20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
डॉ. रमाकान्त शुक्ल
जन्म 24 सितम्बर 1940
जन्म स्थान खुर्जा
निधन 11 मई 2022
स्थायी पता
खुर्जा उत्तर प्रदेश

डॉ. रमाकान्त शुक्ल

२४ सितम्बर, १९४० ई. को खुर्जा (उत्तर प्रदेश) में जन्मे डॉ. रमाकान्त शुक्ल को शैशव में संस्कृत शिक्षा अपनी माता एवं पिता श्रीमती प्रियंवदा शुक्ला एवं श्री ब्रह्मानन्द शुक्ल के द्वारा घर पर ही मिली। तदनन्तर आपने खुर्जा के श्री राधाकृष्ण संस्कृत महाविद्यालय में पारम्परिक रीति से प्रथमा से साहित्याचार्य (वाराणसी) पर्यन्त एवं एन. आर. ई.सी. कालेज में हिन्दी एम.ए. (स्वर्णपदक) (आगरा विश्वविद्यालय) तक शिक्षा प्राप्त की। शिक्षक परीक्षार्थी के रूप में १९६४ में आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. संस्कृत प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की तथा १६६७ में हिन्दी विषय में पी-एच. डी. प्राप्त की।

आपने मोदीनगर एवं दिल्ली में १६६२ से २००५ तक एम.ए. कक्षाओं में हिन्दी, संस्कृत, पालि, प्राकृत तथा अपभ्रंश का अध्यापन किया।

रचनायें- आपकी प्रकाशित संस्कृत काव्य कृतियों में भाति में 'भारतम्' 'जय भारतभूमे, 'भारतजनताहम्,' 'भाति मौरीशसम्', 'सर्वशुक्ला', 'सर्वशुक्लोत्तरा', आशा-द्विशती, मम जननी, राजधानी रचना, कान्त-काव्यामृतम्, और कान्त काव्यांजलि हैं। आपकी नाट्यकृतियों में पण्डितराजीयम् अभिशापपुरश्चरणकमलम् नाट्यसप्तकम्, शुचिगान्चीयम् और जलियांवाला बागकाण्डम् प्रसिद्ध हैं।

आपके द्वारा लिखित, सम्पादित और अनूदित प्रमुख ग्रन्थ ये हैं:- जैनाचार्य रविषेणकृत पद्मपुराण और तुलसीकृत

रामचरितमानस (शोधप्रबन्ध), वसुमतीशतक की रमा टीका, संस्कृतसुधा, देववाणीदर्शनम्, अर्वाचीन संस्कृत महाकाव्यविमर्श: (तीन खण्ड), श्रीसत्यदेववासिष्ठकृत श्रीविष्णुसहस्रनामसत्यभाष्यम् और नाडीतत्त्वदर्शनम् (राष्ट्रभाषानुवाद) आदि अनेक कविताओं के हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद ।

सम्मान - आपको विविध संस्थाओं ने 'कालिदास सम्मान' 'संस्कृतसाहित्यसेवासम्मान', 'संस्कृतराष्ट्रकवि' 'महामहोपाध्याय', विद्यासागर, कविकुंजर, साहित्यमहोदधि, गीतसरस्वती, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान का महर्षि वाल्मीकि पुरस्कार वर्ष 2018 तथा नारद पुरस्कार वर्ष 2012 आदि विरुदों से सम्मानित किया गया है। आप भारतीय संस्कृत पत्रकार संघ एवं देववाणी-परिषद् दिल्ली के अध्यक्ष और अर्वाचीनसंस्कृतम् नामक त्रैमासिक संस्कृत पत्रिका १६७६ से प्रधान सम्पादक के रूप में संस्कृत की सेवा में संलग्न रहे।

आपको भारत के राष्ट्रपति ने संस्कृत साहित्य की उत्कृष्ट सेवा के लिए सन् २००६ में सम्मान प्रमाण पत्र तथा २०१३ में शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए 'पद्यश्री' से अलंकृत किया है।

दिनांक ११ मई २०२२ को दिल्ली से झारखंड जाते समय हृदयगति रूरकने के कारण आपका देहावसान हो गया।


पुरस्कार

पद्यश्री