20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
प्रोफेसर राम प्रकाश वर्णी
जन्म स्थान कासगंज
स्थायी पता
कासगंज

प्रोफेसर राम प्रकाश वर्णी

प्रोफेसर राम प्रकाश वर्णी के पिता का नाम ठाकुर जगरामसिंह और माता का नाम श्रीमती रामदेवी है। ये दोनों ही अपनी आयु के नवम-दशक को पार कर रहे हैं। डॉ. रामप्रकाश वर्णी इनके ज्येष्ठ पुत्र हैं। डॉ. वर्णी के दो भाई और तीन बहिनें हैं। छोटे भाई नरेंद्रप्रकाश आर्य ‘जिला अपरजज’ हैं और मध्यम भ्राता ‘मानपालसिंह’ पैतृक-सम्पत्ति की देख-रेख का कार्य करते हैं।

डॉ. वर्णी आरम्भ से ही कुशाग्र बुद्धि रहे हैं। इन्होंने अपनी सम्पूर्ण शिक्षा आर्ष गुरुकुलीय परम्परा में पूर्ण की है और सभी परीक्षाएँ ‘मध्यमा परीक्षा’ से लेकर ‘व्याकरणाचार्य’ और ‘एम.ए.’ पर्यन्त प्रथमश्रेणी में उत्तीर्ण की हैं। ये ‘प्राचीनव्याकरण’ और ‘नव्यव्याकरण’ दोनों ही विषयों में प्रथमश्रेणी में आचार्य परीक्षोत्तीर्ण हैं। इन्होंने ‘चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय मेरठ’ से ‘एम.ए.’ और ‘पी-एच.डी.’ की उपाधि प्राप्त की हैं तथा ‘डॉ. भीमराव आंबेदकर विश्वविद्यालय आगरा’ से संस्कृत-विषय में ‘डी.लिट्.’ उपाधि प्राप्त की हैं। दशवर्षों तक कई ‘संस्कृत महाविद्यालयों’ में अध्यापन कार्य करने के बाद इन्होंने 07 सितंबर, 1988 से 15 अप्रैल, 2021 ई. तक ‘लोकराष्ट्रीय डिग्री कॉलेज जसराना, जनपद-फिरोजाबाद’ (उ.प्र.) मं असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोशिएट प्रोफेसर रहते हुए ‘प्रभारी-प्राचार्य’ के रूप में प्रशंसनीय कार्य किया है। सम्प्रति ये ‘गुरुकुल कांगड़ी सम-विश्वविद्यालय हरिद्वार’ में ‘प्राच्यविद्यासंकाय’ के अन्तर्गत सञ्चालित होने वाले ‘श्रद्धानन्द वैदिक शोधसंस्थान’ में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।

इस अवधि में डॉ. वर्णी ने ‘संस्कृत, व्याकरण, वेद, निरुक्त’ और काव्यशास्त्र आदि विषयों से सम्बन्धित अनेक विषयों पर 16 (सोलह) छात्र-छात्राओं को शोध कार्य कराया है। इस समय भी इनके निर्देशन में कई शोधच्छात्र शोधकार्य कर रहे हैं। डॉ. वर्णी के अधोलिखित 8 शोधग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं-

1. पातञ्जल-महाभाष्य (नवाह्निक) की व्याख्या में कैयट और शिवरामेन्द्र का तुलनात्मक अध्ययन-यह इनका ‘पी-एच.डी.’ उपाधि की प्राप्ति हेतु लिखा गया ‘शोधप्रबन्ध’ है। समीक्षकों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। इसके दो संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।

2. कैयट का व्याकरण-दर्शन को योगदान-यह ग्रन्थ डॉ. वर्णी ने डी. लिट्. उपाधि की प्राप्ति के लिए लिखा है। इसकी भी समीक्षकों ने मुक्त-कण्ठ से प्रशंसा की है।

3. आचार्य सायण और उनकी माधवीयधातुवृत्ति-यह ग्रन्थ लेखक की प्रौढकृति है। इसमें ‘माधवीयधातुवृत्ति’ की सूक्ष्म समीक्षा की गई है।

