20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
सत्यानन्द शुक्ल
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जन्म 30 जुलाई 1941
जन्म स्थान ग्राम एकडली
स्थायी पता
ग्राम एकडली ,फतेहपुर जनपद

सत्यानन्द शुक्ल

आचार्य श्री सत्यानन्द शुक्ल का जन्म फतेहपुर जनपद के एकडली नामक ग्राम में 30.07.1941 (तीस जुलाई सन् उन्नीस सौ एकतालीस) को हुआ था । यद्यपि इनका पैतक स्थान कानपुर जनपद के रूरा स्टेशन के निकट सूतनपुरवा नामक ग्राम था । इनके पिता श्री यमुना प्रसाद शुक्ल एवम् माता श्रीमती माहेश्वरी देवी शुक्ला थीं । पिता कारागार आरक्षिक के पद पर थे । दैवदुर्विपाक से श्री सत्यानन्द जी की अल्पीयसी अवस्था में माता पिता दिवङ्गत हो गये। इनको निराश्रय देखकर नाना जी श्री भागवत त्रिपाठी, जो कि परम विद्वान् संस्कृत प्रेमी एवं श्रीमद्भागवत के उत्कृष्ट एवं प्रखर वक्ता थे, अपने गाँव एकडला लिवा ले आए । ईसवीय सन् 1963 में श्रीमती कमला शुक्ला के साथ आपका पाणिग्रहण संस्कार हुआ । जिनसे श्री प्रदीप कुमार शुक्ल, श्री सुधीर कुमार शुक्ल, श्री सुशील कुमार शुक्ल पुत्र त श्रीमती भारती बाजपेयी पुत्री का जन्म हुआ ।

एकडला गांव में ही शुक्ल जी की प्राथमिक शिक्षा संपन्न हुई । इसके उपरांत श्री फाल्गुनगिरि संस्कृत महाविद्यालय किशुनपुर फतेहपुर में माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण की । अपने गुरु प्रख्यात विद्वान् श्री गिरिधर शर्मा ओझा जी के साथ उच्च शिक्षा के प्राप्त्यर्थ अध्ययन-अध्यापन हेतु प्रसिद्ध श्रीमत् परमहंस संस्कृतादर्श महाविद्यालय टीकर माफी सुल्तानपुर चले गए । जहां पर पं. चंद्रसेवक त्रिपाठी, श्री गिरिधर ओझा, पं. जटाशंकर मिश्र इन विद्यावा गुरुओं के संरक्षण में रहकर विधिवत् शास्त्रों का अध्ययन करते हुए आचार्य की उपाधि प्राप्त की ।

अध्ययनोपरान्त श्री आनन्द शुक्ल जी फतेहपुर जनपद के बेला ग्रामावस्थित श्री आनन्द संस्कृत महाविद्यालय में व्याकरणाचार्य पद पर नियुक्त हो ग्रे । जहां पर 8 वर्षों तक अध्यापन कार्य करने के पश्चात् श्री बालपुरी संस्कृत विद्यालय हथगाम में पाँच वर्षों तक अध्यापन किया । पुनः फतेहपुर नगरस्थित श्री नारायण नागा आदर्श संस्कृत महाविद्यालय में व्याकरण विभागाध्यक्ष पद पर अधिष्ठित हुये और 30 जून सन्  2002 को सेवानिवृत्त हुये । इस प्रकार अड़तीस वर्षों तक आचार्य जी ने अध्यापन कार्य विभिन्न संस्थाओं में सम्पन्न किया । आज भी निज निवास (कालिका मन्दिर, मसवानी, फतेहपुर) में रहते हुये छात्रों को निरन्तर पढ़ाते हुये व काव्य रचना करते हुये संस्कृत भाषा की श्री वृद्धि कर रहे हैं ।

कर्तृत्व -

1. वन्दना वाणी - यह विविध भावों में गुम्फित संस्कृत कविताओं का संग्रह है। यह संस्कृत काव्य अक्षय साहित्य कला केन्द्र अमौली फतेहपुर से वर्ष जून २०२० में प्रकाशित है ।

2. उदात्तकर्णम् - वीर रस प्रधान यह संस्कृत महाकाव्य अट्ठारह सर्गों में उपनिबद्ध है । इसमें दानवीर कर्ण का जीवन चरित्र एवम् औदार्य भाव का वर्णन किया गया है। इसका उपजीव्य महाभारत है । इसमें अनुष्टुप् सहित बाइस छन्दों का प्रयोग किया गया है । लक्षणकारों के द्वारा निर्दिष्ट महाकाव्य के लक्षण इसमें घटित होते हैं । पैंसठ से कम किसी भी सर्ग में श्लोक नहीं है। सर्गान्त में भिन्नवृत्त का प्रयोग किया गया है। यह संस्कृत महाकाव्य परिमल पब्लिकेशन्स दिल्ली से प्रकाशित है ।

3. शुक्लपुष्पाञ्जलि: - संस्कृत स्तोत्र काव्य में विविध शास्त्रीय छन्दों में उपनिबद्ध अनेक देवताओं की ललित व भावपूर्ण स्तुतियां हैं । यह काव्य वर्ष 2012 में उमा आर्ट प्रेस चौक फतेहपुर से प्रकाशित है ।

इसके अतिरिक्त पंडितराज जगन्नाथ कृत गंगालहरी का हिंदी पद्यानुवाद, "साहित्य पढ़ो साहित्य पढ़ो" नामक हिन्दी काव्य भी प्रकाशित हैं । तथा संस्कृत भाषा में बहुत से स्फुट गीत, कविताएं, स्थितियां भी शुक्ल जी द्वारा लिखित हैं एवं निरंतर लिखी जा रही हैं ।