20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
डॉ० कृपाराम त्रिपाठी
जन्म 04 अगस्त 1951
जन्म स्थान ग्राम लसोरा डाकखाना मथुराबाजार तहसील बलरामपुर जनपद बलरामपुर उत्तर
मोबाइल नंबर
9451032331
स्थायी पता
कालीमाई थान, नया बाजार, पोस्ट व जनपद - बलरामपुर, उत्तर प्रदेश 271201
साभार : जगदानन्द झा

डॉ० कृपाराम त्रिपाठी

महाकवि डॉ० कृपाराम त्रिपाठी "अभिराम" की साहित्यिक उपलब्धियों का वैशिष्ट्य अभिराम कवि डॉ० कृपाराम त्रिपाठी जी ने अपनी साहित्यिक मौलिकताओं से साहित्य को समृद्ध किया है। उनकी रचनायें विषय तथा साहित्यिक विशेषताओं एवं सामयिक चिन्तन आदि अनेक दृष्टियों में समाज एवं राष्ट्र के लिए अत्यन्त उपादेय सिद्ध हुयी हैं। उनके ग्रन्थों पर अनेक शोधपत्र लिखे गये है तथा कई शोधार्थियों को पी०एच०डी० की उपाधि मिली है और वर्तमान में भी उनके ग्रन्थों पर शोधकार्य चल रहे हैं एवं विश्वविद्यालयीय स्तर पर उनके ग्रन्थों का अध्ययन हो रहा है। डॉ० कृपाराम त्रिपाठी "अभिराम इस समय महारानी लाल कुँवरि स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलरामपुर में संस्कृत विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर पद पर कार्यरत हैं। वर्ष 1972 में स्नातक होने के बाद किसी बड़े विश्वविद्यालय में जाकर अंग्रेजी साहित्य में विशेषज्ञता प्राप्त करने एवं प्रशासनिक सेवा में जाने की लालसा को दबा कर गुरुओं के प्रभाव एवं निर्देशन में एम०एल०के० (पी०जी०) कॉलेज, बलरामपुर से ही वर्ष 1974 में संस्कृत में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की और वहीं स्नातकोत्तर कक्षाओं में अध्यापन करने के लिए नवम्बर 1974 में नियुक्त हो गये। वर्ष 1981 में पूना विश्वविद्यालय, पुणे से पाणिनीय व्याकरण में पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त की।

अभिराम कवि की विद्यार्थी जीवन से ही काव्यरचना में अभिरुचि थी। इनकी रचनायें गीत, श्लोक तथा छन्दों एवं एकाकी के रूप में पत्रिकाओं में निरन्तर छपती रहीं। इनकी कुछ अन्य रचनायें जैसे इन्द्रधनुष, तसबीर-ए-आदमी, आदाब-ए-गजल तथा और हम पढ़ते गये, हिन्दुस्तानी भाषा में कालजयी रचनायें हैं। इनका शोध प्रबन्ध Arrangement of Relus in Astadhyayi वर्ष 1992 में प्रकाशित है जो एक उत्कृष्ट सन्दर्भ ग्रन्थ है। डॉ० त्रिपाठी की कृतियाँ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अध्ययन एवं शोध का विषय है।

वर्ष 1988 में उनकी प्रथम रचना तरंगदूतम् उ०प्र० संस्कृत अकादमी द्वारा प्रकाशित हुई तथा पुरस्कृत हुई। वर्ष 1992 में उनकी रचना कुटजकुसुमांजलि उ०प्र० संस्कृत अकादमी द्वारा प्रकाशित हुई तथा पुरस्कृत हुई। इसमें उनकी वे रचनायें संकलित हैं जो वर्ष 1985 से 1991 के मध्य आकाशवाणी लखनऊ से समय-समय पर प्रसारित हुई थी। वर्ष 1994 में संस्कृत नाटक मध्यमराचरितम् प्रकाशित हुआ तथा उ०प्र० संस्कृत अकादमी द्वारा विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 2002 में डॉ० कृपाराम त्रिपाठी की एक अन्य रचना काव्यमन्दाकिनी दिल्ली संस्कृत अकादमी द्वारा प्रकाशित हुई तथा उ०प्र० संस्कृत अकादमी द्वारा पुरस्कृत हुयी। वर्ष 2004 में अभिराम कवि का संस्कृत महाकाव्य रघुकुलकथावल्ली राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान भारत सरकार के अनुदान से प्रकाशित हुआ और इस कृति के लिए इनको वर्ष 2005 में उ०प्र० संस्कृत अकादमी द्वारा कालिदास पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस रचना के लिए इनको राजस्थान संस्कृत अकादमी द्वारा वर्ष 2006 में अखिल भारतीय काव्य पुरस्कार प्राप्त हुआ है। डॉ० त्रिपाठी को भण्डारकर ओरियंटल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पुणे द्वारा वैदिक विद्वान के रूप में पुरस्कृत किया गया है। वर्ष 2011 में इनकी रचना कालिदासायनम् शारदा संस्कृत संस्थान वाराणसी से प्रकाशित हुयी है जो एक अनूठी रचना है। बलरामपुर साहित्य मण्डल द्वारा डॉ० त्रिपाठी को सम्मानित किया गया है। डॉ० त्रिपाठी की कई रचनायें अभी अप्रकाशित हैं जिनमें गीतिमंजरी, अभिरामरसायन, अपने सपने अत्यन्त महनीय रचनायें हैं।

 


पुरस्कार

23 दिसम्बर 2013 को अन्तर्राष्ट्रीय मैत्री संगठन India Internation Friendship Society New Delhi द्वारा डॉ० त्रिपाठी को उनकी विशिष्ट सेवाओं, उपलब्धियों तथा योगदानों के लिए भारत ज्योति एवार्ड से सम्मानित किया गया है।