20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
डॉ. पूरन सिंह निरंजन
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जन्म 01 दिसंबर 1952
जन्म स्थान ग्राम सिमिरिया
स्थायी पता
ग्राम सिमिरिया पोस्ट धवा (मड़ावर) जिला ललितपुर

डॉ. पूरन सिंह निरंजन

डॉ. पूरन सिंह निरंजन का जन्म 01 दिसम्बर 1952 ईस्वी में हुआ। आपके पिता स्व. श्री सरदार सिंह पटेल एवं माता स्व. श्रीमती फूलन पटेल एक कुशल गृहिणी थीं।

आपका जन्म ग्राम सिमिरिया पोस्ट धवा (मड़ावर) जिला ललितपुर में हुआ। लेकिन आपने अपने जीवन के लगभग 40 वर्ष उरई जालौन में प्राध्यापक के रूप में सेवायें दीं। वर्तमान में भी आप दयानन्द वैदिक कॉलेज, उरई जालौन से सेवानिवृत्त होने के बाद रामनगर (नई कॉलोनी) ललितपुर में ही आवास बनाकर संस्कृत की सेवा करने में सतत संलग्न हैं। आपका विवाह 1964 ईस्वी में हुआ।आपकी पत्नी श्रीमती देशरानी से 1 पुत्र एवं 3 पुत्रियां हुईं। आपके पुत्र डॉ. हरिओम शरण निरंजन अपने विषय के योग्य व्यक्ति हैं। पुत्रियों में श्रीमती ऋचा पटेल, श्रीमती वत्सला पटेल एवं श्रीमती सावित्री पटेल है।

डॉ. पूरन सिंह की शिक्षा प्राथमिक विद्यालय सिमिरिया ललितपुर से प्रारंभ हुई। माध्यमिक शिक्षा सन् 1966 से सन् 1970 के बीच पूर्ण करने के बाद उच्च शिक्षा में आपने बी.ए. (1972) बुन्देलखण्ड महाविद्यालय झांसी से और एम. ए. (1974) संस्कृत विषय के साथ कानपुर के कॉलेज से किया।

उच्चशिक्षा ग्रहण करने के बाद आपने शोध कार्य पूना विश्वविद्यालय महाराष्ट्र से सन् 1985 ईस्वी में  पूर्ण किया। अंग्रेजी में लिखे आपके प्रकाशित शोधप्रबन्ध का विषय था- The Rupakashatkam of Vatsaraja : A Cultural Study.

आप हिन्दी और संस्कृत के साथ अंग्रेजी के भी एक बड़े ज्ञाता तथा थे। संस्कृत नाट्य-साहित्य  के विशेषज्ञ रहे हैं। शैक्षणिक अनुभव में  आपसे 1974 से 2013 ईस्वी तक एक 39 वर्ष का बड़ा कालखण्ड जुड़ा हुआ है।

आप दयानन्द वैदिक कॉलेज उरई, जालौन में प्राध्यापक के पद पर 39 वर्ष (1974-2013) कार्य करने के बाद 2013 में सेवानिवृत्त हुए। आपने कई  वर्ष संस्कृत विभागाध्यक्ष पद के गुरुतर दायित्व का निर्वहण किया।

बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झांसी से सम्बद्ध इस महाविद्यालय में आपके शोधनिर्देशन में 8 विद्यार्थियों ने विद्या वारिधि (Ph.D.) की शोध उपाधि प्राप्त की।

गुरु परम्परा में डॉ. निरंजन ने पं. ब्रह्मदत्त जिज्ञासु तथा युधिष्ठिर मीमांसक के बहुमूल्य ग्रन्थ ‘‘संस्कृत पठन-पाठन की अनुभूत सरलतम विधि, भाग-.1 और .2 के माध्यम से उक्त दोनों विभिूतियों को ’’ संस्कृत व्याकरण’’  हेतु अपना भावनात्मक गुरु मानकर उक्त विद्या सीखी।

