20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
इन्द्रप्रकाश शास्त्री
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जन्म 15 अक्टूबर 1636
जन्म स्थान ग्राम शमसपुर भूड
स्थायी पता
ग्राम शमसपुर भूड मिलक फत्ता तहसील-सहसवान, जिला-बदायूँ

इन्द्रप्रकाश शास्त्री

पिता’’ मलखान सिंहो मल्लखनिकेसरी,

जीवन कप्रदात्री मम ‘‘जीवनी’’ स्वनामधन्या।

महाबानदीतटे जनपदे बदायूँ नाम्नि,

जन्मभूमिः शमसपुरग्रामो मिल्क फत्ता।।

मीनूमधु मंजूपुत्र्यौ राकेश-सुनील पुत्रौ,

शीलवती ‘‘शान्ति देवी’’ गृहिणी हितावहा।

वाङ्मयाचार्येन्द्र प्रकाशाभिधेन कृता,

दयानन्दयतिमवलम्बय काव्य-रचना।।

स्वलिखित उपर्युक्त पद्यों के अनुसार आचार्य इन्द्र प्रकाश शास्त्री का  जन्म ग्राम शमसपुर भूड मिलक फत्ता तहसील-सहसवान, जिला-बदायूँ में दिनांक 15 अक्टूबर सन् 1636 ई. में हुआ। इनकी माता का नाम जीवनी देवी और पिता का नाम श्री मलखान सिंह है। प्रारंभ से ही आप तीव्र बुद्धि और नम्र स्वभाव के रहे हैं। शिक्षा दीक्षा का कार्य इनके ताऊ श्री राजा राम (बाद में संन्यासी सदानन्द जी) द्वारा गुरुकुल महाविद्यालय सूर्यकाण्ड बदायूँ में कराया गया। संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से शास्त्री परीक्षा अंग्रेजी विषय लेकर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इन्हें अंग्रेजी भाषा पढ़ाने का श्रेय इनके साथी श्री जयदेव शास्त्री को है। गुरुकुल में ज्येष्ठ भ्राता श्री यशपाल शास्त्री ने संस्कृत अनुवाद सिखाया। व्याकरण, दर्शन, साहित्य आदि के गुरु श्री पं. ब्रज नन्दन जी मिश्र थे। इनके चार बड़े भाई श्री हमीर सिंह, शंकर सिंह, जोबा सिंह और भोले सिंह थे। इनकी छोटी बहिन का नाम कमला है। 1958 में श्रीमती शान्ति देवी आपका से विवाह हुआ। श्री राकेश कुमार और श्री सुनील कुमार- पुत्रगण तथा मंजू, मीनू और मधु पुत्रियां है। साधारण किसान के घर जन्म लेकर परिश्रम से सरस्वती साधनाकर बनारस संस्कृत विश्वविद्यालय से साहित्याचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने संस्कृत पाठशाला सहाबर जिला-एटा में दो वर्ष अध्यापन किया और व्यक्तिगत रूप से अध्ययन कर परीक्षायें देते रहे। गुरुकुल गंगीरी, अलीगढ़ में प्रधानाचार्य पद पर कार्य किया। वहाँ लगभग दस वर्ष सेवा की। सन् 1965 ई. से दो वर्ष तक गुरुकुल विश्वविद्यालय, वृन्दावन में अध्यापक रहे और इसी बीच संस्कृत एम. ए. प्रथम श्रेणी में तथा हिन्दी में एम. ए. द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण किया और जुलाई 1667 ई. में ‘‘सुभाष इण्टर कॉलेज’’, मथुरा में संस्कृत-हिन्दी प्रवक्ता पद पर कार्य किया। सन् 1676 ई. में आपसी सहमति से स्थानान्तरिक होकर जनता इण्टर कालेज में पहले वर्ष प्रवक्ता और दूसरे ही वर्ष प्रधानाचार्य पद पर नियुक्त हो गये। वहाँ प्रधानाचार्य रहते हुए ही काव्य-साधना में रुचि जागृत हुई और सन् 1664 ई. से ‘‘भारते में रतिः ’’ तथा ‘‘क्रान्तिरश्मिः’’ मुलायमशतक, दयानन्दचरितामृतम्, कृष्णचरितामृतम, इन्द्रगीतांजलि, आर्यविजयः, जागृतिः, विजय-वैजयन्ती, वंचना, चेतना, लालूशतकम् आदि कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं।

आत्मकल्याणसाधनम्, गीतिसंग्रहः, समीक्षाशतकम् प्रार्थनाप्रदीप, सप्तसुमन, गवांगचिकित्सा शतकम्, इन्द्रगर्जना, आर्यरत्नसमुच्चयः, उद्बोधनम्, विचारमन्थन, आदि अप्रकाशित हैं।

आप छन्दों के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन लेकर आये हैं। इनके अनुसार सभी छन्द मात्रिक सम्भव हैं। साथ ही वर्गों के आधार पर वर्णिक छन्द में भी यथासम्भव कठिनाई आने पर मात्रिक गणना द्वारा पूर्ति कर काव्य-रचना की जा सकती है। इन्होंने अनेक हिन्दी छन्दों को संस्कृत भाषा में कुशलतापूर्वक उतारा है जो एक परिश्रम साध्य कार्य है।