20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
डॉ. रामकिशोर मिश्र
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जन्म 25 फरवरी 1939
जन्म स्थान सोरों-शूकरक्षेत्र
स्थायी पता
सोरों-शूकरक्षेत्र एटा

डॉ. रामकिशोर मिश्र

डॉ. रामकिशोर मिश्र संस्कृत ‘गद्य, पद्य, मिश्र’ रचनापटु अत्यन्त कुशल-कवि हैं। जहाँ ये उच्चकोटिक काव्यशास्त्रमर्मज्ञ रससिद्ध-कवि हैं, वहीं ये सर्वतन्त्र स्वतन्त्र धुरीण वैयाकरण भी हैं। इसी कारण इनकी काव्यसृष्टि में जहाँ ‘रसालपाक’ की माधुरी समुच्छलित होती हुई दृष्ट होती है वहीं तिङन्त और कृदन्तों के सहज प्रयोग इनके वैयाकरण-वैदुष्य की विजय-वैजयन्ती को फहराते हुए से स्पष्ट लक्षित होते हैं। यह बड़ा ही कमनीय ‘मणिकाञचन-संयोग’ है, अन्यथा तो केवल साहित्याचार्य कविजन ‘काव्यगमन’ में उद्भ्रान्त खगवत् रसावलम्बनार्थ ‘वल्गु-फल्गु’ जलपन्तः झटपताते हुए ही देखे जाते हैं। इसी कारण उनकी कविता में असमर्थभाषा वाली पदावली को देखकर पाठकों का चित्त विकलित हो उठता है, पग्न्तु हमारे समालोच्य कवि का रचना संसार ऐसा नहीं है। यहाँ ‘शाब्दिकवृत्तित्रय’ की समावर्तना किसी भी सदय-हृदय सहृदय को चमत्कृत किये बिना नहीं रहती है। पाठकों का मन जब तक सम्पूर्ण रचना आद्योपान्त पढ़ नहीं ली जाती, तब तक संन्तृप्त नही होता है। पं. जयदेव ने काव्य को परिभाषित करते हुए जिन आवश्यक तत्त्वों की काव्य में अनिवार्यता बतलाई है, वे हैं-

                           ”निर्दोषा लक्षणवती सरीतिर्गुणभूषणा।

                            सालङ्काररसानेकवृत्तिः काव्यनामभाक्।।

‘अदोषत्व, लक्षण-युक्तत्व, रीति, गुण, अलङ्कार-रससमन्वितत्व’ प्रभृति सभी मानो इस सुकबि की रचना में आकर इकट्ठे से हो गये हैं। इस महाकवि ने अपना स्वयं परिचय देते हुए लिखा हैं-

