद्र जी का प्रथम महाकाव्य ग्रन्थ है जिसे इन्होंने 580 श्लोकों में निबद्ध किया है। प्रारंभ के कथामुखम् शीर्षक में 22 श्लोकों में कवि परिचय और सबसे अन्त में छः श्लोकों में कुल 282 श्लोक लिखे गये हैं। इस महाकाव्य को सन् 1975 ई. में कवि ने स्वयं अपने संसाधनों से प्रकाशित कराया था। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के चरित्र पर संस्कृत में रचा गया यह महाकाव्य अन्य कृतियों से अद्वितीय है। महाकाव्य के लक्षणों पर आधृत कवि बलभद्र जी की समर्थ लेखनी काव्य शोभा को बढ़ाते हुए दिखाई देती है। इस महाकाव्य में कवि ने स्थान स्थान पर पं नेहरू के जीवन वैशिष्ट्य को बड़ी कुशलता से आरेखित किया है। उनके जीवन दर्शन को भी उन्होंने कुशलता से चित्रित किया है। इसके साथ ही साथ प्रसंगवशात् भारत वर्ष जन्म भूमि, यहाँ के जन जीवन तथा भारतीय जनता जनार्दन का वर्णन करते हुए अपने भावों को बड़ी सहजता से चित्रित किया है।

इन्दिराजीवनम् (महाकाव्य) -डॉ. बलभद्र प्रसाद शास्त्री ने इस महाकाव्य में प्रधानमन्त्री इन्द्रिरा गाँधी तथा उनके पुत्र प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के चरित्र को तथा दोनों के ही बलिदान को बड़े ही सरल एवं मनोहर भावों द्वारा काव्य तत्त्वों के आलोक में आलोकित करने का सफल प्रयास किया है। यह महाकाव्य 19 सर्गों में बद्ध है तथा इसमें कुल 717 श्लोक मिलते हैं। इनमें सर्गों का नामकरण इस प्रकार किया गया है-(1) इन्दिरा शैशवम् (2) प्रधान मन्त्री पदग्रहणम् (3) युद्धे भागिता न पराजयम् (4) प्रभामण्डल वर्णनम् (5) युवक आन्दोलनम् (6) आपातकाल वर्णनम् (7)  संजय निधनम् (8) मेनकाचरितवर्णनम (9) राजीव राजनीतिप्रवेशवर्णनम् (10) पंजाबहिंसावर्णनम् धर्मदर्शनवर्णनं च (11) आतंकहिंसा परित्यागाय सत्पुरुषाणां धर्माेपदेशवर्णनम् (12) इन्दिराविशसनवर्णनम् (13) इन्दिरा श्रद्धाञ्जलिः (14-15) राजीव चरित्रम् (17) लोकसभाया काग्रेस राज्यरूप पराभव वर्णनम् (14) विश्वनाथसिंह चन्द्रशेखरयोः शालाय पतनकारणम् (18) विस्फोट द्वारा राजीव गाँधेः निधनवर्णनम्।

इस सम्पूर्ण महाकाव्य में डॉ. बलभद्र जी का साहित्यिक कला कौशल सुस्पष्ट रूप में सदृश्य पाठकों को प्रभावित करता है।

भागीरथीदर्शनम् (महाकाव्यम्): डॉ. बलभद्र शास्री ने इसे परम्परा से हट कर सर्गों में न विभक्त करके तरंगों में आबद्ध किया है। इसमें इन्होंने अपने जीवन परिचय को कुछ श्लोकों में व्यक्त किया है। जैसा कि चारों ओर से ग्राम लक्ष्मी द्वारा सृजित रमणीय ग्राम्य परिसर सम्पन्न उस सकाहा नामक ग्राम में कवि ने पवित्र कुल में जन्म लिया। दिव्य चरित्र सम्पन्न गुणवान गोविन्द इनके पिता थे और सहज शुचि वात्सल्य रस से पूर्ण हृदय वाली महादेवी इनकी माता थीं। इसी में अपने बचपन के स्मृतियों को ताजा करते हुए लिखा है-हरी भरी घनी फसलों से भरे खेतों में घूमते हुए, आम के बागों में अनेक रसीले खट्टे मीठे रसों को पीते हुए, धूल और कीचड़ भरी गाँव की टेढ़ी मेढ़ी गलियों में घूमते हुए तथा पेड़ों की छाया में खेलते हुए इनका नव बाल्य व्यतीत हो गया। दुर्भाग्य से दैव ने कवि के सहज पवित्र वात्सल्य से सरस माँ की गोद के स्नेहिल सुख को छीन लिया। माता के निधन के पश्चात् विवश और असहाय होते हुए भी पिता के स्नेह से निरन्तर पोषित शरीर वाले उस कवि ने अमर वाणी संस्कृत का श्रम के साथ गुरु के पास बैठकर अध्ययन किया और विल्ग्राम में शिक्षक के पद पर अध्यापन कार्य किया।

गंगावतरणम् नामक प्रथम तरंग में इन्होंने गंगा तथा उसके जल के महत्त्व को सुन्दर रूप में अभिव्यक्त किया है। दूसरे तरंग में शान्तनु के चरित्र को तथा गंगा के पवित्र तीर्थ स्थलों को जैसे-गढ़मुक्तेश्वर, अहरतीर्थ, अनूप शहर, हरिबाबा आश्रम नरौया, सोरों क्षेत्र कपिल मुनि आश्रम, शृंर्गापुर हरदोई जो कि सर्वाधिक पावन है (जनपद की भूमि) ग्राम विलग्राम आदि का प्रमुख वर्णन इन्होंने किया है। चतुर्थ तरंग में कान्यकुब्ज क्षेत्र का, सप्तम तरंग में बिहार तथा अष्टम तरंग में सगर के पुत्रों का वर्णन तथा उनका समुद्धार है। नवम तरंग में पर्यावरण तथा प्रदूषण आदि से उत्पन्न होने वाले दोषों का वर्णन है। नवम तथा दशम तरंग में माँ भागीरथी गंगा से लोक कल्याण की याचना की गयी है। चक्रव्यूहम् , दूतांजनेयम् भी कवि की प्रौढ़ रचनाएँ हैं। उ.प्र. के राज्यपाल द्वारा दूताञ्जनेयम् का विमोचन किया जाना इसके महत्त्व को दर्शाता है। सेतुबन्धनम् तथा कर्णाभिजात्यम् नाटक भी कवि के कुशलता कर्म को अभिव्यक्त करते हैं। यौ तुकम् दशमग्रहः (एकांकी नाटक) वर्तमान में स्थित दहेज प्रथा पर करारी चोट करता है। सारांशतः देखा जाय तो गोस्वामी डॉ. बलभद्र जी सदी के कुशल और प्रौढ़ सुकवि हैं।