20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
डॉ. हरिपति सहाय कौशिक
जन्म 01 जनवरी 1962
जन्म स्थान ग्राम धवारी
स्थायी पता
ग्राम धवारी,झाँसी उत्तर प्रदेश

डॉ. हरिपति सहाय कौशिक

डॉ. हरिपति सहाय कौशिक का जन्म 1 जनवरी 1962 में उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले के धवारी ग्राम में हुआ था । आपके पिता का नाम श्री भागवत दयाल कौशिक तथा माता का नाम श्रीमती जय कुँवर है । आपका विवाह सन् 1984 में श्रीमती रोहिणी कौशिक के साथ हुआ था । डॉ. कौशिक जी की तीन पुत्रियाँ और एक पुत्र है। ज्येष्ठा पुत्री काम्या राजकीय इण्टर कॉलेज में संस्कृत विषय की प्रवक्ता पद पर कार्यरत है । पुत्री करुणा और पुत्र कुशाग्र बी.टेक. की परीक्षा उत्तीर्ण कर प्रतियोगी परीक्षाओं में लगे हैं । पुत्री कामिनी भी परास्नातक की डिग्री प्राप्त कर पारिवारिक जीवन में रत है ।

डॉ कौशिक ने अपनी प्राथमिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के धवारी ग्राम से प्राप्त की । यहीं से आपने कक्षा 8 तक की शिक्षा प्राप्त की । तदनन्तर आप अपनी अग्रिम शिक्षा हेतु वाराणसी आ गए । यहाँ से आपने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से पूर्व मध्यमा (हाई स्कूल) उत्तर मध्यमा (इंटरमीडिएट) की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् यहीं से शास्त्री की डिग्री प्राप्त कर आपने नव्य व्याकरण में आचार्य की उउपाधि प्राप्त की । सन् 1992 में आपने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से शोध उपाधि हेतु अध्ययन आरम्भ किया । आपके शोध का विषय "परोक्षवृत्ति वृत्तिगतपदानां व्याकरणस्य समीक्षा" है । बुंदेलखण्ड विश्वविद्यालय झाँसी से आपने संस्कृत विषय से एम.ए. की उपाधि प्राप्त की तथा बी. एड. की भी परीक्षा पास की ।

संस्कृत विषय में आपका ज्ञान विशुद्ध वा परिष्कृत है । व्याकरण में आपका ज्ञान उच्च कोटि का है । डॉ. कौशिक वर्तमान में उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में शालिगराम पाठक इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य के पद पर आसीन हैं । आप संस्कृत के साथ हिंदी व अंग्रेजी भाषा के भी जानकार हैं । हिंदी भाषा और संस्कृत भाषा में आपका समान अधिकार है ।

रचनाएँ-

डॉ. कौशिक की अब तक तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं इनमें पहली पुस्तक सन् 1993 में प्रकाशित हुई थी । आपकी अन्य रचनाएँ हैं -

1. "दैनिक स्तुति प्रार्थना" जैसा की पुस्तक के नाम से ही विदित है । यह पुस्तक दैनिक जीवन में व्यवहार में आने वाली स्तुति, स्तोत्र व मन्त्रों का संग्रह है ।

2. "संस्कृतम् आवश्यकम्" यह पुस्तक सन् 1994 में वाराणसी से प्रकाशित हुई । इस पुस्तक में संस्कृत भाषा व साहित्य की उपादेयता वर्णित है । 'संस्कृत क्यों पढें' और 'कैसे पढ़ें' विषय पर डॉ. कौशिक ने अपनी दृष्टि दी है।

3. "सार्वभौमसंस्कृतप्रचारसंस्थानम्" इस पुस्तक में संस्कृत सम्भाषण शिविरों में सञ्चालन कार्य का विवरण प्रस्तुत है ।

इसके अतिरिक्त डॉ कौशिक निरन्तर संस्कृत विषय पर अपने लेख एवं विचारों से साहित्य की सेवा करते रहते हैं । विभिन्न पत्रिकाओं में आपके लेख एवं शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं । आपने अनेक संस्कृत शिविरों का संचालन किया है । आप अपने विद्यालय के माध्यम से सतत संस्कृत भारती की सेवा करते रहते हैं । विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन, दैनिक संस्कृत स्वाध्याय सेवा, श्लोक गायन, अन्त्याक्षरी श्लोक प्रतियोगिता आदि कार्यक्रमों के आयोजन में डॉक्टर सहाय सदैव अग्रणी भूमिका में रहते हैं । आपका सरल स्वभाव सहज ही विद्यार्थियों को आकर्षित करता है । आपका मृदु कण्ठ रागात्मक शैली में श्लोक पाठन विद्यार्थियों में रुचि उत्पन्न करता है ।