20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
डॉ0 सच्चिदानन्द पाठक
जन्म 01 फरवरी 1949
जन्म स्थान ग्राम - रौहारी, तहसील- बीकापुर, जनपद - अयोध्या
मोबाइल नंबर
9415001509
स्थायी पता
डॉ. सच्चिदानन्द पाठक , ३/४०४ विशाल खण्ड ३ , गोमती नगर , लखनऊ 226010

डॉ0 सच्चिदानन्द पाठक

डॉ0 सच्चिदानन्द पाठक का जन्म अयोध्या (पूर्व में फैजाबाद ) जनपद की तहसील बीकापुर के अन्तर्गत सुदूर ग्राम रौहारी में १ फरवरी १९४९ को श्री शिवराम  पाठक के पुत्र के रूप में हुआ था | बचपन में इनकी माता जी के देहावसान हो जाने के कारण आप का लालन पालन और प्रारम्भिक शिक्षा इनके ननिहाल बीकापुर के निकट तोरों दाराबगंज ग्राम में हुई थी | अपने आध्यात्मिक संस्कारों के फलस्वरूप इनका रुझान बचपन से गीता , रामायण तथा पौराणिक मूल ग्रंथों की ओर था, जिससे ये गीताप्रेस के ग्रंथों एवं उसके आध्यात्मिक प्रकाशन एवं पत्रिका ‘ कल्याण ‘ से आजीवन जुड़ गए |

प्राइमरी शिक्षा ( कक्षा ४ से ) ही सम्पूर्ण गीता , रामचरितमानस का पारायण तथा प्रमुख पुराणों, स्मृतियों एवं आगे चलकर योग, तंत्र, ज्योतिष एवं आयुर्वेद के ग्रंथों का स्वाध्याय / अनुशीलन आप द्वारा  अपने संत प्रकृति के पितामह श्री रामदास पाठक के सान्निध्य में किया गया  |

डॉ० पाठक अपने सम्पूर्ण कैरियर में प्रारंभिक कक्षाओं से स्नातकोत्तर तक प्रथम श्रेणी के साथ संस्कृत आदि विषयों में विशेष योग्यता के साथ सदैव सर्वोच्च स्थानों पर बने रहे और उन्होंने गुणों ( मेरिट ) के आधार पर अनेक पदक एवं राज्य छात्रवृत्ति / राष्ट्रीय छात्रवृत्ति एवं संस्कृत की विशेष छात्रवृत्ति प्राप्त की | अपनी विशेष अभिरुचि के कारण इलाहाबाद विश्वविद्यालय से गणिज्ज्योतिष, अंतरिक्ष-विज्ञानं और सापेक्षता सिद्धान्त विषय के साथ वर्ष १९७१ में गणित में तथा दर्शन विषय के साथ वर्ष १९७३ में संस्कृत में परास्नातक पूर्ण किया | इसके बाद शोध-छात्र  के रूप में यूं जी सी फ़ेलोशिप के सहयोग  से शान्तिनिकेतन एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय माध्यम से “ भारतीय दर्शन में जगत् (Universe)” पर आधुनिक वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड- संरचना (Cosmology) के विशेष परिप्रेक्ष्य में डॉ० पाठक ने  शोधकार्य एवं अध्यापन कार्य किया और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में लेक्चरर ( अब सहायक प्रोफेसर ) पद पर नियमित नियुक्त हो गए | संस्कृत (दर्शन ) में उक्त वैज्ञानिक दृष्टि से नये प्रकार के शोध कार्य  पर इन्हें डी० फिलo उपाधि प्रदान की गयी |

इसी बीच डॉ० पाठक का चयन लोक सेवा आयोग के माध्यम से १९७४ में प्रशासनिक सेवा में हो गया था  और वि. वि. से हटकर लोक सेवा में संलग्न हुए | देवरिया, गोरखपुर, उन्नाव, बरेली आदि में मजिस्ट्रेट, सी.डी.ओ. आदि प्रशासनिक पदों के अतिरिक्त संयुक्त निदेशक संस्कृति के पद पर १९८२ से १९८८ तक रहे इस बीच डॉ० पाठक ने प्राचार्य भातखंडे संगीत कॉलेज ( अब मानित वि. वि. ), निदेशक राज्य संग्रहालय , निदेशक अभिलेखागार आदि का पदभार संभाला | इसी दौरान संस्कृत एवं भारतीय संस्कृति के व्यापक आयाम में कलात्मक एवं भावात्मक पक्ष को विस्तार देते  हुए अखिल भारतीय रचनाकार शिविर , अन्तर्राष्ट्रीय रामायण संगोष्ठी जैसे प्रायोगिक उत्कृष्ट आयोजनों को सम्पन्न कराया |

