20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
डॉ महेन्द्र वर्मा
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जन्म 05 मार्च 1950
जन्म स्थान गांव पिपरी
उपनाम मधुप
स्थायी पता
हरदोई,आजादनगर (निकट रोहित नर्सरी)

डॉ महेन्द्र वर्मा

संस्कृत और हिन्दी के क्षेत्र में अपनी सक्रिय लेखनी से योगदान देने वाले डॉ. महेन्द्र वर्मा ‘मधुप’ का नाम गर्व से लिया जाता है। आपका जन्म मूलरूप से जनपद आजमगढ़ के तहसील बुढ़नपुर में स्थित पिपरी नामक गांव में 5 मार्च, उन्नीस सौ पचपन ई. को हुआ था। आपकी माता स्व. गोमती देवी एवं पिता श्री पतरी वर्मा एक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति रहे हैं। प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक पाठशाला पिपरी से, जूनियर से लेकर इण्टर तक की शिक्षा उद्योग विद्यालय इण्टर कॉलेज कोयलसा तथा बी.ए. की शिक्षा गांधी शताब्दी महाविद्यालय, कोयलसा, आजमगढ़ से हुई। आपने बी.ए. की परीक्षा 1974 ई. में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया तथा 1978 ई. सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य की परीक्षा पुराणेतिहास विषय में उत्तीर्ण की। पौराणिक तथा वैदिक अध्ययन एवं अनुसन्धान संस्थान नैमिषारण्य सीतापुर से 1981 ई. में डॉ. गौरीनाथ शास्त्री कुलपति के निर्देशन में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से विद्यावारिधि (पी-एच.डी.) की उपाधि प्राप्त की। इसी शोध संस्थान में शोध सहायक के रूप में कार्य करते हुए फरवरी 1988 ई. तक कई पुराण शोध प्रोजेक्ट में कार्य करते रहे। पुनः माध्यमिक चयन आयोग से चयनित होकर जे.एन.डी. इण्टर कॉलेज, परसरा में संस्कृत प्रवक्ता के रूप में 1996 ई. तक अध्यापन कार्य किया। सितम्बर 1996 में उच्चतर श्क्षिा चयन बोर्ड से संस्कृत प्रवक्ता के रूप में चयनित होकर सी.एस.एन.पी.जी. कॉलेज, हरदोई में लगभग बीस वर्षों तक अध्यापन कार्य करते हुए 2017 ई. में एसोशिएट प्रोफेसर के पद से अवकाश प्राप्त किया। तदनन्तर अगस्त 2018 से मार्च 2020 तक ग्रामोदय डिग्री कॉलेज डिघिया (मोदीपुर) में प्राचार्य के पद पर कार्य किया।

वर्तमान समय में जनपद हरदोई में अपना स्थायी आवास बनाकर आजादनगर (निकट रोहित नर्सरी) में रह रहे हैं।

हाईस्कूल में अध्ययन के समय से ही हिन्दी कविताओं को लिखने में आपकी रुचि रही है। तत्कालीन इण्टर कॉलेज के हिन्दी प्रवक्ता श्री हरिहर सिंह जी इनकी लिखी कविताओं पर सदैव प्रोत्साहित किया करते थे। जिससे कविताओं को लिखने के प्रति अभिरुचि बढ़ती ही गई। गोरखपुर विश्वविद्यालय में एम.ए. फाइनल में सबसे पहली रचना ‘कीर्तन सरोवर’ प्रकाशित हुई जो सहपाठियों और श्रद्धालुओं द्वारा सराही गई। 1977 ई. में पुराण शोध संस्थान नैमिषारण्य में पहुंचने पर कविता लेखन के प्रति उत्साह बढ़ता ही गया। नैमिष की पूज्या भवानी श्री ललिता महारानी के प्रति अगाध श्रद्धा होने के कारण उनकी स्तुति ‘ललिता चालीसा’ आर्थिक आधार की सम्बल बनी जो 1978 से आज तक लाखों भक्तों के श्रद्धा और विश्वास से पढ़ी जाती है। इस कड़ी में प्रोत्साहित होकर दर्जनों देवी-देवताओं के स्तोत्र जो पौराणिक स्तुतियों के आधार पर लिखे गए हैं, विद्वानों द्वारा समादरणीय हैं। तत्काल में नैमिषारण्य के महत्व को व्यक्त करने वाला कोई अच्छा ग्रन्थ नहीं था। डॉ. गौरानीथ के आग्रह पर नैमिषारण्य पर एक विशिष्ट शोध ग्रन्थ ‘पृथिव्यां नैमिषं पुण्यम्’ लिखा जिसका ‘नैमिषार्यम् शोध पत्रिका’ में विशेषाङ्क के रूप में 1990 ई. में प्रकाशन किया गया जो बुधजनों द्वारा अधिक समादृत हुई। श्री श्री माँ आनन्दमयी द्वारा 1981 ई. में भगवद्गीता की व्याख्या का दायित्व दिया गया जिसे आपने अपनी कुशल रचनाधर्मिता से गीता के श्लोकों को सूत-शौनकादि संवाद जैसी पौराणिक शैली में ‘श्री गीतामानससुधासागर’ की रचना करके सामान्य जनों के लिए सुरुचिकर बनाया, जिसका 2006 ई. में प्रकाशन किया गया। इसी तरह से दुर्गासप्तशती के श्लोकों को चौपाई दोहा छन्दों में आबद्ध कर संस्कृत के श्लोकों का मूलपाठ न कर पाने वाले लोगों के लिए ‘श्रीदुगासप्तशतीमालतीहृदयम्’ की रचना कर सामान्य देवी भक्तों के श्रद्धानुरूप सुलभ बनाया गया है, जो श्रद्धा से नवरात्रों में पढ़ा जाता है। आपके द्वारा संस्कृत के विशिष्ट पौराणिक स्तोत्र हिन्दी में रूपान्तरित कर अनेक देवी-देवताओं के चालीसा के रूप में रचे गए हैं जो बहुत ही श्रद्धा के साथ पढ़े जाते हैं।

