20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
सरयू प्रसाद शास्त्री
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जन्म 18 जून 1884
जन्म स्थान ग्राम पहाड़गाँव,
निधन 01 नवम्बर 1980

सरयू प्रसाद शास्त्री

श्रीमद्भागवत के कुशल वक्ता, कवि, लेखक आदि विशेषणों से विभूषित पण्डित सरयू शास्त्री का जन्म 18 जून, 1894 ईसवी में ग्राम व पोस्ट पहाड़गाँव, तहसील कोंच, जिला जालौन, उत्तर प्रदेश में हुआ था। आपके पिता स्व. बलदेव प्रसाद  शर्मा एवं माता स्व. गीता देवी थीं। आपकी पत्नी स्व. श्रीमती राधारानी से 2 पुत्र पैदा हुए स्व. राजेन्द्र प्रसाद शास्त्री, स्व. दयाशंकर शास्त्री पर ईश्वर की नियति के कारण पुत्रों का स्वर्गवास असामयिक एवं अति अल्पायु में ही हो गया। आज उनके वंशज के रूप में कोई भी नहीं है। उनके पुत्र के दामाद श्री संतोष कुमार द्विवेदी जी मोंठ, झांसी उ. प्र. है।

आप संस्कृत एवं हिंदी साहित्य के मर्मज्ञ, ज्योतिष् शास्त्र के विशिष्ट ज्ञाता, ज्योतिष् मूर्ति कहे जाने वाले श्रीमद्भागवत् के कुशल वक्ता एवं मर्म के जानकार थे। जीवन भर लिखते रहे, घर में ही स्कूल बनाकर विद्यार्थियों को शिक्षा देते थे, मंदिर परिसर में संस्कृत पढ़ाते थे, श्री राम इंटर कॉलेज पहाड़गांव, जालौन में छात्रावास को चलाकर विद्यार्थी तैयार करना आदि दायित्व सम्पादित कर आप अपने जीवन में एक अद्भुत तपस्वी व्यक्ति रहे।

आपकी प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक पाठशाला पहाड़गाँव कोेंच जालौन से हुई। परंपरागत उच्च शिक्षा के रूप में शास्त्री वर्ष 1912 एवं आचार्य 1916 ईस्वी में बनारस संस्कृत कॉलेज वाराणसी से आपने किया। छोटे-से गांव से जाकर काशी में अध्ययन करना आपके लिए बड़े सौभाग्य का विषय रहा।

आपकी पुस्तकों की संख्या 20-25 थी। लेकिन 5-7 पुस्तकों के ही नाम प्राप्त हो पाए हैं। जिनमें कई हस्तलिखित पुस्तकें भी प्राप्त की गई लेकिन कोई वंशज न होने के कारण उनके कठिन परिस्थितियों में भी किए गए अद्भुत और मौलिक लेखन को संरक्षण नहीं प्राप्त हो पाया।

रचनाएँ-1. अभिज्ञानशांकुतलम् (अनुवाद ग्रंथ, हिंदी पद्यात्मक) प्रकाशक दयाशंकर पालीवाल 1968, मुद्रक विष्णु दत्त त्रिपाठी शास्त्री प्रेस उरई, जालौन

2. कालिदासनाट्यम् (अनुवाद ग्रन्थ) 3. हरिश्चंद्रनाट्यम् (हिन्दी पद्यात्मक, अनूदित ग्रंथ) 4. काव्यसुधाकर (हिन्दी पद्यात्मक) 5. श्री दुर्गाष्टोत्तरी (मौलिक ग्रंथ) प्रकाशक, रामनारायण पालीवाल, पहाड़गांव, जालौन श्यामलाल पहाड़िया द्वारा हिसाबी प्रेस, कोंच में मुद्रित

रचना वैशिष्ठ्य-में आपने संस्कृत में भी रचनाएं की हैं लेकिन वह अब वर्तमान में अनुपलब्ध हैं। कुछ रचनाओं में कथानक के अनुरूप संस्कृत गद्यांशों का अनुवाद शुद्ध और सरलहिंदी की खड़ी बोली में हुआ है। पद्यांशों के अनुवाद में व्रजभाषा का भी आश्रय लेकर अनूदित ग्रंथों को सौष्ठव प्रदान किया गया है।

संस्कृत में भी मौलिक रचनाएं लिखीं। हिंदी के अनूदित ग्रंथों में आपके स्वरचित संस्कृत श्लोक प्राप्त हुए पर कोई वंशज न होने के कारण प्रतियां खंडित हो गईं विलुप्त हो गईं। आपने संस्कृत शिक्षण एवं संभाषण में सैकड़ों विद्यार्थी तैयार किए। परंपरा एवं शिष्य परंपरा अज्ञात है। आपके पुत्र के दामाद को कई यहां-वहां बिखरी हस्तलिखित पुस्तकें  प्राप्त हुईं थीं। पर अद्यावधि असंरक्षण के कारण नष्ट हो गई हैं। आप भगवती लक्ष्मी के परम उपासक थे परम श्रद्धा रखने वाले थे। आपकी संस्कृत के प्रति श्रद्धा, निष्ठा एवं समर्पण अद्भुत थीं ।

आपके दोनों पुत्रों की आपके जीवित रहते मृत्यु होना उसके बादका आपका किसी तरह चलने वाला जीवन निश्चित ही ईश्वर का प्रकोप ही रहा। आज आपके पैतृक गांव में कोई नहीं रहता। ज्योतिष् के ज्ञान के विषय में किंवदंती या यथार्थ के आधार पर आप ज्योतिष को साक्षात् अनुभव करते थे एवं उसके प्रयोग आपको प्रत्यक्ष दिखाई देते थे। आपका देहावसान 11 नवंबर, 1980 ईस्वी में हुआ।