20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
स्वामी भागवतानन्द
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जन्म 27 नवम्बर 1934
जन्म स्थान ग्राम सोंधेमऊ
निधन 24 मई 2019
स्थायी पता
ग्राम सोंधेमऊ औरैया

स्वामी भागवतानन्द

स्वामी भागवतानन्द सरस्वती का मूल नाम श्री सियाराम तिवारी है। आपका जन्म 27 नवम्बर, सन् 1934 ई. में औरैया जनपद के सोंधेमऊ ग्राम में हुआ था। बचपन से ही आप मेधावान् विद्यार्थी के रूप में अध्यापक मण्डल में स्नेह प्राप्त रहे हैं। आपके पिता का नाम श्री गोपी नाथ तिवारी था जो अत्यन्त धार्मिक प्रवृत्ति के थे। आपकी शिक्षा श्री संस्कृत कॉलेज, औरैया में सम्पन्न हुई। आपने साहित्याचार्य, व्याकरणाचार्य, पुराणेतिहासाचार्य, आयुर्वेदाचार्य एवं वेदाचार्य की उपाधियाँ प्राप्त कीं। हिन्दी एवं संस्कृत दोनों आपके बोलचाल एवं लेखन की भाषाएँ रहीं हैं। आप श्रीमद्भागवत के प्रवक्ता के रूप में समूचे राष्ट्र में एक विशिष्ट पहचान रखते हैं। आजीवन ब्रह्मचारी रहते हुए आपने अपना पूरा जीवन धर्म प्रचार, सामाजिक संस्कार एवं राष्ट्र सेवा को समर्पित कर दिया। स्वामी भागवतानन्द श्री पीताम्बरा पीठ दतिया के पूज्य महाराज के दीक्षित एवं श्री अखण्डानन्द महाराज मथुरा से दशनाम संन्यास (दण्डीधारक) दीक्षा प्राप्त थे। आपने शुक्रताल एवं हनुमत धाम के संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहण किया। आपने परमार्थ आश्रम हरिद्वार की भू स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान किया तथा मातृशक्ति सेवासदन, बिठूर कानपुर की स्थापना की।

दतिया वाले महाराज जी, स्वामी अखण्डानन्द जी एवं प्रज्ञाचक्षु छोटे लाल त्रिपाठी जी गुरु परम्परा में अग्रगण्य हैं। इसी प्रकार स्वामी रामभद्राचार्य, कार्ष्णि गुरुशरणानन्द जी; रमणेरती, नृत्य गोपालदास जी आदि आपके गुरु भाई रहे हैं। आपके प्रिय शिष्यों में आचार्य मनोज अवस्थी, औरैया, आचार्य सीताराम, अवधेश व्यास, कोंच डॉ. पी.एन. शुक्ल, रमेश भाई ओझा, चिदानन्दमुनि जी, डॉ. राजेन्द्र शुक्ल आदि हैं। निरन्तर संस्कृतोत्थान के लिए समर्पित स्वामी जी 24. मई, 2019 को गोलोकवासी हो गए। आपकी प्रमुख कृतियाँ निम्नवत् हैं-

(1) श्रीमद्भागवत पारिजात,

(2) श्रीमद्देवी भागवतपारिजात,

(3) श्री महाभारत पारिजात,

(4) श्री दुर्गासप्तशती पारिजात सौरभ,

(5) श्री योग वाशिष्ठ पारिजात,

(6) श्री मनमानस पारिजात,

(7) सुन्दरे किं न सुन्दरम्

(8) गीता दर्शन,

(9) वेदान्त दर्शन। आपकी अधिकांश पुस्तकें आनन्द कानन प्रेस डी. 14/65 टेढ़ी नीम, वाराणसी द्वारा प्रकाशित हुईं है।

इस प्रकार स्वामी भागवतानन्द जी सदैव संस्कृत के उत्तरोत्तर उत्थान के लिए समर्पित रहे, वे प्रेरक एवं वरेण्य साहित्यकार हैं।