20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
डॉ. बैजनाथ प्रसाद त्रिपाठी
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जन्म 05 जून 1920
जन्म स्थान ग्राम गौरि कला काशीपुर (बहेरिया)
स्थायी पता
ग्राम गौरि कला काशीपुर (बहेरिया) हरदोई

डॉ. बैजनाथ प्रसाद त्रिपाठी

संस्कृत के विद्वानों की परम्परा में उद्भट विद्वान् डॉ. बैजनाथ त्रिपाठी का नाम अग्रगण्य है। सरल सौम्य स्वभाव वाग्गांभीर्य आप की विद्वत्ता को अभिलक्षित करता रहा। विद्वान उग्र स्वभाव वाला नहीं अपितु विद्या विनम्रता से युक्त होता है, यह गुण आप की विशिष्टता का पचिायक रहा है। हरदोई जनपद के ग्राम गौरि कला काशीपुर (बहेरिया) थाना अमरौली तहसील सण्डील के एक कुलीन परिवार में आप का जन्म 15 जून उन्नीस सौ बीस ई. में हुआ था। आपके पिता का नाम पं. शिव रत्न त्रिपाठी एवं माता जी का नाम शिव दुलारी था। 18 वर्ष की आयु में आपने सन् 1938 ई. में कृष्णा मुरारी के साथ गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया। आरम्भिक शिक्षा गाँव में स्थित प्राथमिक पाठशाला गौरि कला से प्राप्त किया। संस्कृत के प्रति बचपन से लगाव होने के कारण आगरा विश्वविद्यालय से स्नातक एवं परास्नातक की डिग्री प्राप्त की। पुनः सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से साहित्याचार्य की डिग्री प्राप्त किया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणस से संस्कृत के लब्ध प्रतिष्ठ विद्वान पं. नन्द किशोर देवराज के निर्देशन में ‘श्रीमद्भागवत की श्रीधरी टीका, एक समालोचनात्मक अध्ययन, विषय पर शोध कर सन् 1972 ई. में डाक्टर की उपाधि प्राप्त की।

आपने प्रारंभ में कुछ दिनों तक जनता इण्टर कालेज भरावन में संस्कृत के अध्यापक के रूप में कार्य किया। पुनः वे पौराणिक तथा वैदिक अध्ययन एवं अनुसन्धान संस्थान नैमिषारण्य सीतापुर में पुराणों का अध्यापन तद्विषय में शोधकार्यों का निर्देशन करते रहे। पुराणों में आप की बहुत अच्छी पैठ थी। आप पुराणों में विशेष रूप से भागवत, देवी भागवत एवं हरिवंश पुराण का साप्ताहिक पाठ लोगों के विशेष अनुनय पर करते थे। ज्योतिष और आयुर्वेद में भी आप की पकड़ अच्छी थी। विशेष रूप से सण्डीला तहसील में संस्कृत विद्वानों की पंक्तियों में अग्रगण्य रहे। संस्कृत की सेवा और संस्कृतमय जीवन के उदाहरण रहे हैं आप। संस्कृत की सेवा करते हुए 2002 में आपने निर्वाण प्राप्त किया। आपके एक पुत्र स्व. मदन मोहन त्रिपाठी तथा चार पुत्रियाँ श्रीमती मिथिलेश मुरारी मिश्र, श्रीमती कमला बाजपेयी, श्रीमती राधा पाण्डेय एवं श्रीमती शैलजा बाजपेयी हैं, जो अपने गार्हस्थ्य जीवन को सुखपूर्वक चला रही हैं। वर्तमान में पौत्र श्री निवास त्रिपाठी आपके कार्य को संभाले हुए हैं।

पुराण और ज्योतिष विषय पर होने वाली गोष्ठियों में आप अपनी बात बड़ी निपुणता और विद्वत्तापूर्ण ढंग से प्रस्तुत करते थे, लोग आप पर आश्चर्य करने लगते थे। नैमिषारण्य चक्रतीर्थ पर तथा नारदानन्दाश्रम की संस्कृत विचार गोष्ठियों में आपके नए ज्ञान की झलक पाते थे। आपने पौराणिक तथा वैदिक शोध संस्थान कई विशिष्ट सेमिनारों में अपने शोध पत्रों का वाचन किया। विद्वानों के श्रद्धा भाजन बने। भागवत महापुराण तो आप का शोध विषय ही था। उसमें भी श्रीधर की उत्कृष्ट टीका जो कि बड़े-बड़े धुरन्धराचार्यों की निकष है, आप उस पर खरे उतरते रहे।

शोध संस्थान से निकलने वाली अर्द्धवार्षिकी ‘नैमिषीयम्’ में आपके शोध पत्र प्रकाशित हुए। ‘पुराणकथा कोष’ योजना संचालन में आप का बहुत बड़ा योगदान रहा जिसके कारण तीन से चार पुराणों के कथाकोष तैयार किये गये। पुराण मन्दिर नैमिषारण्य में होने वाली ‘पुराण कथा योजना’ के संचालक भी आप रहे, जिसमें द्वादश पुराणों का आद्योपान्त प्रवचन की योजना थी। 1988 तक तीन पुराणों की प्रवचन योजना में भी श्रीराम मन्दिर में कथा वाचन करते रहे तत्पश्चात् इण्टर कालेज पर सदा प्रवचन चला। संस्कृत क्षेत्र, सण्डीला में आप के नाम को लोग बहुत ही श्रद्धा के साथ स्मरण करते हैं।