20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
डॉ. पारसनाथ द्विवेदी
जन्म 01 जनवरी 1930
जन्म स्थान ग्राम विजेथुआ राजापुर
स्थायी पता
ग्राम विजेथुआ राजापुर सुल्तानपुर
साभार : डाॅ॰प्रद्युम्न द्विवेदी

डॉ. पारसनाथ द्विवेदी

डॉ. पारसनाथ द्विवेदी का जन्म 1 जनवरी 1930 को उ.प्र. के सुल्तानपुर जिले के ग्राम विजेथुआ राजापुर में हुआ था । आपके पिता का नाम श्री लालता प्रसाद द्विवेदी था तथा माता का नाम श्रीमती सीता देवी था। प्रो॰ पारसनाथ द्विवेदी की पत्नी का नाम श्रीमती शोभा द्विवेदी था। आपके पिता पं. ललिताप्रसाद द्विवेदी संस्कृत के पण्डित थे । उन्होने सेना की नौकरी छोड़कर स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया था।

द्विवेदी जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुयी थी। उन्होंने गाँव के हनुमत् संस्कृत महाविद्यालय से उत्तर मध्यमा परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की । उसके पश्चात् उच्च शिक्षा के लिए आप वाराणसी चले गये तथा शास्त्रार्थ महाविद्यालय में रहकर शास्त्री (व्याकरण) तथा आचार्य (व्याकरण) परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। वर्ष 1952 में शास्त्री परीक्षा में उत्तर प्रदेश भर में सर्वोच्च स्थान आने पर आपको 50 रुपये की मासिक राजकीय छात्रवृत्ति मिली थी।

आचार्य परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आगरा के समाजसेवी एवं शिक्षाविद् रायबहादुर श्री बैजनाथ शर्मा गोस्वामी ने आपको आगरा में श्री विद्या धर्मवर्द्धिनी संस्कृत महाविद्यालय में प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्त किया । उसके बाद वर्ष 1978 तक आगरा कालेज के संस्कृत विभाग में अध्यापन कार्य किया । यहाँ से आप 1978 में पुनः वाराणसी चले गये तथा यहाँ पर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में आचार्य एवं अध्यक्ष इतिहास, पुराण, भूगोल एवं संस्कृति विभाग, संकायाध्यक्ष साहित्य संस्कृति संकाय, संकायाध्यक्ष छात्र-कल्याण, निदेशक छात्रसंघ, प्रतिकुलपति आदि पदों को सुशोभित किया। आपने आगरा विश्वद्यिालय से पी.एच. डी. एवं डी. लिट्. की उपाधि प्राप्त की । डॉ. द्विवेदी ने विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में श्री जगन्नाथ विश्वविद्यालय, पुरी (उड़ीसा) में तथा राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान दिल्ली की शास्त्र चूड़ामणि योजना के अन्तर्गत संस्कृत विद्वान् के रूप में कार्य किया। उत्तर प्रदेश संस्कृत अकादमी के आप उपाध्यक्ष भी रहे हैं । डॉ. द्विवेदी के निर्देशन में लगभग 100 अनुसन्धाताओं ने पी.एच.डी. एवं डी.लिट् की उपाधि प्राप्त की है । जिनमें विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों के अध्यक्ष के अतिरिक्त न्यायाधीश एवं प्रशासनिक अधिकारी हैं । डा. के. के. आनन्द, डॉ. जगदीश किशोर पाठक, डॉ. शशि तिवारी, डॉ. कमला पाण्डेय, डॉ. बीना गुप्ता, डॉ. शीला गुप्ता, डॉ. रेखा शर्मा, डॉ. वंशीधर चतुर्वेदी, डॉ. रामविलास दास वेदान्ती (अयोध्या). डॉ. इला तपादार आदि इनमें प्रमुख हैं ।

डॉ. द्विवेदी विभिन्न विश्वविद्यालयों के कार्य परिषद्, विद्या परिषद्, सीनेट, रिसर्च डिग्री कमेटी, अध्ययन बोर्ड आदि के सदस्य एवं अध्यक्ष रहे हैं। डॉ. द्विवेदी ने अनुसन्धान एवं स्नातकोत्तर स्तर की लगभग 51 पुस्तकों का लेखन कार्य किया है । जिनमें अभिनव भारती टीका सहित नाट्यशास्त्र (5 खण्डों में), आचार्य नन्दिकेश्वर और उनका नाट्यशास्त्र, अग्निपुराणोक्तं काव्यालंकारशास्त्रम्, रसगंगाधर- गुरुमर्मप्रकाश टीका (2 खण्डों में), नाट्यशास्त्र का इतिहास, वात्स्यायन कामसूत्र (हिन्दी टीका), भारतीय दर्शन, काव्यप्रकाश, साहित्य दर्पण, ध्वन्यालोक, अभिज्ञान–शाकुन्तलम्, रघुवंश महाकाव्यम्, रुद्रडमरूद्भवसूत्रविवरणम्, संस्कृत निबन्ध नवनीतम् आदि प्रमुख हैं । इसके अतिरिक्त लगभग 34 शोधलेख विभिन्न रिसर्च जनरल एवं जनरल में प्रकाशित हुये हैं। इन्होंने संस्कृत साहित्य, व्याकरण, नाट्यशास्त्र, संगीत, दर्शन, इतिहास, समाज एवं संस्कृति आदि अनेक विषयों पर लिखा है । इनका शास्त्रीय ज्ञान एवं मौलिक चिन्तन अद्वितीय था । इनका व्यक्तिव बड़ा प्रभावशाली एवं स्वभाव बड़ा सरल और उदार था । सम्भवतः उनका जन्म संस्कृत को गौरवान्वित करने के लिये ही हुआ था।

आपको अखिल भारतीय पण्डित परिषद्, वाराणसी द्वारा "पुराण रत्न" से सम्मानित किया गया था । इसके अतिरिक्त आपको संस्कृत वाङ्मय, नाट्यशास्त्र एवं संगीत की उत्कृष्ट सेवाओं एवं शोध के लिये राजस्थान संस्कृत अकादमी जयपुर, उ.प्र. संस्कृत अकादमी, संस्कृत प्रचारिणी सभा वाराणसी, मानव विकास मंत्रालय, भारत सरकार आदि संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित किया गया था । वर्ष 2002 में आपको राष्ट्रपति के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था ।

डॉ. द्विवेदी का निधन 30 नवम्बर 2002 को वाराणसी में हुआ था ।


पुरस्कार

पुराण रत्न , राष्ट्रपति पुरस्कार