20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
डॉ. श्रीनिवास वर्मा शास्त्री
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जन्म स्थान मोहल्ला मोहन
स्थायी पता
मोहल्ला मोहन, कासगंज

डॉ. श्रीनिवास वर्मा शास्त्री

डॉ. श्रीनिवास वर्मा शास्त्री का जन्म ‘कासगंज’ जनपद के मुख्यालय कासगंज-नगर के मोहल्ला मोहन में सन् 1938 में हुआ था। इनके पिता का नाम रामेश्वर और माता का नाम श्रीमती किरण था। इनकी पत्नी का नाम श्रीमती प्रेमवती और पुत्रों का नाम क्रमशः रवि व शिवम है।

इनकी प्रारंभिक-शिक्षा से लेकर माध्यमिक-शिक्षा पर्यन्त शिक्षा ‘कासगंज-नगर’ में ही हुई तथा उच्चशिक्षा (हिंदी, संस्कृत एवं इतिहास विषयों में एम.ए. और पी-एच.डी.) ‘आगरा विश्वविद्यालय आगरा’ (उ.प्र.) के सम्बद्ध महाविद्यालयों में हुई। इन्होंने ‘शास्त्री’ एवं ‘आचार्य पुराणोतिहास’ उपाधियाँ ‘वाराणसेय-संस्कृत-विश्वविद्यालय वाराणसी’ से प्राप्त की थी।

डॉ. वर्मा का कार्यक्षेत्र ‘अध्ययन-अध्यापन’ नहीं था। वे तहसील में कई पदों पर कार्य करते हुए ‘नाजिर’ के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। तथापि पुराण, इतिहास, वेद और निरुक्तशास्त्र के अध्ययन में इनकी गहरी रुचि थी। इसी रुचि के अनुसार इन्होंने अपना धन लगाकर अपने आवास में एक प्राचीनवाङ्मय का बृहत् पुस्तकालय बनाया। बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ. वर्मा ने तहसील में कार्य करते हुए ही स्वयं स्थापित ‘तुलसी-प्रेस’ से सर्वप्रथम ‘मूल-वराहपुराण’ का सम्पादन करके प्रकाशन किया। उसके बाद राजपूतों के 36 (छत्तीस) कुलों का शोध पूर्ण क्रमिक ‘इतिहास’ लिख कर प्रकाशित किया। पाञ्चाल राज्य के इतिहास पर गम्भीर शोधकार्य करके ‘डॉ.बी.आर. आंबेदकर-विश्वविद्यालय आगरा’ से ‘पी-एच.डी.’ की उपाधि प्राप्त की। प्राचीन वैदिक वाङ्मय में डॉ. वर्मा की गहरी पैठ थी। जब कभी उनका स्वल्पकालिक सान्निध्य प्राप्त हुआ तो उनके वार्तालाप से ऐसा लगा, मानो इनको सम्पूर्ण ‘यास्कीय-निरुक्तशास्त्र’ कण्ठस्थ है। पुराणों के अनेक सन्दर्भ उनकी जिह्ना पर नरीनर्तन सा करते थे। हाँ उनमें एक बात जो विशेष थी, वह यह थी कि उनकी विद्या केवल स्वान्तः सुखाय’ ही थी ‘परोपकृति’ के लिये नहीं। इसी कारण वे किसी भी जिज्ञासु जन को कभी भी अपना ग्रन्थ छूने नहीं देते थे। केवल दूर से ही दिखा देते थे।

उन्होंने ‘वेदेष्वग्निविद्या, वेदेषु वायुविद्या, पुरुषसूक्त-व्याख्या, आर्यों का आदि-देश’ एवम् ‘अस्यवामीयसूक्त-व्याख्या’ और ‘पौराणिक-सृष्टिप्रक्रिया’ पर कुछ प्रामाणिक कार्य किया था, जिसे हमने दूर से ही देखा था किन्तु उनके अस्वास्थ्य एवं आकस्मिक-निधन के कारण वह प्रकाशित नहीं हो सका। उनका निजी पुस्तकालय भी बंद पड़ा है।