20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
हरवीर सिंह
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जन्म स्थान ग्राम जरीफनगर
निधन 29 नवम्बर 2013
स्थायी पता
लेखपाल कॉलोनी जनपद संभल

हरवीर सिंह

आपका जन्म उत्तर प्रदेश के जनपद बदायूं के जरीफनगर नामक ग्राम में हुआ। आपने श्री सर्वदानंद संस्कृत महाविद्यालय साधु आश्रम अलीगढ़ उत्तरप्रदेश में प्राचार्य पद पर रहकर सेवायें दीं। आपका दीक्षा नाम आचार्य बुद्धदेव शास्त्री है। पिता का नाम स्वर्गीय गिरवर सिंह एवं माता श्रीमती रामश्री देवी है। आपने संभल जनपद के बबराला में श्री रामवीर शास्त्री लेखपाल कॉलोनी में निवास किया है।

आपकी आरंभिक शिक्षा कन्या पाठशाला जरीफनगर बदायूं में तथा निकटवर्ती ग्राम कुंडई में हुई। दसवीं, बारहवीं की कक्षाएं बाबूराम सिंह भायसिंह इंटर कॉलेज बबराला, जनपद संभल से तथा शास्त्री और आचार्य (व्याकरण) की परीक्षाएं संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी से करने के पश्चात् आपने विद्यावारिधि (पीएच.डी.) की उपाधि ग्रहण की जिसका विषय ‘महाभाष्ये अनेकविद्यानां संप्रयोगः’ है। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से उपाधि प्राप्त यह शोधग्रंथ अप्रकाशित है, आपकी विशेषज्ञता का क्षेत्रा व्याकरण एवं वेद है। आपका प्रसिद्ध ग्रंथ ‘वेदेषु वायुविज्ञानम’् (संस्कृत भाषा में), अमर स्वामी प्रकाशन विभाग गाजियाबाद से प्रकाशित है जो संस्कृत ज्ञान विज्ञान के क्षेत्रा में अथर्ववेद के विशेष संदर्भों पर आधारित है। भारतीय काव्य में आदिमानव की भूमिका तथा वेद ही ईश्वर वाणी है हरिहर स्वामी वैदिक संस्थान साधु आश्रम अलीगढ से प्रकाशित है।

हिंदी, संस्कृत तथा अंग्रेजी के जानकार डॉ. सिंह ने संस्कृत के प्रचार-प्रसार हेतु सौधर जनपद संभल, कोठरा जनपद बदायूं, गंगीरी जनपद अलीगढ़ तथा साधु आश्रम जनपद अलीगढ़ में गुरुकुलों के संचालन में उल्लेखनीय योगदान दिया। ये गुरुकुल संस्कृत विद्या के प्रचार-प्रसार के प्रमुख केंद्र रहे हैं। आपकी गुरु परंपरा में पंडित राम प्रसाद शर्मा, आचार्य केशव देव, श्री खुशीराम सिंह इत्यादि महानुभाव रहे हैं। आपकी शिष्य परंपरा बहुत ही सुविस्तीर्ण है। आपने गुरुकुल का संचालन करते हुए सहस्त्रों सुयोग्य स्नातकों को तैयार किया है, जिनमें आचार्य कुंवरपाल उपाध्याय, डॉ. विनय विद्यालंकार, आचार्य प्रमोद कुमार, डॉ ओमकार एवं डॉ. अरविंद कुमार आदि सम्मिलित हैं। 29 नवंबर, 2013 को आपका देहावसान हो गया। आपने आजीवन ब्रह्मचारी रहकर संस्कृत साहित्य तथा संस्कृत शास्त्रों की रक्षा की एवं गुरुकुल परंपरा में उल्लेखनीय योगदान दिया।