20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
छोटे लाल त्रिपाठी
क्या आपके पास चित्र उपलब्ध है?
कृपया upsanskritsansthanam@yahoo.com पर भेजें

जन्म स्थान बैहनटोला औरैया
उपनाम प्रज्ञाचक्षु
स्थायी पता
औरैया

छोटे लाल त्रिपाठी

औरैया जनपद की संस्कृत विद्वत् परम्परा में एक महत्त्वपूर्ण नाम पंडित श्री छोटे लाल त्रिपाठी ‘प्रज्ञाचक्षु’ जी का है। आपका जन्म बैहनटोला औरैया में सन् 1901 में हुआ था। आपके पिता का नाम पं. कालीचरण त्रिपाठी था जो अपने समय के उद्भट विद्वान् माने जाते थे। आपने श्री संस्कृत महाविद्यालय औरैया से साहित्याचार्य की उपाधि प्राप्त की और कालान्तर में उक्त महाविद्यालय में ही साहित्य विभागाध्यक्ष पद पर नियुक्त हो गए। आपकी पत्नी श्रीमती फूलमती त्रिपाठी तथा पुत्र प्रताप नारायण त्रिपाठी ‘वैद्यराज’, सच्चिदानन्द त्रिपाठी, एवं गोविन्द प्रसाद त्रिपाठी थे। आपकी एक पुत्री जगदम्बा थी। हिन्दी एवं संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित छोटे लाल जी ने दो पुस्तकों का प्रणयन संस्कृत भाषा में किया- ‘ऋजुकौमुदी’ एवं ‘इन्दिराशतकम्’ किन्तु किन्हीं कारणों से ये अद्यतन अप्रकाशित ही हैं।

‘इन्दिराशतकम्’ अप्राप्त है। प्रकाशनार्थ प्रदान किये जाने की स्थिति में कहीं लुप्त हो गयी। ‘ऋजुकौमुदी’ लघुसिद्धान्तकौमुदी की शैली का नामानुरूप (ऋजु = सीधा = सरल) ग्रन्थ है जिसका सृजन विद्यार्थियों को सरल व्याकरण ज्ञान कराने के निमित्त किया गया। इसकी पाण्डुलिपि उपलब्ध है।

सहस्राधिक विद्यार्थियों को संस्कृत भाषा में निष्णात करने वाले प्रज्ञाचक्षु जी को सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी में शासन द्वारा सीनेट नियुक्त किया गया। आपकी गुरु परम्परा में पं. ऋषिनाथ त्रिवेदी, पं चन्द्रशेखर आदि उल्लेखनीय हैं।

यद्यपि ये प्रज्ञाचक्षु थे तथापि कवित्व के संस्कार विद्यमान रहने के कारण किसी भी विषय पर त्वरित रूप से काव्य सृजन की क्षमता से संयुत थे अर्थात् ये आशुकवि थे।

इनके सेवा काल के समय इस प्रकार की संस्थाओं की उपजीव्यता शासनाधारित नहीं थी। अर्थात् शासन से किसी प्रकार का अनुदान प्राप्त नहीं होता था, मात्र सामाजिक संस्थाओं की कृपा या समाज पर अवलंबित थीं। अस्तु, जब तक शिक्षक क्षमतायुक्त रहता था तब तक प्राध्यापनरत रहने की व्यवस्था थी।

ये संस्कृत महाविद्यालय औरैया के प्रारंभिक 5 छात्रों में से एक थे। अर्थाभाव के कारण वह अध्ययनार्थ देवबंद स्थित संस्कृत महाविद्यालय चले गए थे। कालान्तर में पुनः औरैया लौटकर यहीं शिक्षण कार्य करते हुए शास्त्री एवं आचार्य की उपाधियाँ प्राप्त कीं। सम्प्रति उनके प्रधान शिष्य श्री राधाकान्त पाण्डेय वृद्धावस्था की स्थिति में औरैया में ही निवासरत हैं।

वे नारी शिक्षा एवं सशक्तीकरण के प्रबल पक्षधर थे। अनेक बालिकाओं ने भी उनके सान्निध्य में साहित्याचार्य की उपाधियाँ प्राप्त कीं। कहा जाता है कि प्रज्ञाचक्षु जी के अनेक शिष्यों ने स्वतंत्रतान्दोलन में मुखर रूप से भागीदारी की।

निरन्तर साहित्य एवं संस्कृत के प्रति समर्पित रहने वाले श्री छोटेलाल त्रिपाठी प्रज्ञाचक्षु जी सन् 1989 में गोलोकवासी हो गए।