20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
विद्याधर दीक्षित
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जन्म 31 जुलाई 1937
जन्म स्थान ग्राम गुगौली
स्थायी पता
ग्राम गुगौली,फतेहपुर जनपद

विद्याधर दीक्षित

श्री विद्याधर दीक्षित जी का जन्म 31 जुलाई सन् 1937 ई० को फतेहपुर जनपद के गुगौली नामक गाँव में हुआ था । जन्म से ही ये पैर से विकलांग थे । इनकी माता का नाम श्रीमती बिट्टा देवी व पिता का नाम श्री वेणीदत्त दीक्षित था । इनका पाणिग्रहण संस्कार 16 जून सन् 1962 को श्रीमती भागवती देवी के साथ सम्पन्न हुआ । श्री विद्याधर जी के चार पुत्र, श्री विपिन बिहारी दीक्षित, श्री अनिल दीक्षित, श्री देवेन्द्र दीक्षित श्री श्रीधर दीक्षित तथा पुत्रियों में श्रीमती संगीता (सम्प्रति स्मृतिशेष) व श्रीमती सुनीता हैं ।

श्री दीक्षित जी की प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा बिन्दकी में सम्पन्न हुयी । गुरु श्री माता प्रसाद मिश्र के संरक्षण में संस्कृत शिक्षा प्राप्त करके उच्चशिक्षा हेतु कानपुर चले गये । जहाँ कल्लूमल संस्कृत पाठशाला में आचार्य श्यामाचरण महोदय के निर्देशन में शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् पठन-पाठन  के लिए प्रसिद्ध बलदेव सहाय संस्कृत महाविद्यालय में प्रख्यात विद्वान् श्री चन्द्रशेखर शास्त्री व उनके अनुज श्री बैकुण्ठनाथ शास्त्री जी के सान्निध्य में रहकर विधिवत् अध्ययन करते हुये व्याकरणाचार्य की उपाधि प्राप्त की । हिन्दी विषय को लेकर आगरा विश्वविद्यालय से तथा संस्कृत विषय लेकर कानपुर विश्वविद्यालय से एम० ए० की परीक्षा‌ उत्तीर्ण की ।

अध्ययन के पश्चात् मूसानगर कानपुर में स्थित संस्कृत विद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे । यहाँ पर तीन वर्षो तक अध्यापन करने के पश्चात् फतेहपुर जनपद के अमौली नामक कस्बे में स्थित श्री विद्याभूषण संस्कृत महाविद्यालय में प्रधानाचार्य पद को अलङ्कृत किया ।

रचनाएँ-

हिन्दी, संस्कृत दोनों भाषाओं में दीक्षित जी रचनाएँ करते थे जिनमें संस्कृत रचनाओं का परिचय संक्षिप्त रूप में अधोलिखित है -

1. जगन्मङ्गलम् - यह इक्कीस सर्गों का संस्कृत महाकाव्य है। अनेक छन्द व अलंकारों से संयुक्त इस काव्य में "धर्मो रक्षति रक्षितः" का उद्देश्य निहित है। यह काव्य वर्ष 2008 में अभिषेक प्रकाशन शारदा नगर, कानपुर से प्रकाशित है ।

2. चिह्नं कपोलकल्पितम् - इस 9 सर्गात्मक संस्कृत काव्य में संयोग श्रृंगार प्रधान सुन्दर हास-परिहास का वर्णन किया गया है। यह वर्ष 2006 में उमा आर्ट प्रेस फतेहपुर से प्रकाशित है ।

3. कविताकृतिभूषणम् - यह भी एक संस्कृत काव्य है ।

4. मृदुलपुष्पाञ्जलि:- इस स्तुति काव्य में प्रायः पच्चीस देवी देवताओं की स्तुतियाँ, विविध छन्दों में अत्यन्त भावपूर्ण पद्यों में की गयी हैं ।

5. वेदनानाटकम् - दहेज की पीड़ा से व्यथित वेदना नाम की नायिका इस दुष्प्रथा को जड़ से नष्ट करने के लिए प्रयत्न करती है, इसी कथानक को बड़े ही सुन्दर ढंग से नाटक का रूप दिया गया है । समाज के व्यवहार की पीड़ा से व्यथित हृदय कवि ने अपनी भावना का प्रकटीकरण इस सात अंक के नाटक में किया है । विविध छन्दों के अतिरिक्त अनेक सुललित गीतिकाओं का भी इसमें प्रयोग किया गया है । उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के द्वारा प्रदत्त आंशिक अनुदान से यह नाटक प्रकाशित है ।

6. पुत्रेष्टि:नाटकम् - राम जन्म की भूमिका से सम्बद्ध सुन्दर कल्पना से उद्‌भूत इस सात अंक के नाटक में राजा दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ का वर्णन उत्कृष्ट रचना शैली में किया गया है ।

संस्कृत भाषा के अतिरिक्त हिन्दी भाषा में, "श्री सप्तशती, मृत्युञ्जय (महाकाव्य), कैकेयी (महाकाव्य), पुरनञ्जन (खण्डकाव्य), बेचारा (मुक्तक) नमन शतक रमा को (श्लेष काव्य) श्री दीक्षित जी की रचनाएँ हैं ।

दिव्यांग होते हुये भी दीक्षित जी नें निरन्तर देवभाषा के विकास हेतु तत्पर रहते हुये विद्यार्थियों की बृहती श्रृंखला तैयार की । अध्यापन कार्य करते हुये वर्ष 1998 में ये प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त हो गये ।

सेवानिवृत्त होने के पश्चात् निज निवास "आचार्य कुटीर" फतेहपुर में ही रहते हुये दीक्षित जी काव्यसर्जना करते हुए 17 नवंबर सन् 1920 को इहलोक का परित्याग करके दीक्षित जी ब्रह्मलीन हो गए ।