20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
डॉ बलभद्र त्रिपाठी
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जन्म 04 जनवरी 1963
जन्म स्थान ग्राम रेवई
स्थायी पता
कबरई विकास क्षेत्र ग्राम रेवई

डॉ बलभद्र त्रिपाठी

डॉ. बलभद्र त्रिपाठी जी का जन्म 4 जनवरी 1963 में उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के कबरई विकास क्षेत्र के रेवई गाँव में हुआ था । आपके पिता का नाम श्री शिवदयाल त्रिपाठी तथा माता श्रीमती फूलारानी त्रिपाठी था ।

आपने उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के रेवई ग्राम से अपनी आरम्भिक शिक्षा प्राप्त की थी । तदनन्तर आगे की पढ़ाई के लिए आप काशी आ गए, जहाँ सम्पूर्णनन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से पूर्व मध्यमा परीक्षा सन् 1978 में 69% अंक पाकर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। सन् 1980 में इसी विश्वविद्यालय से आपने उत्तर मध्यमा (इंटरमीडिएट) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में 72% अंकों से पास की । शास्त्री (बी.ए.) की परीक्षा सन् 1982 में सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय से ही 69% अंकों से उत्तीर्ण की थी । तत्पश्चात् आगे की पढ़ाई के लिए आप काशी से इलाहाबाद आ गए । यहाँ आपने सन् 1984 में संस्कृत विषय से एम.ए. में 74% अंक प्राप्त कर इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद की योग्यता सूची में द्वितीय स्थान प्राप्त किया । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा 1985 में सर्वप्रथम आयोजित राष्ट्रीय शैक्षिक परीक्षा (नेट) में अनुसन्धान वृत्ति हेतु आपका चयन हुआ, जो कि आप की विशेष उपलब्धि रही ।

सन् 1989 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद से आपने संस्कृत विषय में डी. लिट्. की उपाधि प्राप्त की । डॉ. त्रिपाठी ने सन् 1985 से 1989 तक संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की शोधवृत्ति प्राप्त करते हुए शोध कार्य तथा अध्यापन किया । शोध उपाधि प्राप्त करने के पश्चात् सन् 1990 से 1995 तक पुनः संस्कृत विभाग इलाहाबाद में यूजीसी रिसर्च एसोसिएट योजना के अन्तर्गत अध्यापन एवं शोध कार्य किया। उसके बाद आप वाराणसी आ गए जहाँ आपने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से सम्बद्ध श्री डण्डिया देव संस्कृत शोध संस्थानम् अयोध्या में सन् 1995 से 1998 तक निदेशक के पद पर कार्य किया। तत्पश्चात् सन् 1998 में आप की नियुक्ति उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग इलाहाबाद से संस्कृत प्रवक्ता पद पर हुई । आपकी प्रथम नियुक्ति राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोटद्वार गढ़वाल में 28-12-1998 को हुई । यहाँ आपने सन् 2004 तक स्नातक तथा परास्नातक कक्षाओं में अध्यापन एवं शोध निर्देशन का कार्य किया। सन् 2004 से 2011 तक आपने राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय गोपेश्वर (चमोली) में, 2011 से 2014 तक राजकीय महाविद्यालय नौगढ़ चंदौली में अध्यापन एवं शोधनिर्देशन का कार्य किया । सन् 2014 में आपका स्थानान्तरण राजकीय महिला महाविद्यालय झाँसी में उपाचार्य संस्कृत के पद पर हुआ । सम्प्रति आप इसी महाविद्यालय में कार्यवाहक प्राचार्य पद पर अपनी गौरवमयी सेवाएँ दे रहे हैं ।

डॉ. बलभद्र त्रिपाठी को व्याकरण दर्शन का उत्तम कोटि का ज्ञान है । संस्कृत के छन्दों में भी आपका रुझान है । आप श्लोक को बड़ी लय के साथ रागात्मक शैली में सुनाया करते हैं । आप आशु कवि भी हैं । किसी भी विषय में छन्दोमयी कविता की रचना आप तुरन्त कर लेते हैं ।

 

 

रचनाएँ-

डॉ. त्रिपाठी की तीन रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें से

1. "संस्कृतवाङ्मये स्फोटसिद्धान्त:" अक्षयवट प्रकाशन इलाहाबाद से प्रकाशित है। यह ग्रन्थ आपके शोध का विषय भी रहा था ।

2. "बदरीशदर्शनम्" यह पुस्तक अखिल भारतवर्षीय श्री वैष्णव सम्मेलन, प्रयागराज से प्रकाशित है । यह आपका यात्रा वृतान्त है। यह एक स्तोत्र काव्य है। इसमें भगवान बद्री नारायण के दर्शन की यात्रा का काव्यमय चित्रण है ।

3. "कोरोना शतकम्" यह पुस्तक जीवनधारा फाउण्डेशन झाँसी से प्रकाशित है । जैसा कि इस पुस्तक के नाम से ही स्पष्ट है इसमें कोरोना काल की विभीषिका के साथ-साथ उससे बचाव के उपायों और सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देशों का अति सुन्दर छन्दोबद्ध निरूपण है । यह पद्य काव्य है । 100 श्लोकों में कोरोना काल का सजीव चित्रण है ।

4. "काव्य मन्दाकिनी" प्रकाशनाधीन।

5. "सद्भावना शतकम्" प्रकाशनाधीन।

 पठन-पाठन और लेखन में सतत तत्पर डॉ. त्रिपाठी ने सैकड़ों शोधॉ-संगोष्ठियों में भाग लिया है । अब तक आपके 25 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं । कालेज के साथ-साथ आप शिक्षकों की समस्याओं से भी अवगत होते हैं तथा उनके समाधान में सक्रिय भागीदारी करते हैं । विभागीय संस्कृत परिषद् के कार्यकलापों में भी डॉक्टर त्रिपाठी की सक्रिय उपस्थिति रहती है । संस्कृत के नाटक, श्लोक स्मरण, उच्चारण, शास्त्र परिचय आदि से आप विद्यार्थियों को लाभान्वित करते रहते हैं । आपकी मधुर वाणी तथा स्मित हास सदैव हृदय में आमोद का संचार करते हैं ।