आकाशवाणी लखनऊ से 1994 से ही आप जुड़े हैं। संस्कृत वार्ता और काव्यपाठ नवीन विधाओं में लोगों को आह्लादित करते हैं। आकशवाणी लखनऊ से ‘युधिष्ठिर नीति’ पर सीरियल के रूप में कई भागों में प्रसारण भी किया जा चुका है।

जनपद हरदोई और सीतापुर के ऐतिहासिक एवं पुरातात्त्विक दृष्टि से लिखे गए शोधग्रन्थ इन दोनों जनपदों के महत्त्व को रेखांकित करते हैं। अपने हरिद्रोही का खण्डन करके हरिद्वयी (हरदोई) बताकर जनपद का सम्मान बढ़ाया है। डॉ. महेन्द्र वर्मा द्वारा अनेक ग्रन्थ लिखे गए हैं, जिनमें कुछ प्रमुख हैं-(1) ब्रह्मपुराणस्य परिशीलनम् (शोधग्रन्थ) (2) पृथिव्यां नैमिषं पुण्यम् (शोधग्रन्थ) (3) हरदोई (हरिद्वयी) की पौराणिक अस्मिता (4) सीतापुर का ऐतिहासिक महत्त्व (5) महर्षि भृगु और उनकी स्मृति (6) ‘को ब्राह्मण को शूद्रः’ (समालोचनात्मक ग्रन्थ) (7) संस्कृत काव्य कुसुमानि (8) नीतिनवनीतम् (9) भारतदेशगतिम् (10) श्री गीतामानससुधासागर (11) श्री दुर्गासप्तशतीमालतीहृदयम् (12) भवदर्शनसार (13) मधुशतक (14) नैमिषारण्य और मिश्रित तीर्थ माहात्म्य।

दर्जनों देवी-देवताओं के स्तोत्र आकाशवाणी लखनऊ से प्रसारित, दर्जनों वार्ता एवं काव्यपाठ, दर्जनों शोधपत्र विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित किए गए हैं। संस्कृत लोकगीत, गजल विधाओं में प्रस्तुत कुछ संस्कृत काव्यपाठ जो कि आकाशवाणी लखनऊ से प्रसारित किए जा चुके हैं, श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध करते हैं-

‘वर्षम्भारतमखिलम् मधुरम् (10 अप्रैल, 1976)

जीवनम् मानवम् प्राप्य सुदुर्लभम्

व्यर्थं मा कुरु इदं क्रीडने भोजने।। 10 सितम्बर, 2015

पर्यावरणकृतं दूषितम् मानवैः, रक्षितव्यं वयं सावधानेन वै।। 3 जनवरी, 2016

धन्यास्ते रक्षकाः भारतीयाः।

वन्द्यास्ते सैनिकाः भारतीयाः।। 27 नवम्बर, 2016

अद्य प्रसन्ना जाता माता, अद्य प्रसन्ना जाता। 1 सितम्बर, 2019

रम्य रम्यातरं नैमिषं पावनम् क्षेत्रमत्युत्तमं श्लाघनीयम्। 3 जनवरी, 2020

शुणुत भारतीयाः जयाः मम वचनम्।

ध्यानयुक्तो कुरुत पालनं कर्म स्वम्।। 8 फरवरी, 2015

जय भगवति देवि नमो वरदे। (गजल विधा)

जय पाप नाशिनि बहु फलो।।