20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
राममूर्ति शर्मा
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जन्म 15 फरवरी 1932
जन्म स्थान ग्राम मंडी किशन दास सराय
निधन 14 जून 2008
स्थायी पता
ग्राम मंडी किशन दास सराय संभल

राममूर्ति शर्मा

संभल जनपद के लब्धप्रतष्ठि संस्कृत विद्वानों में से एक प्रोफेसर राममूर्ति शर्मा का जन्म ग्राम मंडी किशन दास सराय जिला संभल उत्तर प्रदेश में 15 फरवरी, 1932 को पिता श्री गंगाराम शर्मा एवं माता श्रीमती लड़ैती देवी के घर हुआ।

आप की प्रारंभिक शिक्षा एस.एम. कॉलेज चंदौसी से एवं के.जी.के. डिग्री कॉलेज मुरादाबाद से हुई तत्पश्चात् शास्त्री संपूर्णानंद विश्वविद्यालय वाराणसी से तथा हिंदी एवं संस्कृत में एम. ए. करने के बाद 1962 में पीएच. डी. आगरा विश्वविद्यालय से- भारतीय दर्शन आदि शंकराचार्य व मायावाद का सिद्धांत विषय पर किया। आपने डी. लि. किया तथा रॉयल सोसाइटी लंदन के फैलो भी रहे। आपका विशेषज्ञता का क्षेत्रा भारतीय दर्शन और प्रमुखतया वेदांत दर्शन रहा। आपके निर्देशन में लगभग 30 एम. फिल. एवं 20 पीएच. डी. उपाधि विद्यार्थियों ने प्राप्त की। संस्कृत, हिंदी व अंग्रेजी का ज्ञान रखने वाले प्रोफेसर शर्मा का सुदीर्घ 40 वर्षों का शैक्षणिक अनुभव रहा है।

आपकी 21 से अधिक पुस्तकें हैं जिनमें 15 मौलिक एवं पांच संपादित हैं।, जिनमें प्रमुख हैं-भारतीय दर्शन की चिंतन धारा-चौखंभा ओरिएंटलिया जवाहर नगर, दिल्ली 2006, द वेदा एंड वेदांता-ईस्टर्न बुक लिंकर्स दिल्ली 1995, इनसाइक्लोपीडिया ऑफ वेदांता-मोतीलाल बनारसीदास दिल्ली, 1993, आदि शंकराचार्य व मायावाद का सिद्धांत-ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली 1963, अद्वैत वेदांत-नेशनल पब्लिकेशंस दिल्ली 1964, अभिज्ञानशा कुतलम्-टीका, ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली, 1964, सम आस्पैक्ट्स आव अद्वैत फिलासाफी-, ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली, 1985

तत्कालीन पत्रिका में आपके 40 से अधिक शोध आलेख प्रकाशित हो चुके हैं, जिनका समग्र विवरण प्राप्त नहीं हो सका है।

आप देश के प्रतिष्ठित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के कुलपति रहे, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के भी कुलपति रहे तथा पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के संस्कृत विभाग में अध्यक्ष पद पर रहे, साथ ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आपको एमेरिटस फैलो भी चुना गया। इसके अतिरिक्त आप विजिटिंग फैलो, श्री वेङ्कटेश्वर विश्वविद्यालय, तिरुपति गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार विजिटिंग प्रोफेसर (मैक्सिको) भारत सरकार द्वारा नियुक्त, अध्यक्ष, दर्शन अनुभाग, आल इण्डिया ओरियण्टल कान्फ्रेंस, शान्ति निकेतन, साउथ ईस्ट एशिया अनुभाग, एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता, बौद्धदर्शन तथा तिब्बतन स्टडीज, वाल्टेयर संयोजक, अन्तर्राष्ट्रीय शंकराचार्य संगोष्ठी, दिल्ली, 1986। इसके अतिरिक्त आपने दिल्ली विश्वविद्यालय एवं आगरा विश्वविद्यालय में भी अध्यापन कार्य किया।

विभिन्न संस्थाओं में अपने मानद पद प्राप्त किए जैसे भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद आई.सी.सी.आर, नई दिल्ली में समन्वयक रहे, अंतरराष्ट्रीय शंकराचार्य सेमिनार, विज्ञान भवन दिल्ली में, विश्व संस्कृत सम्मेलन हेलसिंकी 2003 फिनलैंड में विमर्श समूह के नामित सदस्य रहे, विश्व संस्कृत सम्मेलन फिलाडेल्फिया यू.एस.ए. 1984 में भारतीय सरकार द्वारा नामित सदस्य रहे, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में सीनेट के सदस्य रहे, राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ नई दिल्ली में विभिन्न समितियों में सदस्य रूप में कार्य किया।

आपको अनेक पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। 1. शङ्कराचार्य और उनका मायावाद, उ.प्र. शासन द्वारा पुरस्कृत, 2. अद्वैत वेदान्त, उ.प्र. शासन द्वारा पुरस्कृत, 3. वेदान्तसार, उ.प्र. संस्कृत अकादमी द्वारा पुरस्कृत 4. भगवान् महावीर एवं उनके उपदेश (निबन्ध), भगवान् महावीर निर्वाण समिति, दिल्ली द्वारा पुरस्कृत, 5. राष्ट्रपति पुरस्कार एवं सम्मान (1987), 6. संस्कृत अकादमी, दिल्ली, सम्मान पुरस्कार (1996), 7. भीमसेन पाठी ट्रस्ट, उड़ीसा, अन्तर्राष्ट्रिय पुरस्कार (1997), सहयोग फाउण्डेशन, मुम्बई द्वारा पुरस्कार एवं सम्मान (2000), भारतमाता सम्मान, विश्वज्योतिषपीठ, कलकत्ता (2009), बालसहयोग फाउण्डेशन पुरस्कार, दिल्ली (2001) एवं भारतीय ज्ञानपीठ (मूर्तिदेवी) पुरस्कार सम्मान (2005) आदि प्रमुख हैं।

विदेश यात्राएँ एवं व्याख्यान-1. मैक्सिको (1982), 2. कोलम्बिया विश्वविद्यालय, न्यूयार्क (1982), आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (1982), फिलाडेल्फिया, अमरीका (1984), मैलबोर्न विश्वविद्यालय, आस्ट्रेलिया (1994), थाईलैण्ड (1994), सिंगापुर (1994), टूरंटो, इटली (2000)।

विश्व संस्कृत सम्मेलन (भारत एवं विदेश) जिनमें भाग लिया तथा अध्यक्षता की-दिल्ली (1972), वाराणसी (1978), मैक्सिको (1982), आक्सफोर्ड (1982), फिलाडेल्फिया, अमरीका (1948), आस्ट्रेलिया (1994), बंग्लौर (1997), टूरिंयो, इटली 2000, हेलसिंकी (फिनलैण्ड), 2003, एडिनबरा (यू.के.), 2006।

इस प्रकार विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर सेवा देते हुए तथा संस्कृत का प्रचार प्रसार करते हुए 2 दर्जन से अधिक ग्रंथों का निर्माण करते हुए तथा विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रा-पत्रिकाओं में शोध पत्रा प्रकाशित करते हुए संस्कृत का बहुविध प्रचार प्रसार करते हुए 14 जून, 2008 को आपकीर्ति शेष हो गए।


पुरस्कार

राष्ट्रपति पुरस्कार , अन्तर्राष्ट्रिय पुरस्कार,