20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
आचार्य बाबूराम अवस्थी
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जन्म 20 फरवरी 1929

आचार्य बाबूराम अवस्थी

आचार्य बाबूराम अवस्थी जी का व्यक्तित्व अत्यन्त प्रभावशाली एवं वैदुष्यगत ओजस्विता से मण्डित था। गौर वर्ण, स्फूर्तियुक्त देह यष्टि, प्रशस्त ललाट, संवेदनशील गुरुवाणी से युक्त आचार्य जो अति उदात्त व्यक्तित्व के स्वामी थे। समाज के सभी व्यक्तियों से सरलतापूर्वक व्यवहार करना किन्तु सिद्धान्त तथा जीवनादर्शों पर आँच आने पर बड़ी से बड़ी शक्ति से सामना करने को उद्यत रहना आचार्य जी की सबसे बड़ी विशेषता है । उनमें विनयशीलता तथा स्वाभिमान का अद्भुत समन्वय है । युगप्रभाव, स्वार्थ लिप्सा, लाभ-हानि से नितान्त निरपेक्ष रहकर मात्र अपनी अन्तरात्मा की ध्वनि को श्रवण करते हुए संसार धर्म तथा कवि-कर्म दोनों का सम्यक निर्वाह करना आचार्य जी के जीवन मूल्यों का सार रहा । आचार्य जी का जन्म सम्वत् 1985 तदनुसार 20 फरवरी 1929 को पं. रामावतार अवस्थी जी के गृह में हुआ । इनकी माता श्रीमती छोटकी देवी अवस्थी था । माता-पिता ने अतिस्नेह पूर्वक बालक का नाम बाबूराम रखा। शनैः शनै: माता से सरलता, शील, विनम्रता तथा धार्मिकता और पिता से गम्भीरता, अध्ययनप्रियता, अनुशासनात्मक गुणों को ग्रहण करते हुए आचार्य जी की बाल्यावस्था व्यतीत हुई । देवालय (शिव मन्दिर) समीपता तथा प्रकृति की सुरम्यता ने आचार्य जी के अन्तर्बाह्य व्यक्तित्व को सशक्त बना दिया । इसी मध्य शुक्ल एकादशी को आचार्य जी के पितामह श्री ब्रह्मचारी जी चतुर्दशी सम्वत् 1935 चैत्र शुक्ल एकादशी को आचार्य जी के पितामह श्री ब्रह्मचारी जी का वैकुण्ठवास हो गया ।  आश्विन कृष्ण चतुर्दशी सम्वत् 1994  वि. को आचार्य जी की भगिनी मनोरमा का जन्म हुआ। जीवन की गति का निर्धारण तो विधाता के वश में है अतः दुर्भाग्यवश श्रावण शुक्ल पूर्णिमा सन् 1944 की रात्रि में आचार्य जी के पिताश्री का स्वर्गवास हो गया । गृहस्थी का भार आचार्य जी के कंधों पर आ गया। माता तथा भगिनी को आश्रय प्रदान करते हुए तथा आर्थिक संकट झेलते हुए येन-केन-प्रकारेण जीवन धारण करने लगे। इसी मध्य वैशाख शुक्ल नवमी सन् 1948 को बाबूराम अवस्थी का विवाह श्री संकटा प्रसाद तिवारी की पुत्री उर्मिला के साथ सम्पन्न हुआ । गृहस्थी का भार कन्धों पर रखें हुए बाबूराम अवस्थी जी विद्याध्ययन में तल्लीन रहे ।

आचार्य बाबूराम अवस्थी जी की प्राथमिक शिक्षा कल्लूमल शिल्प प्राइमरी पाठशाला, हाथीपुर, लखीमपुर खीरी में सम्पन्न हुई । आपने राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, वाराणसी से प्रथमा, मध्यमा, शास्त्री परीक्षा प्रथम श्रेणी में में उत्तीर्ण की । सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से आचार्य (साहित्य) परीक्षा प्रथम में उत्तीर्ण की । आगरा विश्वविद्यालय आगरा से एम०ए० (संस्कृत) परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की । सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से विशिष्ट पूर्व मध्यमा (अंग्रेजी) प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की । आपके प्राथमिक शिक्षा गुरु - पं० रघुनाथ प्रसाद शुक्ल, पं० हरसहाय पाठक- प्रधानाध्यापक, पं० भगवानदीन शुक्ला, पं० श्रीकृष्ण मिश्र थे । माध्यमिक शिक्षा गुरु -  श्री चन्द्रशेखर ओझा, श्री शम्भु दयालु शास्त्री थे तथा उच्च शिक्षा गुरु - आचार्य डा० बच्चूलाल अवस्थी 'ज्ञान', डी० लिट्, धार्मिक, ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड आदि शिक्षा गुरु आचार्य जी के पूज्य पिताश्री थे ।

