20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
डॉ. राम सुमेर यादव
जन्म 13 दिसंबर 1958
जन्म स्थान ग्राम बरौंहा
स्थायी पता
ग्राम बरौंहा , जनपद फतेहपुर

डॉ. राम सुमेर यादव

फतेहपुर जनपद के बरौंहा नामक ग्राम में 13 दिसम्बर सन् - उन्नीस सौ अट्ठावन  (13-12-1958) में श्री राम सुमेर यादव जी कि जन्म हुआ । इनके पिता श्री सूरजदीन यादव व माता श्रीमती कैलासा देवी थीं । श्री राम सुमेर जी का विवाह वर्ष 1991 में श्रीमती ममता यादव के साथ हुआ था । वह भी दिल्ली गवर्नमेंट में राजकीय सर्वोदय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय द्वारका नई दिल्ली में हिन्दी प्राध्यापिका के पद पर कार्य कर रही हैं । इनके राम समेर जी ने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से साहित्य विषय लेकर आचार्य की उपाधि प्राप्त की ‌। इसके पश्चात् हेमवती नन्दन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल से संस्कृत में एम.ए. तथा अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद से हिन्दी में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की । राजकीय रचनात्मक प्रशिक्षण महाविद्यालय से एल० टी० की प्रशिक्षण उपाधि व राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान प्रयाग परिसर (गंगानाथ झा केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ) से विद्यावारिधि (पी.एच.डी.) की उपाधि प्राप्त की ।

लोक सेवा आयोग उ०प्र० इलाहाबाद द्वारा चयन हो जाने के उपरान्त 08.01.1999  से 18.10.2006 पर्यन्त राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी में प्रवक्ता तथा वरिष्ठ प्रवक्ता पद पर कार्यरत रहे । लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ में 19.10.2006 को रीडर पद पर संस्कृत विभाग में नियुक्त हुये । पुन: प्रोफेसर व विभागाध्यक्ष पद को अलङ्कृत करते व प्रशासनिक कार्य सम्पन्न करते हुये जून 2021 में सेवानिवृत्त हो गये ।

डॉ. यादव जी ने अनेक राष्ट्रीय तथा अन्ताराष्ट्रीय संगोष्ठियों, सम्मेलनों में भाग लेते हुये सौ से अधिक शोधपत्रों का वाचन किया । अनेक बार आकाशवाणी (इलाहाबाद, लखनऊ, नजीबाबाद) से संस्कृत वार्ताओं एवं गीतों का प्रसारण किया गया । इनके निर्देशन में दस शोधच्छात्रों को पी.एच.डी. की उपाधि व बीस शोधच्छात्रों को एम.फिल. की डिग्री प्राप्त हुयी है । विभिन्न संस्थाओं एवं विश्वविद्यालयों के सदस्य पद पर रहते हुये, विविध सम्मेलनों, सेमिनारों, कवि सम्मेलनों में मञ्च एवं सत्र सञ्चालन, व्याख्यान, अध्यक्षत्त्व का निर्वहन कर रहे हैं । डॉ यादव के 125 से अधिक लेख विभिन्न संस्कृत पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं । जैसे - संस्कृते संस्कृति: (संस्कृतामृतम् अक्टूबर 1994), सचिन: भारते धन्य: (भारतोदय: - सितंबर, 1999), उपनिषत्स्वोंकार: (पारिजातम् - जुलाई 2000), वैदिक साहित्ये पर्यावरण विज्ञानस्यावधारणा (संस्कृत वाङ्मयी - लखनऊ विश्वविद्यालय, अंक IV, वर्ष 2014), वेदेषु वर्णिताया: शल्यचिकित्साया: वैज्ञानिकं विश्लेषणम् (हरिप्रभा, हरियाणा सं० अकादमी, वर्ष 16, अंक 5-6, मई-जून 2019) इत्यादि ।

रचनाएँ-

श्री यादव जी ने संस्कृत-हिन्दी कविताओं, शोध पत्रों व लेखों के अतिरिक्त अनेक पुस्तकों का भी प्रणयन किया है, जिनका विवरण निम्नलिखित है -

