20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
शंकर दयाल शास्त्री
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जन्म 14 अप्रैल 1981
जन्म स्थान कैथी
निधन 20 दिसंबर 2007
स्थायी पता
कैथी, तहसील राठ, जिला हमीरपुर उत्तर प्रदेश

शंकर दयाल शास्त्री

होनहार बालक, मेधावी छात्र, संघर्षशील नवयुवक, समाजसेवी, आदर्श शिक्षक एवं शिक्षाविद्,  संस्कृत-हिन्दी साहित्य के प्रकांड पंडित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और ज्योतिष शास्त्र के उद्भत विद्वान् जैसे अनेक विशेषणों और उपाधियों से विभूषित डॉक्टर शंकर दयाल रावत (शास्त्री) का जन्म 14 अपैल, 1918 ईस्वी में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री कन्हैया लाल रावत था जो स्वयं में संस्कृत साहित्य एवं ज्योतिष शास्त्र के निष्णात विद्वान् थे। आपका जन्म कैथी, तहसील राठ, जिला हमीरपुर उत्तर प्रदेश में हुआ था। आपका विवाह 1940 ईस्वी में रामादेवी से हुआ जिनसे आपको आठ पुत्रों की प्राप्ति हुई। आज लगभग सभी पुत्र विभिन्न पदों पर यथास्थान कार्यों में लगे हुए हैं। वर्तमान आवास नया पटेल नगर, उरई में है।

शास्त्री जी प्रारंभिक शिक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आदर्श संस्कृत महाविद्यालय में 1940 ईस्वी में प्रथमा से मध्यमा संस्कृत तथा व्याकरण के साथ उत्तीर्ण किए। संस्कृत महाविद्यालय उरई में आपके गुरु पं. बालमुकुंद शास्त्री आपकी प्रतिभा से परिचित हुए एवं आपने अपनी शिक्षा उन्हीं गुरु के निर्देशन में प्राप्त की।

मध्यमा के बाद आपने 1949 ईस्वी में गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेज, वाराणसी से शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की एवं आधुनिक योग्यता में बी.ए. वर्ष 1953, एम.ए. वर्ष 1956 में संस्कृत साहित्य से आगरा विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण की। इसी बीच आपने बोर्ड से हाईस्कूल 1947 एवं इंटर 1951 ईस्वी में पास किया। आपकी विशेषज्ञता का क्षेत्र संस्कृत साहित्य, गीता दर्शन एवं ज्योतिष शास्त्र था। विशेष रूप से आपने हिन्दी, संस्कृत के साथ उर्दू भाषा में भी डिप्लोमा किया था।

30-32 वर्षों से ज्यादा संस्कृत की सेवा के लिए आपने विभिन्न संस्थाओं में उत्तरदायित्व का निर्वहण किया, जिसमें आदर्श महाविद्यालय उरई में प्रबंधतंत्र के आप संरक्षक एवं अध्यक्ष रहे। आप विश्व हिंदू परिषद जनपद जालौन के जिलाध्यक्ष वर्ष  1987 से 2007 तक  रहे। आपकी ख्याति का माहात्म्य इसी से लगाया जा सकता है कि आप के देहावसान के बाद जनपद के तत्कालीन जिलाधिकारी रिज्यान सैंफिल (2005-2008) से लेकर जनपद एवं बाहर की विभिन्न संस्थानों के प्रतिनिधियों ने अपने शोकसंदेश डायरी एवं पत्रों के माध्यम से प्रेषित किए जिनकी संख्या 50 से अधिक थी।

शिक्षा ग्रहण करने के अनंतर अध्यापन कार्य में आपने सर्वप्रथम आर्य कन्या इंटर कॉलेज  उरई में हिंदी-संस्कृत के प्रवक्ता पद पर 29 जुलाई, 1944 से 14 मई 1953 तक कार्य किया। तदनंतर गांधी इंटर कॉलेज उरई में संस्कृत के आप नियमित प्रवक्ता सन् 1969 ईस्वी तक रहे। इसके बाद गांधी महाविद्यालय उरई के संस्थापक सदस्यों में से एक आप महाविद्यालय में ही स्थापना वर्ष 1969 से ही सेवानिवृत्ति वर्ष 1978 पर्यंत अध्यापन  कार्य किया। सेवानिवृत्ति के बाद भी आपने निःशुल्क आर्य कन्या इंटर कॉलेज में अध्यापन एवं सामाजिक तथा राजनीतिक कार्यों में अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज कराई।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के नाते आप जनपद जालौन में राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे। गांधी जी के आंदोलन में आप को जेल भी जाना पड़ा। साथ ही आप अनेक जनपदीय सामाजिक कार्यों  में लगे रहे। जनपद के विद्यालयों-महाविद्यालयों तथा अनेक संस्थाओं की कार्यकारिणी के सदस्य रहे।

विशेष रूप से देखा जाए तो आपने गीता के मर्म को जाना और अपने जीवन में उतारा। आप त्यागी पुरुष के नाम से जाने जाते थे एवं श्रीमद्भगवद्गीता में आप अगाध श्रद्धा रखते थे। गीता का प्रवचन किया करते थे।

आपको राज्य पुरस्कार के रूप में 15 अगस्त, 1972 को 25 वीं स्वतंत्रता जयंती पर माननीय कमलापति त्रिपाठी मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का ताम्रपत्र भेंट किया गया। इसी कड़ी में  जिलाधिकारी जालौन ने भी उपरोक्त कार्य के लिए 2 अक्टूबर, 1997 को भी आपको सम्मानित किया। आपने अपने जीवन में अनेक सम्मान प्राप्त किए। आप जनपद में NCC के कमांडेट हेड भी रहे। आपको दयानन्द पब्लिक स्कूल उरई द्वारा 5 सितंबर, 1957 को शिक्षक सम्मान से भी सम्मानित  किया गया। आपकी गुरुपरंपरा में पं. बालमुकुंद शास्त्री, पंडित विश्वनाथ व्यास आदि रहे। शिष्य परंपरा भी आपकी लम्बी रही।

प्राप्त सूचना के आधार पर आपने दो से तीन ग्रन्थों की रचना की थी लेकिन आपके सबसे कनिष्ठ पुत्र श्री लक्ष्मीकांत रावत के द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर आपकी एकमात्र पुस्तक सुरक्षित है जिसका नाम है ‘‘रामायणमंजरी’’ जो लगभग 1970 ईस्वी में कानपुर से झांसी प्रकाशन से प्रकाशित हुई। इस ग्रंथ का वैशिष्ट्य था कि यह बुंदेलखण्ड विश्वविद्यालय झांसी के महाविद्यालयों में प्रचलित  सन् 1975 से सन् 1982 तक कोर्स के रूप में पढ़ाई गई।

आपके सबसे कनिष्ठ पुत्र श्री लक्ष्मीकांत रावत जी आपके नाम से उरई शहर में ही आईटीआई कॉलेज का संचालन कर रहे हैं। आपका देहावसान 20 दिसम्बर 2007 को हुआ।


पुरस्कार

राज्य पुरस्कार