ज्ञान जी के स्नेह भाजन बनकर अध्ययन करने लगे । परन्तु गृहस्थी के भ्रमजाल में पड़े हुए वह परीक्षा में सम्मिलित न हो सके और कयी वर्षों तक विद्यालयीय अध्ययन बाधित रहा । सन् 1954 में पुनः प्रयासरत होकर परीक्षा दी जिसमें उन्होंने उत्तमांक पाने वाले प्रदेशीय छात्रों की वरीयता सूची में अष्टम स्थान प्राप्त किया तथा राजकीय छात्रवृत्ति के अधिकारी बनें । सन् 1956 से आचार्य जी की साहित्यिक यात्रा भी आरम्भ हो गई थी । संघर्षों से दो-चार होते हुए भी आचार्य जी अविरल गति से वाग्देवी के कोष की श्री वृद्धि करते रहे । सम्प्रति जीवन के अष्ट दशक पूर्ण करते हुए सतत् कर्मरत तथा भगवत् स्मरण में दत्त चित्त रहते हैं ।

श्री सनातन धर्म आदर्श संस्कृत महाविद्यालय लखीमपुर खीरी में  सहायक अध्यापक रहे । पृथ्वीराज केसरी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, लखीमपुर में अवकाश प्राप्त प्रवक्ता रहे ।  सन् 1947  में आचार्य बाबूराम अवस्थी 'ज्ञान' जी स्थानीय सनातन धर्म संस्कृत महाविद्यालय में प्राचार्य नियुक्त हुए ।

आचार्य जी निम्नलिखित संस्थाओं से सम्बद्ध रहे - महामंत्री संस्कृत परिषद, लखीमपुर-खीरी ( वर्ष - 1962-89), संस्थापक-संस्कृत सेवा समिति, लखीमपुर-खीरी, आजीवन सदस्य विश्व संस्कृत प्रतिष्ठानम् वाराणसी, आजीवन सदस्य एवं परामर्शदाता परिषद् सदस्य पारिजातम् संस्कृत मासिक कानपुर, संरक्षक-हिन्दी साहित्य परिषद्, लखीमपुर खीरी ।

संस्कृत सेवा कार्य - संस्कृत परिषद् के महामंत्री के रूप में विद्वत्समवाय समायोजन कवि सम्मेलन, गीत-सम्मेलन, सन्त सम्मेलन, महिला सम्मेलन, छात्र सम्मेलन आदि का आयोजन तथा वार्षिकोत्सव । परिषद् के मासिक त्रैमासिक अधिवेशनों में संस्कृत प्रचार व प्रसार के लिए पारस्परिक विचार विमर्श  तथा अन्य धार्मिक, सांस्कृतिक संस्थाओं को संस्कृत कार्यक्रम आयोजित करने हेतु प्रेरित करना । आप  छात्र-छात्राओं में संस्कृत के प्रति रुचि उत्पन्न करने के लिए समय-समय पर श्लोक पाठ, गीत-लोकगीत गायन, भाषण, शुद्धलेख, शुद्धपाठन, कला आदि प्रतियोगिताओं का आयोजन और पुरस्कार वितरण करते हैं ।

व्यक्तिगत रूप से :

1. आकाशवाणी, दूरदर्शन से प्रसारण।

2. देश की संस्कृत व हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में कविता, गीत, नाटक, कथा आदि का प्रकाशन ।

3. प्रतिवर्ष संस्कृत सप्ताह अथवा सप्तरंग संस्कृत समारोह तथा प्रतियोगिताओं का आयोजन तथा पुरस्कार वितरण।

4. ग्रामों में संस्कृत कार्यक्रम का आयोजन।

5. छात्रों को संस्कृत बोलने का अभ्यास कराने के लिए सम्भाषण शिविर का आयोजन ।

साक्षात्कार : - दूरदर्शनकेन्द्र लखनऊ, हिन्दी दैनिक जागरण, हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान, डॉ० पुष्पा मलिक, लखीमपुर खीरी कु० अर्चना दीक्षित (जल संरक्षण विषय ) ।

इस प्रकार पारिवारिक शैक्षिक तथा सामाजिक जीवन के प्रति समर्पण से जुड़ी स्मृतियों की स्पष्ट झलक आचार्य जी के व्यक्तित्व में परिलक्षित होती है। अस्वस्थता पर आत्मबल की विजय को सिद्ध करते हुए कर्मनिष्ठ भाव से निरन्तर साहित्य साधना में रत हैं । उनके लिए कर्म पूजा है, इस सिद्धान्त का पालन करते हुए उन्होंने जीवन के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग किया है।

