20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
अखिलानन्द शर्मा
क्या आपके पास चित्र उपलब्ध है?
कृपया upsanskritsansthanam@yahoo.com पर भेजें

जन्म स्थान ग्राम चंद्र नगर
निधन 28 मई 1958
स्थायी पता
हाउस नंबर 99 मोहल्ला पवित्र पुरी अनूप शहर

अखिलानन्द शर्मा

पंडित अखिलानंद शर्मा का जन्म संभल जनपद के गुन्नौर तहसील अंतर्गत स्थित चंद्र नगर (चंदू नगला) नामक ग्राम में हुआ। पं. भगीरथीलाल इनके पितामह, पिता श्री टीकाराम शास्त्री एंव माता श्रीमती सुबुद्धि देवी थीं पंडित शर्मा का जन्म विक्रम संवत् 1937 माघ शुक्ल तृतीया को शतभिषा नक्षत्र में हुआ। जैसा कि स्वयं कवि ने कहा है।

ऋषि विह्निनन्दसोमैर्विरुद्धगत्या समन्विते वर्षे।

मज्जन्मचन्द्रनगरे समभून्माघेसिते तृतीयायाम्।।

(सनातनधर्मविजयमहाकाव्य 25/84)

पिता द्वारा गंगा की रेती में अक्षर ज्ञान कराया गया, तत्पश्चात्, प्रथमा मध्यमा, विशारद की उपाधियां प्राप्त कीं। शास्त्री तथा काव्यरत्न की परीक्षएं बंग विश्वविद्यालय से तथा जातीय परिषद् से साहित्य रत्नाकर की उपाधि प्राप्त की। इन्हें घटिका शतक की उपाधि प्राप्त होने का भी उल्लेख प्राप्त होता है। पं. युगलकिशोर से व्याकरण तथा पं. विष्णुदत्त जी से साहित्य का ज्ञान अर्जित किया।

युगलकिशोरगुरुभ्यो व्याकृतिमादावधीत्य समयेन।

श्रीविष्णुदत्तपाद प्रसादलब्धं कवित्वमायाप्तम।।

(सनातनधर्मविजय महाकाव्य 25/89)

 श्री सुदर्शनाचार्य जी से गौतम, कणाद के प्राच्य नव्य न्याय दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया। काव्य लेखन तथा शास्त्रार्थ में विशेष अभिरुचि थी। 27 वर्षों तक आप केवल संस्कृत भाषा में व्यवहार करते थे उसके बाद हिंदी सीखी। इन्होंने यायावर वृत्ति से रहकर अनेकत्र अध्यापन करते हुए संस्कृत साहित्य की श्री वृद्धि की। आपने 2 वर्ष सहस्रार्जुन पुर (सहसवान), 1 वर्ष हरदोई रियासत में एवं 1 वर्ष मुंबई अध्यापन किया तथा गुरुकुल विश्वविद्यालय, वृंदावन आदि स्थलों पर भी अध्यापन कार्य किया है।

पंडित अखिलानंद शर्मा का विवाह 26 वर्ष की आयु में अनूपशहर निवासी गंगा प्रसाद जी शर्मा की सुपुत्री मालती देवी से हुआ। 8 संतानों में 3 पुत्र मुनीश्वर दत्त, यज्ञेश्वरदत्त, नरेश दत्त तथा 5 पुत्रियाँ गायत्री देवी, कौशल्या देवी, विद्या, विमला कमला थीं। 1937 ई. के बाद पंडित शर्मा अनूप शहर में निवास करने लगे इनका वह निवास स्थान आज भी हाउस नंबर 99 मोहल्ला पवित्र पुरी अनूप शहर में स्थित है। 28 मई. 1958 को 78 वर्ष की आयु में आपका निधन हो गया।