1. इन्दिरा सौरभम् - पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी के जीवन चरित्र के विषय में 105 पदों में संगुम्फित यह संस्कृत खंडकाव्य है । यह काव्य वर्ष 2005 में अलंकार प्रकाशन जयपुर से प्रकाशित है ।

2. राघवाभ्युदयस्य समीक्षात्मकमध्ययनं सम्पादनञ्च - यह लेखक का शोध प्रबंध है । श्री भगवंतराय मखि प्रणीत यह प्रकाशित नाटक था । जिसका समीक्षण व सम्पादन किया गया है । इस सप्ताङ्क नाटक में मातृकालय का संकलन करके पाठ भेद के अनन्तर विवेकपूर्ण समीक्षा की गई है । यह नाटक राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान नई दिल्ली द्वारा प्राप्त वित्तीय सहायता से प्रकाशित है ।

3. वज्रमणि: - 30 अध्याय से युक्त रामकथाश्रित इस संस्कृत उपन्यास में रावण की बहन वज्रमणि (शूर्पणखा) को अभिलक्षित कर प्रमुखता से वर्णन किया गया है। यद्यपि इसकी कथा रामायण की उपजीविका स्वीकार करती है, किंतु कथा की सुख सुविधा हेतु कहीं-कहीं पर नवीन उद्भावना भी की गई है । इसका अंग्रेजी अनुवाद प्रोफेसर एस. रंगनाथन तथा हिन्दी अनुवाद श्री देवकीनंदन श्रीवास्तव द्वारा किया गया है । यह संस्कृत उपन्यास परिमल प्रकाशन दिल्ली से वर्ष 2011 में प्रकाशित है ।

4. कबीरवचनामृतम् - इस काव्य में सन्त श्री कबीरदास जी की 300 साखियों का शास्त्रीय छन्दों में संस्कृत अनुवाद किया गया है जैसे -

जब मैं था तब हरि नही अब हरि है मैं नाहीं ।

सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माही ॥

इसका संस्कृत अनुवाद -  अहं भावे हरिर्नास्ति अहंकारे गते हरि: ।

अज्ञानतिमिरो नष्ट: ज्ञानदीपप्रदर्शनात् ॥

इनके अतिरिक्त, अलंकार शास्त्रिणामितिहास: (विरच्यमाण), संस्कृत वाङ्मय में नीति तत्त्व विमर्श (परावाक् पब्लिशिंग हाउस वाराणसी से 2019 में प्रकाशित), सुभाषितरत्नभाण्डागारम् (परिमल प्रकाशन में प्रकाशनाधीन) का हिन्दी अनुवाद इत्यादि।

इस प्रकार श्री यादव जी आज भी विविध कवि सम्मेलनों में सरस, मधुर काव्य पाठ द्वारा तथा विभिन्न सेमिनारों में व्याख्यान, स्वतंत्र लेखन व विद्यार्थियों को अध्यापन कार्य द्वारा संस्कृत भाषा की श्री वृद्धि कर रहे हैं ।

डॉ यादव के देवभाषा के अनुराग को देखते हुए विभिन्न संस्थाओं ने इनको विविध अलंकरणों से सम्मानित किया है । यथा - उ०प्र० संस्कृत संस्थान द्वारा संस्कृत साहित्य पुरस्कार (2008), दिल्ली संस्कृत अकादमी द्वारा वर्ष 2006 में अखिल भारतीय मौलिक लघु कथा का प्रथम पुरस्कार, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कला संगम अकादमी उत्तर प्रदेश द्वारा 2008 में विवेकानन्द सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा वर्ष 2009 में साहित्य महोपाध्याय की मानद उपाधि, उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी द्वारा वर्ष 2011 में अखिल भारतीय मौलिक कथा का प्रथम पुरस्कार श्री सिद्धी गायत्री सनातन जन सेवा संस्थान कानपुर उत्तर प्रदेश द्वारा वर्ष 2013 में कवि भारती सम्मान, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ द्वारा वर्ष 2013 में विशिष्ट पुरस्कार इत्यादि ।