                          ”ओङ्कारमिश्रसम्भूतो होतीलालः पिता मम।

                           देवी प्रातः स्मरणीया, मातृत्वेन कलावती।।

                           ययोरेशेन मे देहे, रक्त वहत्यहर्निशम्।

                           संस्कृतकविता-सृष्टिस्ताभ्यां सादरमर्पिता।।

                           भारतस्योत्तरप्रदेश एटा जनपद सोरोंवामी,

                           काव्य-कथोपन्यासरचयिता शूकरक्षेत्रवासवान्।

                           होतीलाल-कलावत्योः सुतरामकिशोर मिश्र इह,

                           कवितानां संग्रहं कृत्वा कवितासृष्टिं रचितवान्।।

इसके अनुसार इनके पितामह श्री ओङ्कारमिश्र, पिता जी श्री होतीलाल और माता श्रीमती कलावती देवी थी। इनका जन्म उत्तप्रदेश के तात्कालिक जनपद ‘एटा’ और वर्तमानकालिक ‘कासगंज’ जो कि उस समय ‘एटा’ जनपद की ‘तहसील’ था और अब नवसृजित जनपद है, के ‘सोरों-शूकरक्षेत्र’ नगर में हुआ था। इनकी संस्कृत-व्याकरण, साहित्य सम्बन्धी सम्पूर्ण शिक्षा ‘सोरों’ और ‘कासगंज’ नगरों की उस समय अत्यन्त प्रसिद्ध संस्कृत-पाठशालाओं में हुई। इन्होंने उच्चशिक्षा सम्बन्धी ‘एम.ए.’ और ‘पी-एच.डी.’ उपाधियाँ अन्य विश्वविद्यालयों से प्राप्त की हैं। डॉ. मिश्र ने तात्कालिक मेरठ-जनपद के ‘खेकड़ा’ नामक नगर के ‘महामना मालवीय-महाविद्यालय’ में लम्बे समय तक ‘संस्कृतविभागाध्यक्ष’ के रूप में अपनी सेवाएँ देते हुए ‘सेवानिवृत्ति’ ग्रहण की है। वे अभी भी निरन्तर सुरभारती के समाराधन मे तत्पर हैं और निरन्तर चिन्तन-मनन प्रसूत सत्साहित्य का सृजन करते ही रहते हैं।

डॉ. मिश्र का जन्मस्थान ‘सोरों शूकरक्षेत्र’ जनपद-कासंगज (उ.प्र.) है। इनकी ‘जन्मतिथि’- फाल्गुन शुक्ला षष्ठी, दिन-शनिवार 1995 विक्रमीसम्वत् तदनुसार 25/फरवरी, 1939 इस्वी है। इनके पितामह, पिता और माता का नाम ऊपर लिखा जा चुका है इनके तीन भाई ‘गंगासहाय, चंद्रसहाय’ और फुल्लसहाय हैं। पत्नी श्रीमतीदेवी (सुशीला मिश्रा) हैं, जो हिंदी और संस्कृत में एम.ए. हैं। राजेशकुमार, गौरवकुमार और सौरभकुमार ये तीन सुयोग्य पुत्र हैं, जो राजकीयसेवा में हैं और उत्तमोत्तम परिवारों की बालाएं इनकी गृहणियाँ हैं। इनकी एक पुत्री है, जिसका नाम श्रीमती प्रतिभा मिश्रा हैं।

डॉ. मिश्र ने अब तक छोटे-बड़े लगभग 37 ग्रन्थों की रचना की है। इनमें से 12 ग्रन्थों पर ‘उत्तरप्रदेश-संस्कृत-अकादमी’ के द्वारा इन्हें पुरस्कृत किया जा चुका है तथा 07 (सात) ग्रन्थ ‘दिल्ली-संस्कृत-अकादमी’ से पुरस्कृत हुए हैं। ‘उत्तरप्रदेश-संस्कृत-संस्थान लखनऊ’ से इन्हें ‘व्यास-पुरस्कार’ और ‘विशिष्ट-पुरस्कार’ से सभाजित किया जा चुका है तथा ‘लोक-साहित्य-संस्कृत समिति’ ने इन्हें ‘आदिकविमहर्षिवाल्मीकि-पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया हैं। अनेक छात्र/छात्राएं इनके निर्देशन में शोधकार्य करके ‘पी-एच.डी.’ उपाधि ग्रहण कर चुके हैं। इनकी प्रकाशित ‘संस्कृतग्रन्थमाला निम्नवत् हैं-

1. काव्यकिरणावलिः 2. विद्योत्तमाकालिदासीयम् 3. श्रीगरुडध्वज-सपादशतकम् 4. किशोरकथावलिः 5. अङ्गुष्ठदानम् 6. बालचरितम् 7. एकाङ्कावलिः 8. वसन्ततिलकम् 9. अन्तर्दाहः 10. त्यागपत्रनिरासम् 11. पत्नीत्यागम् 12. एकाङ्कमाला 13. छन्दस्कलावती। अनेक रचनाएं अभी भी प्रकाशनाधीन हैं। डॉ. मिश्र सम्प्रति संस्कृत-साहित्य सर्जना में निरत हैं।