20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
विश्वनाथ व्यास
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जन्म 01 जनवरी 1905
जन्म स्थान ग्राम हरचन्दपुर
स्थायी पता
ग्राम हरचन्दपुर, ब्लॉक कदौरा

विश्वनाथ व्यास

पण्डित विश्वनाथ व्यास का नाम 100 से अधिक वर्षों की जालौन जनपद की विद्वत् एवं पाण्डित्य परम्परा में एक वटवृक्ष के रूप में सर्वप्रथम लिया जाता है। आचार्य व्यास जी बारे में कहा जाता है कि आपका कृतित्व समृद्ध नहीं रहा है अर्थात् एक भी ग्रन्थ की रचना तो नहीं की, लेकिन आपके शिष्यों की परम्परा बड़ी लम्बी है। जिनका अपने युग में जनपद में बड़ा नाम हुआ करता था। आपके शिष्यों में कई बड़े नाम हुए जिन्होंने संस्कृत की विभिन्न माध्यमों से कई वर्षों तक सेवा की। साथ ही अनेक पदों पर रहकर संस्कृत का गौरव बढ़ाया।

पं. विश्वनाथ का जन्म जनपद जालौन के ही ग्राम हरचन्दपुर, ब्लॉक कदौरा क्षेत्र में 1 जनवरी, 1905 को एक संस्कृतनिष्ठ परिवार में हुआ था। आपके पिता श्री महेश्वर प्रसाद व्यास एक धर्मपरायण व्यक्तित्व थे। और माता श्रीमती जानकी देवी एक गृहिणी थीं।

आपने अपने गांव की प्राथमिक पाठशाला, हरचन्दपुर से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण कर प्रथमा से लेकर आचार्य पर्यंत संस्कृत की सम्पूर्ण पारंपरिक शिक्षा कल्लूमल संस्कृत महाविद्यालय, कानपुर से अर्जित की। शिक्षा के साथ-साथ आपका व्यक्तित्व अत्यन्त परम्परावादी था।

आपके 2 विवाह हुए।  जिसमें प्रथम 1935 और द्वितीय 1942 ई. में हुआ था। प्रथम पत्नी के शीघ्र देवलोक गमन के बाद आपकी दूसरी धर्मपत्नी श्रीमती दुलारी देवी से श्री राजीव लोचन व्यास (सेवानिवृत्त, पूर्व प्रधानाचार्य उदनपुर इंटर कॉलेज जालौन) और श्री पद्मलोचन व्यास (वर्तमान में राजकीय इंटर कॉलेज डकोर जालौन में सरकारी पद पर सेवारत हैं) तथा दो पुत्रियां श्रीमती श्यामा और श्रीमती कुन्ती देवी प्राप्त हुईं।

आचार्य व्यास ने अध्ययन के बाद आदर्श संस्कृत महाविद्यालय उरई में लगभग 10वर्ष अध्यापन कार्य किया जिसमें आप महाविद्यालय के प्राचार्य पद भी कई वर्ष रहे। तदनन्तर सर्वोंदय इंटर कॉलेज कालपी जालौन में 10वर्ष कार्य करते रहे।

आचार्य विश्वनाथ हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी के साथ उर्दू भाषा की भी बोलचाल में सिद्धता रखते थे। आपका शैक्षणिक अनुभव लगभग 20 वर्षों का था और विशेष रूप से राजनीतिक अनुभव संपूर्ण जीवन का रहा है।

आपकी शिष्य परंपरा में जालौन जनपद में संस्कृत साहित्य के देदीप्यमान  नक्षत्र डॉ. शालिग्राम शास्त्री, स्व. विद्वान पं. शंकर दयाल शास्त्री एवं  पं. राजाराम शास्त्री जैसे बड़े नाम शामिल हैं।

आपकी गुरु परम्परा में प्रमुख श्री वैकुंठनाथ शास्त्री हैं जो कि कल्लूमल संस्कृत महाविद्यालय कानपुर के विद्वान आचार्य रहे हैं।

आप स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे। केंद्र और राज्य की पेंशन के धारक रहे और राजनीतिक अनुभव को संस्कृत की सेवा में विचारगोष्ठी, सम्मेलन आदि के माध्यम से अत्यधिक प्रयोग किया। सक्रिय राजनीति में रहते हुए आपने स्थानीय बावनी शासक के शासन को उखाड़ फेंकने में  नेतृत्व किया और उस संघर्ष में हुतात्माओं की स्मृति में ‘‘शहीद स्मारक भवन हरचंदपुर’’ बनवाया जो आपके राजनीतिक जीवन के उत्कर्ष का सूचक था। इसके बाद अपने दौर में आप बावनी स्टेट कदौरा के 3 माह तक मुख्यमंत्री भी रहे।

श्रीमद्भागत के मर्मज्ञ विद्वान् , कुशल वक्ता और अपने दौर के पंडित प्रवीण व्यक्तित्व रहे।

जुलाई 1997 ईस्वी में आपके देहावसान के बाद भी जीवन काल में तैयार किए गए विद्यार्थी, राजनीतिक रूप से सक्रिय होने के कारण तथा संस्कृत के प्रति किए गए कार्यों से आज भी आपका नाम जनपद के श्रेष्ठ विद्वत्पुरुषों में लिया जाता है।