पुरस्कार -

1. उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान की पुरस्कार योजना में राज्यपाल द्वारा विशिष्ट पुरस्कार प्राप्त ।

2. उक्त संस्थान द्वारा कथा द्वादशी पुस्तक पर बाणभट्ट पुरस्कार ।

3. उक्त संस्थान द्वारा युगदर्शनम् काव्य पर साहित्य पुरस्कार ।

4. दिल्ली संस्कृत अकादमी द्वारा अखिल भारतीय मौलिक साहित्य रचना प्रतियोगि में "नाट्य नीराजनम्" पुस्तक प्रथम पुरस्कृत ।

5. उक्त संस्थान द्वारा अखिल भारतीय लघु कथा-लेखन प्रतियोगिता में "बहिष्कार" कहानी प्रथम पुरस्कृत ।

6. उक्त संस्था द्वारा अखिल भारतीय लघु कथा लेखन प्रतियोगिता में "अजाचारणम्" कहानी को द्वितीय पुरस्कार ।

7. उक्त संस्था द्वारा अखिल भारतीय लघु नाटक लेखन में "भूथभ्रान्तिर्भयकरी" एकाङ्की द्वितीय पुरस्कृत ।

सम्मान -

1. भा० आर्य कन्या महाविद्यालय लखीमपुर की प्राचार्या व संस्कृत विभाग द्वारा ।

2. भारत विकास परिषद् की शाखा लखीमपुर द्वारा ।

3. हिन्दी साहित्य परिषद् लखीमपुर द्वारा।

4. राष्ट्रभाष सेवा समिति, लखीमपुर (नागरी प्रचारिणी सभा काशी से सम्बद्ध) द्वारा ।

 5. प्रदेश स्तरीय साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संस्था 'सुदिशा' द्वारा अभिनन्दन ।

उपाधियाँ -

1. राजकीय संस्कृत महाविद्यालय वाराणसी द्वारा शास्त्री की उपाधि ।

2. सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी द्वारा साहित्याचार्य उपाधि ।

3. भ० आर्यकन्या महाविद्यालय, लखीमपुर की संस्कृत विभाग व प्राचार्या द्वारा 'संस्कृत श्री' की उपाधि  ।

4. हिन्दी साहित्य परिषद्, लखीमपुर द्वारा 'साहित्य श्री' उपाधि।

5. परिजात संस्कृत मासिक, कानपुर द्वारा 'कविरत्नम्' उपाधि।

6. अखिल भारतीय संस्कृत प्रचारिणी समिति कानपुर द्वारा साहित्य महोपाध्याय की उपाधि ।

कृतियाँ : -

1. सरल संस्कृत सम्भाषणम् (छात्रोपयोगी) ।

2. सरल संस्कृत निबन्धावली (छात्रोपयोगी) ।

3. युगदर्शन (श्लोक शैली में संस्कृत काव्य) ।

4. गीत गङ्गा (गेय गीतों का संग्रह) ।

5. लोक गीताञ्जलि (लोक गीत शैली में गेय रचनायें) ।

6. नाट्य-नीराजनम् (अष्टादश एकाङ्की नाटकों का संग्रह) ।

7. नाट्य-नवीनतम् (अष्टादश एकाङ्की नाटकों का संकलन) ।

8. कथा द्वादशी (कथा संग्रह) ।

9. लेख–तालिका (विभिन्न विषयों पर लिखे संस्कृत लेखों का संग्रह) ।

10. मानस वाचि विलास– (मानस के आधार पर लिखे गये शोध समीक्षात्मक हिन्दी लेखों का संग्रह) ।

 11. ललित लेख माला- (दार्शनिक, साहित्यिक, काव्य शास्त्रीय शोधपरक समीक्षात्मक हिन्दी में लेखों का संग्रह) ।

अप्रकाशित पुस्तकें -

1. सुविचार सुधा (हिन्दी में धार्मिक एवं साहित्यिक लेख) ।

2. काकली कुंज-(हिन्दी कविताओं का संकलन) ।

3. वाग्वल्लरी (संस्कृत कविताओं, गीतों और कहानियों का संग्रह) ।

4. काव्य प्रकाश दर्शिका (आचार्य मम्मट कृत काव्य प्रकाश ग्रन्थ की हिन्दी में 'दर्शिका' व्याख्या (षष्ठ उल्लास पर्यन्त)।

(अवसान तिथि ?)


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