20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
सूर्यादेवी चतुर्वेदा
जन्म 01 अक्टूबर 1958
जन्म स्थान शूकरक्षेत्र
स्थायी पता
शूकरक्षेत्र कासगंज

सूर्यादेवी चतुर्वेदा

इनका जन्म 1 अक्टूबर सन् 1958 में प्रहलादपुर सोरों (शूकरक्षेत्र) जनपद-एटा (वर्तमान जिला कासगंज) में हुआ था। इनके पिताजी का नाम श्री लाखनसिंह आर्य (भूतपूर्व समप्रधान देवरी प्रहलादपुर) तथा माताजी का नाम श्रीमती त्रिवेणी देवी था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के ही विद्यालय में हुई थी। उच्च शिक्षा पूर्व मध्यमा से व्याकरण सूर्या पर्यन्त नित्यानन्द वेद महाविद्यालय, वाराणसी एवं पाणिनि कन्या महाविद्यालय वाराणसी से ग्रहण की। विद्यावारिधि (पी-एच.डी.) की उपाधि राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, जयपुर (राजस्थान) से प्राप्त की। इन्होंने अपनी सम्पूर्ण शिक्षा पूज्या आचार्या प्रज्ञादेवी एवं पूज्या आचार्या मेधा देवी जी के सान्निध्य में रहकर ‘संस्कृत, अष्टाध्यायी, महाभाष्य, निरुक्त, उपनिषद्, दर्शन, श्रौत व वैदिक सिद्धान्त आदि की गहन शिक्षा अर्जित की है।

मातृमान् पितृमान् आचार्यवान् की त्रिवेणी के सान्निध्य को प्राप्त करके आज आपके व्यक्तित्व की समाज में अलग पहचान है। इतने सुदृढ़ संकल्प व ओजस्वी लेखन कार्य करने वाला मानसिक ऊर्जा के स्रोत से सदा जीवन्त रहने वाला आपका निर्भीक सशक्त, सौम्य, सरल व गम्भीर व्यक्तित्व सर्वदा सत्य की तेज धार पर चलता है। यह आपके ही व्यक्तित्व की विशेषता है कि जो असत्य, असैद्धान्तिक, वेदविरूद्ध, असम्बद्ध प्रलापों पर आप अपने परम स्नेही, हितैषी अथवा पूज्यजनों से लौकिक या पारिवारिक सम्बन्धों में विच्छिन्नता की सम्भावना होने पर भी स्वार्थ की चिन्ता छोड़ ‘सखी से सून भला तुरन्त दे जवाब’ की उक्ति को चरितार्थ करती हैं। यह सिद्धान्त पर मर मिटने का गुण अन्यत्रे दुर्लभ है। आपकी गम्भीर मुखाकति सन्मार्ग की प्रेरक है। आपका जीवन ”आज्ञा गुरूणां ह्यविचारणीया“ इस सूक्ति की प्रयोगशाला है। आपका सदा प्रयास रहता है कि मेरे कष्ट, दुःख मेरी अमानत बनकर ही रहें व दूसरों तक केवल प्रसन्नता की सुगन्ध ही पहुँचे।

आपने अपने 36 वर्षों के अवैतनिक अध्यापन काल में अनेक विदुषियाँ तैयार की हैं जो भिन्न-भिन्न महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में सेवारत रहते हुए आपकी सुगन्धि को तीव्ररूप से दिग्-दिगन्त तक प्रसारित कर रहीं है। आपने अनेक मौलिक ग्रन्थों की रचना की है, जिनमें त्रिपदी गौ, वेदादि सिद्धान्त शंका समाधान, विद्वन्मिलनम् वेद समाधान समज्या आदि प्रमुख ग्रन्थों को उत्तर प्रदेश संस्कृत अकादमी द्वारा पुरुस्कृत किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त आपने अनेक संस्कृत निबन्धों की भी रचना की है। जैसे-का हि संस्कृतं नाम वाक्, अदितिं नाम वचसा करामहे, वर्तमानयुगे संस्कृताध्ययनस्य उपयोगः कल्पते न वा, राष्ट्रधर्मे यूनः दायित्वम्, छन्दसां वेदार्थे उपयोगित्वम् आदि हैं।

आन्तरिक गुणों के साथ ही लौकिक व्यवहार में भी आपके व्यक्तित्व में उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं। हर छोटी या बड़ी बातों की तह तक पहुँचने का स्वभाव, प्रत्येक कार्य को सुघड़ता प्रदान करने का कौशल, तत्परता, संचालन की क्षमता, अद्भुत निर्णायक क्षमता, गो भक्ति, अतिथि सेवा, प्रकृति प्रेम, वनस्पति ज्ञान, सम्पादन कार्य, समय पालन आदि अनेक विशेषताएँ आपके साथ जुड़ीं हैं। यदि एक पंक्ति में आपके व्यक्तित्व को प्रतिपादित करें तो हम कह सकते हैं कि ‘विकारहेतौ सति विक्रियन्ते येषां चेतांसि त एव धीराः। ऐसे असाधारण व्यक्तित्व को प्राप्त करके आपने अपने जीवन के यशोवर्धक ऐश्वर्य तथा पूर्णता को प्राप्त किया है। विद्वज्जन आधुनिक गार्गी, ऋषिका आपको सम्बोधित करते हैं।