20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
आचार्य शारदा चरण दीक्षित
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निधन 24 दिसंबर 1989

आचार्य शारदा चरण दीक्षित

कविगणपति, तर्क मीमांसा प्रभृति अनेक उपाधियों से विभूषित आचार्य शारदा चरण दीक्षित का नाम एक ऐसे व्यक्तित्व का परिचय कराता है, आनख-शिख सुरभारती संस्कृत के लिए सर्वात्मना समर्पित रहे । संस्कृत प्रचार प्रसारण के प्रति आचार्य शारदा चरण दीक्षित ने संस्कृत कवित्व को अपना मिशन बनाया न कि व्यवसाय। लंबा, छरहरा शरीर, वर्तुल एवं देदीप्यमान मुखमंडल, दुग्धधवल दाडिमायमान दन्तपंक्ति, उजली धुली सफेद धोती, उस पर ढीला कुर्ता, उन्नत भाल पर सिंदूर का गोल शाक्त तिलक, पैरों में आगरा की ही बनी चप्पलें तो मूर्धा पर अविरल एवं अस्त-व्यस्त कच कलाप । न तो बहुत पुष्ट किन्तु कृशता की परिभाषा से दूर, स्कन्धों पर दोलायमान सुव्यवस्थित भगवा उत्तरीय, कभी ईषत् तो कभी अवसरानुकूल उन्मुक्त हास्य । यही है आचार्य जी के समवयस्क वयस्क जनों द्वारा वर्णित व्यक्तित्व का रेखांकन । आचार्य शारदा चरण दीक्षित जी सुयोग्य पिता महामहोपाध्याय, तर्करत्न पं० टीकाराम दीक्षित के सुयोग्य पुत्र थे । पिता के प्रसन्न हो जाने पर सब देवता प्रसन्न हो जाते हैं - 'पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्व देवता' उक्त सूक्ति के अनुसार दीक्षित जी उन सौभाग्यशाली पुत्रों में से थे जिन्होंने अपने पिता को पूर्णात्मना प्रसन्न कर रखा था । जो सत्कर्मों से पिता को प्रसन्न करे वही पुत्र सार्थक जन्मज्ञाता है । आचार्य टीकाराम दीक्षित काशी की विद्वत्सभा से तर्करत्न की उपाधि अपने पांडित्य के बल पर पा चुके थे ।

शारदाचरण के पितामह भी अपने समय के स्वनामधन्य विद्वान् थे । पितामह भी महामहोपाध्याय थे तथा पूरा नाम आचार्य प्रभूदयाल जी दीक्षित था । यह एक सुखद एवं अद्भुत संयोग ही कहा जाएगा कि पिता पं० टीकाराम जी दीक्षित एवं पितामह महापण्डित प्रभूदयाल दीक्षित अपने-अपने समय के प्रसिद्ध आयुर्विद और ज्योतिर्विद रहे । माता का पद पिता से 10 गुना होता है । आचार्य शारदा चरण जी की परम पूज्य माता श्रीमती रामश्री देवी थीं। दीक्षित जी का विवाह ग्राम बगहा जिला आगरा के सुप्रसिद्ध जमीदार पंडित आसाराम जी शर्मा रईस जी की विदुषी कन्या श्रीमती शांति देवी के साथ संपन्न हुआ । श्री शारदा चरण दीक्षित जी के चार पुत्र हुए - 1. श्री श्रीश दीक्षित 2. श्री गिरीश दीक्षित 3. श्री सतीश दीक्षित तथा 4. श्री नवीन दीक्षित । श्री श्रीश दीक्षित तथा श्री गिरीश दीक्षित जी का स्वर्गवास पिता श्री शारदा चरण दीक्षित जी के सामने ही हो गया था । श्री सतीश दीक्षित नायब तहसीलदार के पद से अवकाश ग्रहण करके तथा श्री नवीन दीक्षित नगर पालिका आगरा से अवकाश ग्रहण करने के बाद अपने अपने परिवार के साथ सानन्द जीवन यापन कर रहे हैं ।

बालक शारदा चरण की प्राथमिक शिक्षा घर पर ही पूरी हुई । पूज्य पिता महामहोपाध्याय पंडित टीकाराम दीक्षित से सिद्धांत कौमुदी, परिभाषेन्दुशेखर आदि व्याकरण ग्रंथों का, शुक्ल यजुर्वेद, निघण्टु आदि वैदिक ग्रन्थों का, छन्द शास्त्र अभियान, ज्योतिष मीमांसा, वेदांत एवं दर्शन आदि विषयों का ज्ञान प्राप्त किया । तदुपरान्त शासकीय संस्कृत कॉलेज बनारस (वर्तमान में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय) की शास्त्री एवं आचार्य की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की । शास्त्रीय संस्कृत एसोसिएशन कोलकाता की भी अनेक परीक्षाएँ आपने उत्तीर्ण कीं । अपने पूज्य पिता से आपने आयुर्वेद का पारम्परिक ज्ञान प्राप्त किया । माधवनिदान, भावप्रकाश, चरक संहिता, भेषज्यरत्नावली आदि आयुर्वेद के ग्रन्थ आपको कण्ठस्थ थे । महाभारत, पुराण, उपनिषद्, स्मृतियों का अध्ययन आपने काशी के प्रसिद्ध विद्वान् महामहोपाध्याय गोस्वामी दामोदर लाल जी से प्राप्त किया । स्वामी अखण्डानंद सरस्वती जी महाराज (पं० शान्तनु बिहारी द्विवेदी, वाराणसी) से आपने श्रीमद्भागवत और देवीभागवत का अध्ययन किया था । जिन ग्रन्थों एवं विषयों का अध्ययन आचार्य जी गुरुमुख से न कर सके उन्हें स्वयं स्वाध्याय करके देखा और समझा । इन ग्रन्थों में कोश, अभिधान, हितोपदेश, पुराण, महाभारत उपनिषद् ब्राह्मण एवं अन्य ग्रन्थ हैं । दीक्षित जी के आवास पर सुव्यवस्थित ग्रन्थागार में इन ग्रन्थों को देखा जा सकता है ।