4. महर्षि स्वामी दयानन्द और आचार्य सायण की वेदभाष्य भूमिकाएँ-इस ग्रन्थ में लेखक का प्रयत्न उभय-विद्वानों के कर्तृत्व का सूक्ष्म-वीक्षण करने का रहा है। अन्ततः वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि स्वामी दयानन्द सरस्वती का कार्य ‘स्वोपज्ञ’ और ‘अभिनव’ है, जबकि सायणीय कार्य परम्परागत ‘विनियोग के खूँटे में’ आबद्ध गतानुगतिक मात्र है।

5. सस्कृतव्याकरणदर्शन के विविध सोपान-डॉ. वर्णी का यह ग्रन्थ ”उत्तरप्रदेशसंस्कृतसंस्थान“ से पुरस्कृत है। इसमें लेखक ने व्याकरणदर्शन सम्बन्धी ‘धात्वर्थ, सुबर्थ’, आदि विषयों पर ‘वैयाकरणों, नैयायिकों’ और ‘मीमांसकों’ के विचारों की युक्ति-प्रमाण पुरस्सर समीक्षा करके कौण्डभट्ट के मत को वास्तविकता के अधिक समीप माना है। इस ग्रन्थ की भी अध्येताओं ने बहुत प्रशंसा की है।

6. माधवीयधातुवृत्ति-हृदयम्-डॉ. वर्णी प्रणीत यह ग्रन्थ ”उत्तरप्रदेशसंस्कृत-संस्थान-लखनऊ“ से नामित पुरस्कार ‘पाणिनि पुरस्कार’ से सभाजित है। यह सम्पूर्ण ग्रन्थ संस्कृतभाषा में लिखा गया है। इसमें ‘माधवीयधातुवृत्ति की सम्मतावृत्ति, धातुप्रदीप और क्षीरतरङ्गिणी प्रभृति सभी प्राचीन वृत्तियों के साथ तुलना करते हुए ‘गुण-दोषनिदर्शन’ पूर्वक गम्भीर समालोचना की गयी है।

7. आर्यों का वास्तविक अभिजन-यह डॉ. वर्णी का एक लघु ग्रन्थ हैं। इसमें ‘आर्यों को भारत का मूलनिवासी’ सिद्ध किया गया है तथा इनके ‘विदेशी-आक्रान्ता’ होने के प्रमाणक सभी मतों की अनेक प्रबल-प्रमाणों और अकाट्य युक्तियों से प्रबल भर्त्सना की गयी है।

8. परिभाषार्थ प्रकाशः-डॉ. वर्णी का यह ग्रन्थ उनके सभी ग्रन्थों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और ‘बृहत्काय’ है। इसमें पाणिनीय व्याकरण में व्यवहृत होने वाली 135 परिभाषाओं की हिन्दीभाषा में बड़े विस्तार के साथ व्याख्या की गयी है और पं. नागेशभट्ट की सभी उद्भावनाएं ‘सूत्रो मणिगण इव’ अनुस्यूत की गई हैं।

इन ग्रन्थों के अतिरिक्त ”पातञ्जलमहाभाष्यम् में पठित श्लोकवार्तिकों का विवेचनातमक अध्ययन“ नाम से प्रणीत अभिनवग्रन्थ यन्त्रेस्थ है तथा काशिकावृत्ति, प्रौढमनोरमा, लघुशब्देन्दुशेखर और महाभाष्यम् की हिन्दी व्याख्याओं का कार्य क्रियमाण है।

 

अवधेय है कि डॉ. वर्णी जहाँ संस्कृत गद्य-पद्य के उत्तम रचनाधर्मी विद्वान् हैं वहीं वे ‘वेदवेदाङ्ग’ आदि के प्रगल्भ-वक्ता भी हैं। मञ्च पर उनकी ‘संस्कृत-हिन्दी की कविताएँ ध्यान से सुनी जाती हैं।