शिष्य परंपरा में विभागीय अध्यापन के अतिरिक्त लगभग 60 शिष्यों को आपने संस्कृत संभाषण में प्रशिक्षित कर संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए तैयार किया। अन्य संस्थाओं में दायित्व निर्वहन करते हुए आप कर्मयोग महाविद्यालय इटौरा, जालौन में सन् 2013-14 में प्राचार्य के रूप में कार्यरत रहे। तदनन्तर सरदार पटेल महाविद्यालय मिर्चवारा, ललितपुर में भी सन् 2014-16 में प्राचार्य के रूप में कार्यरत रहे।

रचनाएं-- डॉ. निरंजन का शोधकार्य तो प्रकाशित था ही साथ ही आपका सम्पूर्ण रचना संसार हिन्दी भाषा में ही लिखा गया। जिनमें .4 मौलिक रचनाएं और .2 ग्रन्थों का संपादन किया गया। आपकी लगभग सभी रचनाएं हिन्दी और शोधकार्य अंग्रेजी भाषा में रहा

1. दीप जलाये तूफानों में-चित्रांश फ्लेक्स ऑफसेट प्रिटिंग ललितपुर सन् 2015.

2. श्रद्धांजलि- न्यू राठौर ऑफसेट प्रेस, नझाई बाजार, ललितपुर सन् 2012

3. दो शब्द: दो बूंद आंसू- राठौर प्रेस, नझाई बाजार, ललितपुर सन् 2008.

4. Social Life in the Works of Vatsaraj. नाम से आपका शोधप्रबन्ध ‘‘ईस्टर्न बुक लिंकर्स, 5825, न्यू चंद्रावल, जवाहर नगर, दिल्ली से सन् 1999 में प्रकाशित हुआ।

आपके प्रकाशित शोधपत्र लगभग 20 की संख्या में थे। जिनमें निम्न प्रमुख हैं-

1. संस्कृत भाषा के उत्थान में बर्हिर्गत एवं अंतर्गत अवरोधक तत्त्व-

राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी स्मारिका 2011 श्री आदर्श संस्कृत महाविद्यालय उरई जालौन द्वारा प्रकाशित

2. वैदिक साहित्य  में आपदा प्रबंधन एवं समाज विज्ञान-शोधधारा जर्नल, अंक.1, वर्ष-.392007

3. वर्तमान परिस्थितियों के परिष्कार हेतु बौद्धदर्शन की उपादेयता- राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी स्मारिका 2006, गांधी महाविद्यालय उरई जालौन द्वारा प्रकाशित 4. आचार्य कौटिल्य का दैवी आपदा प्रबंधन-हिन्दुस्तानी पत्रिका, अंका .1 वर्ष- 2005 5. बुन्देलखण्ड के संस्कृत महाकवि कृष्ण मिश्र एवं वत्सराज झांसी महोत्सव स्मारिका वर्ष-1997 आदि।

शोधपत्रों के साथ-साथ आपने कई लेख भी लिखे, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं।

1. वर्तमान में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता के अवरोधक तत्त्व-शोधप्रकल्प अंक-37, वर्ष-2006

2. कौटिल्य अर्थशास्त्र में अभिव्यंजित दलित चेतना-राष्ट्रीय हिंदी शोध संगोष्ठी स्मारिका, वर्ष 2005, डी.वी. कॉलेज उरई (जालौन) 3. प्राचीन अर्थशास्त्र की अर्वाचीन उपादेयता- सम्मेलन पत्रिका अंक

3 वर्ष-2005

4. शत्रुघात हेतु आचार्य कौटिल्य के युद्धेतर उपाय: ऋतावरी अंक 60, वर्ष-2004

5. आचार्य कौटिल्य का शिक्षादर्शन-परिप्रेक्ष्य पत्रिका अंक 03, वर्ष 2004।