दीक्षित जी के आवास पर अनेक जिज्ञासु आया करते थे, जिनकी ज्ञान पिपासा को निशुल्क शान्त किया करते थे । उनके पढ़ाये हुए अनेक शिष्य उच्च पदों पर आसीन रहे हैं । उनमें प्रमुख हैं - डॉ. आर. के. त्रिपाठी मुरादाबाद, पारसनाथ द्विवेदी जो सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के डीन पद पर आसीन रहकर सेवानिवृत्त हुए थे।

रचनाएँ –

श्री दीक्षित जी के व्यक्तित्व एवं वैदुष्य का प्रतिबिम्बन उनकी कृतियों में स्पष्ट परिलक्षित होता है । सरस्वती साधना में अनवरत लीन उनकी लेखनी से ऐसे ग्रन्थों का प्रणयन हुआ, जिन्हें देखकर उनको आधुनिक कालिदास कहा जाए तो अत्युक्ति नहीं होगी । उज्जैन के महाकुम्भ पर्व 1968 में संस्कृत विद्वत् सम्मेलन में मञ्चस्थ विद्वानों ने उनकी कृतियों से प्रभावित होकर उन्हें अभिनव कालिदास की मानद उपाधि से विभूषित किया था । श्री दीक्षित जी द्वारा लिखित हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ इस प्रकार हैं - 1. मेघदूतोत्तरार्धम् 2. पाकचरितम् 3. अमरशतकम् 4. कांग्रेस वैभवम् 5. गान्धिचरितम् 6. भारतीय चरितम् ।

दीक्षित जी की हस्तलिखित डायरी में उपलब्ध सामग्री - 1. अन्नन्तरि स्तुति 2. वैदिकेभ्योऽभ्यर्थनम् 3. गुरु चर्चा 4. विद्वत् परिषद् सम्बन्धी  5. आयुर्वेद महत्व 6. शास्त्रार्थ चर्चा ।

ज्योतिष विषयक लघु कलेवरीय प्रकाशन - 1. चैत्रमलमासीय नववर्षारम्भ तथा नवरात्रारम्भ निर्णय । 2. मकर संक्रान्ति पुण्य पार्वण: ।

गाण्डीवम् में प्रकाशित सामग्री –

       1. स्वास्थ्यम् (निबन्ध)

         2. शारदा चरण दीक्षित अभिनन्दनम् अभिनन्दन पत्र

         3. विद्यापीठ परिच्छदप्रत्ययानाम् प्रत्ययत्वम् ।

         4. बंगस्वातन्त्र्म् निबन्ध ।

         5. गर्भाधान मीमांसा निबन्ध ।

          6. निष्काम कर्मचारी परम् ।

          7. रामानुजादि वैष्णव सम्प्रदाय सिद्धान्त समीक्षा ।

           8. कवि सम्राट् उपाधि प्राप्ति ।

हस्तलिखित संस्कृत निबन्ध - 1. श्री भगवत्या: सुरभारत्या: प्रचार: कथं स्यात् । 2. देवभाषातत्त्वं वैदिकविभुत्वं च । 3. सन्ध्योपासनम् । 4. स्त्रीणां कीदृशी शिक्षा अपेक्ष्यते । 5. संस्कृत भाषा। 6. मानवजीवनं धर्मश्च । 7. कालिदासस्य जन्मभूः । 8. आलस्यं हि मनुष्याणां शरीररस्थो हि महान् रिपु: ।

संस्कृत त्रैमासिक पत्रिका अजस्रा में प्रकाशित निबन्ध - विजितं भिसुणां (अजस्रा, जनवरी, 1978, अखिल भारतीय संस्कृत परिषद् हजरतगंज लखनऊ)

कृतियों का संक्षिप्त परिचय -

1. मेघदूतोत्तरार्धम् - कवि शारदा चरण दीक्षित की यह रचना महत्त्वपूर्ण है । स्वप्रकाशित स्थानी नामक संस्कृत मासिक पत्रिका के जून 1965 के अंक में यह कृति प्रकाशित (मुद्रित) हो चुकी है । इसमें मेघदूत के अस्पृष्ट तथा अवशिष्ट अंश को पूरा किया गया है । ग्रन्थारम्भ में इस तथ्य को इस प्रकार संसूचित किया गया है - अथ महाकवि कालिदासादवशिष्टं कविगणपतिप्रणीतं मेघदूतोत्तरार्धम् । 151 मंदाक्रांता छन्दों में निबद्ध यह रचना अत्यन्त रोचक है ।