आपने शताधिक ग्रंथों का प्रणयन किया। जिनमें अधिकांश मौलिक हैं, मात्र तीन सम्पादित और एक (सत्यार्थ प्रकाश का संस्कृत अनुवाद) अनूदित कृति का उल्लेख मिलता है। साहित्य की लगभग सभी विधाओं में आपकी लेखनी स्वतंत्र रूप से चली। जिनमें महाकाव्य, खंडकाव्य, गीतिकाव्य, चंपू काव्य, नाटक तथा आलोचना ग्रंथ सम्मिलित हैं। पन्द्रह वर्ष की अवस्था से ही पद्य रचना आरम्भ कर दी थी। इन्होंने चन्द्रदिग्विजयमहाकाव्य में कहा है कि लघु-वृहद् 108 से अधिक ग्रन्थों का प्रणयन किया, जिनकी पद्य संख्या 35000 है-

सार्द्धत्रिलक्षमित पद्य पुराणमुद्भावनेन नवनिर्मित काव्यमालाम् ।

मालामिवातिसुषमावगुम्पल्यययन विद्वज्जनोपह्रतये विहिता निबन्धाः।।

 श्री चन्द्रदिग्विजय महाकाव्य 18-199

महाकाव्य -

1. श्रीसनातनधर्मविजयमहाकाव्य

2. दयानन्ददिग्विजयमहाकाव्य

3. श्रीबल्ल्भदिग्विजय महाकाव्य 

4. श्रीकृष्णचरितमहाकाव्य

5. श्रीधर्मसंघविजयमहाकाव्य

6. हनुमद्दिग्विजय महाकाव्य

7. श्री चन्द्रदिग्विजयमहाकाव्य

8. परशुरामदिग्विजयमहाकाव्य आदि।

अन्य ग्रन्थ- ब्रह्मवेदविवरण (लघुकाव्य), सनातनधर्मसर्वस्व, रमामहर्ष संवाद (खण्ड काव्य) आदि खण्ड काव्य, विज्ञानोदयचम्पू, द्विजराजविजयचम्पू, वैधव्य विध्वंसनचम्पू आदि चम्पूकाव्य।

काव्यदोष प्रकाश, महाकविचरित आदि काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ।

गोपथप्रदीप, शतपथप्रदीप आदि अनेक टीकायें।

पिंगलछन्दः सूत्र भाष्य, काव्यालंकारसूत्र भाष्य, निरुक्तभाष्य तथा अष्टाध्यायी भाष्य आदि भाष्यों एवं व्याख्यायें।

इसके अतिरिक्त कवि द्वारा अनेक गद्य काव्य, गीतिकाव्य, चम्पूकाव्य, रूपक तथा लघुकाव्यों का प्रणयन किया गया है। जिनमें अधिकांश कृतियां अनुपलब्ध हैं।  

आचार और विचार, भारत में शक्ति पूजा, असवर्ण विवाह का परिणाम, वैदिक वर्णसंकरों का शास्त्रीय विवेचन, अन्त्यजोद्धार प्रकार आदि निबन्ध भी वी.एन. प्रेस इटावा से प्रकाशित हो चुके हैं। कवि की अधिकांश रचनाओं के प्रतिपाद्य धर्म, सज्जनचरित एवं सामाजिक विषय रहे हैं। काव्यशास्त्रीय लक्षण ग्रन्थों में उदाहरण के  रूप में  प्रयुक्त शृंगार रसमयी पद्यों से क्षुब्ध कवि ने उनके स्थान पर स्वरचित पद्यों का  प्रयोग कर नवीन व्याख्यायें प्रस्तुत की हैं।

पं. अखिलानन्द शर्मा की कृतियों में शास्त्रीय तत्त्वों का यथोचित संयोजन प्राप्त होता है। कवि के पद्यों में जहां पदलालित्य है वहीं अर्थ गाम्भीर्य भी प्राप्त होता है। दस श्लिष्ट  अर्थों वाला यह पद्य अनुप्रास व सर्वतोगमनबन्ध का भी सुन्दर निदर्शन है-

न ते न ते ते न ते न ते न ते न न ते न ते!

न ते न ये ये न ते  न ते न ये  न न ये न ते।।  

                    (दयानन्ददिग्विजयम् 14/190)