20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
डॉ .शालिग्राम शास्त्री
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जन्म 14 जून 1941
जन्म स्थान ग्राम हरकौती
स्थायी पता
ग्राम हरकौती जिला जालौन

डॉ .शालिग्राम शास्त्री

पंडितप्रवर डॉ शालिग्राम (दूरबार) शास्त्री जनपद जालौन के संस्कृत विद्वानों में अप्रतिम हैं। शस्त्रीजी का जन्म ग्राम हरकौती जिला जालौन में 14 जून, 1941 को हुआ। आपके पिता स्वर्गीय पंडित रामगोपाल दूरबार एवं माता श्रीमती द्विजादेवी दूरबार अत्यंत श्रद्धालु एवं सात्त्विक दंपती थे। इनके ही संस्कारों का प्रभाव शास्त्रीजी पर पड़ा।

शास्त्री जी की प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक पाठशाला हरकौती तथा जूनियर हाईस्कूल खर्रा में हुई। अल्पवय में ही अपका विवाह सन् 1954 में श्रीमती राममूर्ति देवी से हो गया, जिनसे 2 पुत्र श्रीकमलाकांत दूरबार और श्रीशिवाकांत दूरबार एवं तीन पुत्रियां श्रीमती सरोज बुधौलिया, श्रीमती गीता उपाध्याय, डॉ सुनीता तिवारी हुईं।

उच्च शिक्षा ग्रहण करने हेतु आपने कानपुर के बलदेवसहाय संस्कृत महाविद्यालय में प्रवेश लेकर शास्त्री (1963) एवं आचार्य की उपाधि साहित्य विषय में प्राप्त की। अध्ययन के समय से ही आप अध्यापन कार्य भी करने लगे। 2 वर्षों तक आपने आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, कानपुर में अध्यापन  कार्य किया। अनंतर आपने गांधी इंटर कॉलेज, उरई में प्रवक्ता (संस्कृत) पद पर कार्य करना प्रारंभ किया। इसी समय में ही आपने छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय (कानपुर) से बी.ए. तथा ए म ए. की उपाधि भी ग्रहण की।

शास्त्री जी अध्ययन-अध्यापन कार्य में सदा लीन रहे हैं, तो उसी क्रम में आपने कुमायूँ विश्वविद्यालय, नैनीताल (उत्तराखंड) से सन् 1985 में ‘‘विवेकानन्दचरितमहाकाव्यस्य समीक्षात्कमध्ययनम्’’ इस विषय को आधारित कर विद्यावारिधि ;च्ण्ीण्क्ण्द्ध की उपाधि प्राप्त की।

आचार्य शालिग्राम शास्त्री जी ने स्वजनपद की कर्मकांड की अव्यवस्था/शोचनीय दशा को देखकर अपने आचार्यत्व में लगभग 40 से भी अधिक यज्ञों का आयोजन कर सामान्य जनता को ईश्वर के प्रति अनुरक्ति में संलग्न किया। आपने हिंदी-संस्कृत में अनेको लेखो लिखकर साहित्यादि विषयों की दुरूह ग्रंथियों को उद्घाटित किया। आपका अध्ययन गुरुपरंपरा के अनुरूप हुआ है। आपने अनेक गुरुओं से शिक्षा ग्रहण की है, जिनमें प्रमुख हैं-पंडित माधव प्रसाद उपाध्याय, पंडित राम कुमार मालवीय, पंडित श्री राजाराम शास्त्री, पंडित बैकुंठ नाथ शास्त्री, पंडित चंद्रशेखर शास्त्री, विश्वनाथ शुक्ल, डॉ. हरिनारायण दीक्षित आदि। आपकी शिष्य परंपरा भी अत्यंत  समृद्ध है। जिनमें से अनेक शिष्य विशिष्ट पदों पर सुशोभित हो संस्कृत के प्रचार-प्रसार में योगदान दे रहे हैं। यथा-डॉ. जगप्रसाद चतुर्वेदी (प्राचार्य, आदर्श संस्कृत महाविद्यालय उरई)।

संस्कृत के प्रसार-प्रचार एवं सामाजिक कार्यों को देखकर माननीय राष्ट्रपति  श्रीरामनाथ कोविंद के द्वारा आपको सम्मानित किया गया। सन् 2017 में  आपने ‘‘उपभोक्ता फोरम सदस्य जज’’ के रूप में कार्य किया है, जिसका प्रशिक्षण प्रमाण पत्र मुख्य न्यायाधीश श्रीतरुण चटर्जी के द्वारा दिया गया। आपकी सेवा को दृष्टिगत कर अनेको सम्मान प्राप्त हुए। यथा-विश्व उपभोक्ता दिवस पर सन् 2003 में महामहिम राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री के द्वारा सम्मानित आदि।

आप संस्कृत जगत् की सेवा में सदा संलग्न रहते हैं।

आपकी रचनाओं से संस्कृत वाङ्मय अद्यावधि समृद्ध हो रहा है। आपकी रचनाएं निम्न हैं 1. नवदेव प्रातस्स्तवनम् - इस रचना में नव देवों की प्रातः स्तुतियाँ की गई हैं। यह लघुरचना अयोध्या से प्रकाशित है।

2. विवेकानन्दचरितमहाकाव्यस्य समालोचनात्मकमध्ययनम्-शास्त्री जी का यह शोधग्रंथ ईस्टर्न बुक लिंकर्स नई दिल्ली (20002) से प्रकाशित है। 3. दण्डदूतम्-यह रचना उरई से प्रकाशित है।

4. प्रशस्तयः-अनेको विशिष्ट व्यक्तियों तथा विद्वानों की प्रशस्तियों से युक्त यह रचना चंद्रलोक प्रकाशन कानपुर (2015) से प्रकाशित है।

इसके अतिरिक्त ‘‘श्रीमद्भागवत की श्रीधरीटीका का हिंदी अनुवाद’’ अभी अपूर्ण एवं अप्रकाशित है।