2. पाकचरितम् - सन् 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध का सजीव चित्रण भी दीक्षित जी ने 'पाकचरितम्' में किया है । इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा आदि 103 श्लोकों में निबद्ध इस काव्य में पाकिस्तान पर भारत की विजय, बांग्लादेश का उदय एवं शेख मुजीबुरर्हमान द्वारा बांग्लादेश की सत्ता प्राप्ति का मनोरम चित्रण 'पाकचरितम्' में हुआ है ।

3. अमरशतकम् - जैन सन्त अमर मुनि के जीवन चरित्र को लेकर एक सौ श्लोकों में निबद्ध यह काव्य भी दीक्षित जी के सर्वधर्म समभावना, बहुज्ञता एवं उनके पाण्डित्य का परिचायक है । इस ग्रन्थ में शिखरिणी छन्द का मनोरम प्रयोग पाठक के मन को आकृष्ट करने में पर्याप्त है ।

4. कांग्रेस वैभवम् - कांग्रेस वैभवम् आचार्य शारदा चरण दीक्षित की अमर कृति है । आचार्य प्रवर कांग्रेस को गांधी से और गांधी जी को कांग्रेस से पृथक् न देख सके थे । कदाचित् वे इसी उहापोह में रहे कि इस कृति का नाम गान्धीचरितम् रखा जाए या कांग्रेसचरितम् । यही कारण है कि पाण्डुलिपि के कतिपय पृष्ठों पर दोनों शीर्षकों का उल्लेख है । सत्य के धरातल पर देखा जाए तो स्वाधीनता संग्राम के ये वे दिन थे, जिनमें कांग्रेस और गांधी एक दूसरे के पूरक नहीं अपितु पर्याय बन गए थे ।

स्फुट निबन्ध - आचार्य दीक्षित विद्वान् कवि होने के साथ-साथ उच्च कोटि के निबन्धकार भी थे । उनके निबन्धों में साहित्यिक, दार्शनिक, सामूहिक, राष्ट्रीय एवं सार्वभौमिक चेतना के दर्शन होते हैं । इन निबन्धों में आलोचनात्मकता और कहीं-कहीं गवेषणात्मकता निबन्ध की आत्मा के रूप में परिलक्षित होती है ।

आचार्य दीक्षित जी को संस्कृत विद्या के प्रचार प्रसार का सहज व्यसन था । अनेक अध्ययनार्थी उनके आवास पर आते ही रहते थे, उन्हें नि:शुल्क शिक्षा देकर उनके गूढ़स्थलों का समाधान देते थे, संस्कृत जिज्ञासुओं एवं अनुसन्धित्सुकों के लिए उनके द्वार कभी अनावृत नहीं होते थे । उनके मोतीकटरा (आगरा) स्थित घर पर असंख्य पुस्तकों, अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संकलन है, जिसमें दीक्षित जी की हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ, प्रकाशित तथा अप्रकाशित निबन्धसंग्रह सुरक्षित हैं । एक पुस्तकालय का स्वरूप लिए यह कक्ष संस्कृत के अध्येताओं के लिए उपयुक्त स्थान था । आगरा नगर की प्रसिद्ध संस्कृत संस्था विद्याधर्मवर्धिनी संस्कृत पाठशाला के वे आजीवन प्रबंधकर्ता रहे ।  पाठशाला के छात्रों के सर्वविध, सौविध्य के लिए वे सदा तत्पर रहते थे  । नि:शुल्क अध्यापन अनेक वर्षों तक करके आपने इस पाठशाला को जीवन दिया था । आचार्य जी की प्रत्येक श्वास- प्रश्वास संस्कृतमय थी । आचार्य जी का व्रत अविछिन्न रूप से जीवन भर चलता रहा । प्रसन्नता की बात यह है कि आचार्य के सुयोग्य पुत्र श्री नवीन दीक्षित शारदा संस्कृत संस्थान नामक (पंजीकृत) सोसाइटी के माध्यम से इस व्रत को आज भी जीवन्त रखे हुए हैं । यह भी प्रसन्नता का विषय है कि ऐसे मनीषी संस्कृतज्ञ के अपार साहित्यिक भण्डार पर शोधोपाधि हेतु शोधपरक कार्य हो रहा है । उस कड़ी में डॉ. जगदीश प्रसाद शर्मा ने "आचार्य शारदा चरण दीक्षित व्यक्तित्व एवं कृतित्व" विषय पर शोध कार्य सम्पन्न किया है । अन्य के लिए आचार्य दीक्षित जी का साहित्य सर्वथा उपलभ्य है ।

संस्कृत के प्रचार प्रसार में अनवरत संलग्न श्री आचार्य जी का जीवन दिनांक 24 दिसंबर सन् 1989 को शांत हो गया।