20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
सुधाकर शुक्ल
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जन्म 27 अगस्त 1920
जन्म स्थान ग्राम क्योंटरा
निधन 21 नवम्बर 1885
स्थायी पता
कवि कुलाय दतिया मध्य प्रदेश

सुधाकर शुक्ल

औरैया जनपद की स्वीकृति साहित्यिक दृष्टि से अत्यन्त उर्वरा भूमि के रूप में सम्पूर्ण देश में है। यहाँ राजर्षि राजेन्द्र देवसिंह सेंगर एवं डॉ. विश्वम्भर नाथ उपाध्याय जैसे हिन्दी के कविमनीषियों का जन्म हुआ तो मौलवी मुस्तफा खाँ मद्दाह अहमक ‘फफूँदवी’ जैसे उर्दू के विश्वस्तरीय साहित्यकारों का भी जन्म हुआ।

संस्कृत की साहित्यिक परम्परा में आचार्यप्रवर सुधाकर शुक्ल जी को उनके काव्य कौशल एवं विद्वत्ता के लिए संस्कृत जगत् में जाना जाता है।

महापण्डित सुधाकर शुक्ल जी का जन्म उत्तर प्रदेश प्रान्त के अविभाजित इटावा (वर्तमान-औरैया) जनपद के अन्तर्गत छोटी काशी के नाम से विख्यात क्योंटरा नामक ग्राम में 27 अगस्त, 1920 में एक प्रतिष्ठित कान्यकुब्ज परिवार में हुआ था। आपके पिता का नाम पण्डित रघुवंशी लाल एवं माता का नाम श्रीमती जनक दुलारी था। एक स्थान पर वे स्वयं लिखते हैं-

कान्यकुब्जकुले जातः कालिन्दीकूलकेलिकृत।

अलका तिलका काव्यं साधयामि सुधाकरः।।

इसी प्रकार वे अपने ग्रन्थ ‘कसक’ में आत्म परिचय के अन्तर्गत लिखते है-

‘जो बहुजन मज्जन लहरिजन हरिरुचि रुधिर उधारी।

उस कलित कलिन्दी कुटिल पुलिन पर विलसति अलका प्यारी

द्विजवर रघुवंशी लाल जननि जहँ जननी जनक दुलारी

सुत सुकुल सुधाकर कविकुल कोकिल कलित कुलाय बिहारी।।’’

इनके पितामह का नाम पं सूर्यप्रसाद शुक्ल था।

पं. सुधाकर शुक्ल जी का जन्म सुसंस्कृत विद्वान् परिवार में हुआ था। आपके पितामह पं. सूर्य प्रसाद जी पाणिनीय व्याकरण एवं तंत्र विद्या में निष्णात थे तथा पिता पं. रघुवंशी लाल श्रीमद्भागवत के उच्च कोटि के प्रवक्ता।

आपकी प्रारम्भिक शिक्षा पैतृक ग्राम क्योंटरा में ही सम्पन्न हुई, पारिवारिक परिवेश का बहुत अच्छा प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा। अतः संस्कृत के प्रति प्रेम की भावना बचपन से ही उनके हृदय में पनपने लगी। श्री ब्रह्म संस्कृत विद्यालय क्योंटरा से उन्होंने पूर्व मध्यमा एवं उत्तर मध्यमा की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं, तदनन्तर उच्च शिक्षा हेतु उन्होंने श्री संस्कृत कालेज (महाविद्यालय) औरैया में प्रवेश लिया एवं विभिन्न परीक्षाएँ उच्चतम अंकों से उत्तीर्ण कीं। वे आधुनिक शिक्षा के प्रति भी सजग रहे। अतः उन्होंने 1946 में टीकमगढ़ से हाईस्कूल एवं अजमेर बोर्ड से इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। आगरा विश्वविद्यालय से उन्होंने बी.ए. एवं एम.ए. संस्कृत की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं तदपि वे शिक्षा से विरत नहीं हुए और आजीवन अध्ययनशील बने रहे। 19 जुलाई, 1941 से रेजीडेन्शल कॉलेज, नैनीताल में उन्होंने अपना अध्यापकीय जीवन प्रारम्भ किया। अध्यापन काल में उनका टीकमगढ़, दतिया इण्टर कालेज, मल्टी परपज, हायर सेकेण्ड्री स्कूल, जगदलपुर, गवर्नमेण्ट हायर सेकेण्ड्री स्कूल थरेट, जिला दतिया, बसई एवं दतिया हायर सेकेण्ड्री में स्थानान्तरण हुआ। अन्ततः वे दतिया महाविद्यालय में संस्कृत के व्याख्याता पद पर नियुक्त कर दिए गए।

