20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
प्रोफसर हरिनारायण तिवारी
जन्म 01 अप्रैल 1957
जन्म स्थान ग्राम-पोखरभिण्डा, पत्रालय- जगन्नाथा, जिला गोपालगंज, बिहार
मोबाइल नंबर
9596750440
स्थायी पता
आई.टी.आई. टी के पीछे, रवीन्द्रजी डेरी के सामने, करौंधी, वाराणसी, उ.प्र. पि.कोड-221005
साभार : जगदानन्द झा

प्रोफसर हरिनारायण तिवारी

प्रोफसर हरिनारायण तिवारी का जन्म 1.4.1957 को ग्राम-पोखरभिण्डा, पत्रालय- जगन्नाथा, जिला गोपालगंज, बिहार, पिन कोड-841438 में हुआ।

आपने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, उ.प्र. से नव्य-व्याकरणाचार्य एवम् इंगलिश डिप्लोमा, पीएच.डी. की उपाधिप्राप्त की। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी.उ. प्र. से बासुरी वादन डिप्लोमा तथा कामेश्वरसिंह दरभंगा संस्कृतविश्वविद्यालय, दरभंगा, बिहार से डी.लिट् की उपाधि प्राप्त की। आप संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, नेपाली और उडिया भाषाविद् हैं।

आपने 7.8.1987 से 18.10.1994 तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्यापन किया,  जिसमें जनवरी 1992 से यू.जी.सी. आर.ए. एफ पद भी सम्मिलित है। शेष अतिथि अध्यापक के रूप में कार्यरत रहे। दिनांक 20.10.1994 से राष्ट्रिय-संस्कृत-संस्थान, नई दिल्ली में  क्रमशः लेक्चरर, उसी में 02. 1.2002 से रीडर तथा 1.1.2009 से प्रोफेसर पद को अलंकृत करते हुए दिनांक 31.3.2022 को लखनऊ परिसर से अवकाश प्राप्त किया। सम्प्रति राष्ट्रिय-संस्कृत-संस्थान अब केन्द्रीय संस्कत विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है।

प्रकाशित ग्रन्थ 1-शब्दब्रह्मपरब्रह्मणोस्तादात्म्यसमीक्षणम्, 2-भारतीयदर्शनेषु शब्दार्थयोरवधारणा। 3-व्युत्पत्तिवाद-तत्वबोधिनी। सम्पूर्ण-ग्रन्थ पर। 4-कातन्त्रव्याकरण, सम्पूर्णग्रन्थ पर व्याख्यान। अब तक भारत में मात्र 855 सूत्रों का ही प्रकाशन और व्याख्यान था। परन्तु बाडलियन-लाइब्रेरी, इंगलैण्ड से प्राप्त पाण्डुलिपि के आधार पर भारत में पहली बार 1448 सूत्रों का व्याख्यान आपके द्वारा ही किया गया है। इसमें अव्यय-प्रकरण, स्त्री-प्रत्यय-प्रकरण, कृदन्त-प्रकरण अतिरिक्त है। 'यायावरः' और 'संन्दावः' की सिद्धि न होने पर दो सूत्रों की रचना प्रो. तिवारी द्वारा करके प्रकरण की पूर्ति की गयी है। 'यायावरः' की सिद्धि के लिए 'यातेर्वरच्' और 'सन्दावः' की सिद्धि के लिए 'समि दुवः', इन दो सूत्रों की रचना की। 5-शिक्षासंग्रह, 34 शिक्षाओं का संग्रह का व्याख्यान, 6-पातञ्जलमहाभाष्य 85 आह्निक पर व्याख्यान, नव खण्डों में प्रकाशित । 7-लघुशब्देन्दुशेखर सम्पूर्ण ग्रन्थ पर व्याख्यान, आठ खण्डों में प्रकाशित। 8-वाक्यपदीय सम्पूर्ण ग्रन्थ पर व्याख्यान, पाँच खण्डों में प्रकाशित । 9-वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी उत्तरकृदन्त तक व्याख्यान, चार खण्डों में प्रकाशित। 10-श्रृङ्गारप्रकाश आरम्भ के छह प्रकाश का काम प्रकाशित। 11-ऋग्वेद की लुप्तशाखा शाङ्खायन पर भाष्यरचना 10 खण्डों में, 12-शतपथब्राह्मण चौदह काण्डों पर व्याख्यान पाँच खण्डों में पूर्ण। प्रेस को जाने वाला है। अब तक महत्त्पूर्ण 46 ग्रन्थ हो चुके हैं।

निबन्ध प्रकाशित-24, राष्ट्रिय एवम् अन्ताराष्ट्रिय स्तर पर व्याख्यान लगभग एक सौ।

प्रकाशनाधीन पुस्तकें-1-दयानन्दगालीपुराण। 2-पारिजातहरणमहाकाव्य का व्याख्यान, जो महाकवि उमापतिद्विवेदी द्वारा रचित 21 सर्गों में मूल मात्र है। 3-अव्ययीभावान्त प्रौढमनोरमा-शब्दरत्नसहिता का व्याख्यान ।  4-जैमिनीयब्राह्मण। सामवेद का ब्राह्मण-ग्रन्थ । यह आज तक किसी के भी द्वारा व्याख्यात नहीं है। इतना कार्य होने पर आगे अन्य भी वेद के ग्रन्थ हैं, जिसका व्याख्यान किया जायेगा। सम्प्रति व्याकरण का काम पूर्ण करने के पश्चात् आप वेद भगवान् का उद्धार में संलग्न हैं।

 


पुरस्कार

उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ से आपको विविध, पाणिनि, विशिष्ट एवं विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है ।