भारतीय प्रशासनिक सेवा ( आई.ए.एस.) में कौशाम्बी, इटावा और बिजनौर जैसे जनपदों में जिला मजिस्ट्रेट, शासन में सचिव तथा मण्डलायुक्त रहते हुए डॉ० पाठक ने जहाँ अपनी  ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, न्यायिक एवं प्रशासनिक क्षमताओं की छाप जनमानस में छोड़ी , वहीँ इन्होंने अपने कार्यक्षेत्र में संस्कृत एवं भारतीय संस्कृति का  तंत्र, योग जैसे गूढ़ आयामों  एवं ज्योतिष, कर्मकांड एवं साहित्यिक गोष्ठियों जैसे लोकप्रिय आयोजनों द्वारा प्रसार किया जिसके लिए इन्हें अनेकशः सम्मानित भी किया गया |

वर्ष २००१ से २००५ तक उ.प्र. संस्कृत संस्थान तथा हिंदी संस्थान के निदेशक रहने के दौरान डॉ० पाठक का जीवन एवं व्यक्तित्व पूरी तरह से संस्कृत तथा संस्कृति को समर्पित रहा | इस अवधि में इनके द्वारा अनेक ग्रंथों के लेखन , सम्पादन एवं प्रकाशन के साथ- साथ विद्वानों के सम्मान , संस्कृत से जुड़े पर्वों के आयोजन , वेदों के ध्वन्यांकन, संरक्षण , प्रदेश व्यापी साहित्यिक आयोजन , प्रतियोगिताएं, संस्कृत सम्भाषण, ज्योतिष एवं कर्मकांड के प्रशिक्षण जैसे अनेक कार्यक्रम कराए गए |

वर्ष २००४ में ही सूरीनाम में आयोजित विश्व हिंदी सम्मलेन में भारत का प्रदेश की ओर से प्रतिनिधित्व करते हुए डॉ० पाठक द्वारा ३ व्याख्यान दिए गए जिसमे “ हिंदी को सर्वोच्च  विश्व स्तरीय भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने में संस्कृत का अवदान“ “हिंदी के प्रसार का सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य “ जैसे जिसमें संस्कृत भाषा का देवनागिरी लिपि के लिए वैज्ञानिक आधार , कर्मकांड, ज्योतिष आदि की विश्वव्यापी प्रकृति की पं. विद्यानिवास मिश्र के सान्निध्य में परिचर्चा हुई| इसी क्रम में हॉलैंड , फ़्रांस में प्रसार हेतु सहयोग भ्रमण किया |   

संतों , विद्वानों एवं अनेक साधक सिद्ध आध्यात्मिक विभूतियों से निरन्तर संपर्क बनाए रखना एवं आध्यात्मिक, सांस्कृतिक तथा साहित्यिक साधना डॉ० पाठक का व्यसन एवं दैनिक जीवन का अंग रहा है |

    डॉ० पाठक ने भारतीय दर्शन, संस्कृत वाङ्मय मे विज्ञान, वैदिक गणित तथा भारतीय गणित- ज्योतिष  जैसे विषयो पर ५ पुस्तकों का  लेखन /प्रकाशन किया जिसमे “ भारतीय दर्शन में जगत् : आधुनिक वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य “ (उ.प्र. शासन के माध्यम से १९८५ में प्रकाशित ) मुख्य रूप से शामिल  है | इनके द्वारा  संस्कृत , हिन्दी एवं भारतीय संस्कृति के ११५ ग्रन्थों का सम्पादन भी किया गया है | विभिन्न स्तरीय पत्रिकाओं एवं ग्रंथों में दर्शन, धर्मशास्त्र , वैदिक गणित , गणित - ज्योतिष , योग आदि गूद विषयों पर डॉ० पाठक के लेख प्रकाशित होते  रहे हैं और आकाशवाणी से वार्ताएं भी हुई हैं |


पुरस्कार

आप को समय- समय पर संस्कृत सेवा और जीवन में संस्कृति को चरितार्थ करने हेतु दुर्गा देवी संस्कृत सम्मान, पं. जयशंकर सेवा अलंकरण सम्मान, अवध विद्वत् सम्मान आदि जैसे अनेक सम्मानों से अलंकृत किया गया है |