तत्पश्चात् उन्हें वहीं पर प्राचार्य नियुक्त कर दिया गया। 22 दिसम्बर 1972 को उन्होंने सेवा से अवकाश प्राप्त कर लिया। निरन्तर शिक्षण एवं साहित्य सेवा करते हुए 21 नवम्बर 1985 को वे स्वर्ग सिधार गए। आपके तीन पुत्र एवं भरा पूरा परिवार अब कवि कुलाय दतिया मध्य प्रदेश में निवास कर रहा है।

महाकवि सुधाकर शुक्ल जी का कृतित्व अत्यन्त विस्तृत है उनके ग्रन्थ एवं प्रकाशन स्थान निम्नवत् हैं-

1. गान्धीसौगन्धिकम्-यह संस्कृत भाषा में लिखा हुआ उच्च कोटि का महाकाव्य है, इसमें बीस सर्ग हैं। अखिल भारतीय संस्कृत साहित्य सम्मेलन पटना अधिवेशन में इस महाकाव्य लेखन हेतु सुकवि सुधाकर जी को प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया।

2. भारतीस्वयंवरम्-यह संस्कृत का अनूठा महाकाव्य है जिसे द्वादश सर्गों में निबद्ध किया गया है।

3. देवदूतम्-यह संस्कृत में लिखा गया उच्च कोटि का खण्ड काव्य है।

4. दुर्गादेवनम्-यह संस्कृत भाषा में लिखा हुआ उत्कृष्ट स्तोत्र है।

5. यह केलिकलश-देव वाणी में लिखा हुआ उच्चकोटि का खण्ड काव्य है।

6. चन्द्रवाला-यह हिन्दी में लिखा उच्चकोटि का महाकाव्य है जिसमें बीस सर्ग हैं।

7. किरनदूत-उत्कृष्ट हिन्दी खण्ड काव्य किरनदूत मध्य प्रदेश शासन से लाल पुरस्कार से पुरस्कृत है।

8. यह कसक-हिन्दी का श्रेष्ठ खण्डकाव्य है जो विन्ध्याचल प्रदेश शासन से ईसुरी पुरस्कार प्राप्त है।

9. यह लवंगलता-उत्कृष्ट नाटक है जो हिन्दी में लिखा हुआ है इसमें दश अंक हैं।

10. यह मेघ सुधर-यह महाकवि कालिदास कृत मेघदूतम् का हिन्दी पद्यानुवाद है। इसमें सुकवि शुक्ल जी के काव्य कौशल एवं भाषा कौशल के दर्शन होते हैं।

11. छान्दोऽलंकार सुधाकर-यह पद्यबद्ध छन्द एवं अलंकार व रसों का परिलक्षण ग्रन्थ है।

12. शब्द सुधाकर-यह अनूठा शब्दकोश है जिसमें पद्यबद्धता सर्वत्र परिलक्षित होती है।

13. श्रीस्वामिचरित चिन्तामणि-यह सुकवि सुधाकर शुक्ल जी का ख्यातिलब्ध महाकाव्य है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि आचार्य प्रवर सुधाकर शक्ल जी न केवल संस्कृत के बल्कि हिन्दी के भी उत्कृष्ट कवि हैं, जिन्होंने अपने काव्य कौशल से समूचे औरैया जनपद को साहित्याकाश में ध्रुव तारे की भाँति स्थापित किया है।