20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
डॉ. रामजियावन पाण्डेय
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जन्म 05 जून 1951
जन्म स्थान ग्राम पलिया मलावन
स्थायी पता
ग्राम पलिया मलावन अम्बेडकरनगर

डॉ. रामजियावन पाण्डेय

डॉ. रामजियावन पाण्डेय अम्बेडकरनगर के टाण्डा शहर के प्रतिष्ठित शिक्षणसंस्थान त्रिलोकनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य और पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष हैं। आपका जन्म अयोध्या व अम्बेडकरनगर की सीमा पर स्थित ग्राम पलिया मलावन में 5 जून, 1951 में हुआ था। आपके पिता स्व. श्री रामकृपाल पाण्डेय व माता स्व. श्रीमती नारायणी देवी पाण्डेय थीं। आपका विवाह सन् 1937 में आचार्य दुर्गादेवी के साथ हुआ। आपकी एकमात्र्ा सन्तान श्री महीप कुमार पाण्डेय लखनऊ हाईकोर्ट के अधिवक्ता हैं।

डॉ. रामजियावन पाण्डेय जी की प्रारम्भिक व माध्यमिक शिक्षा स्थानीय प्राथमिक पाठशाला व माध्यमिक विद्यालय उमरावाँ, भीटी, अम्बेडकरनगर (तत्कालीन फैजाबाद) में सम्पन्न हुई। आपने बी.ए. व एम.ए. की डिग्री अयोध्या जिले के प्रतिष्ठित साकेत महाविद्यालय से प्राप्त की। इन दोनों ही उपाधियों में आपने स्वर्णपदक प्राप्त किया। आपका शोधकार्य गोरखपुर विश्वविद्यालय से ‘वत्सराज कृत रूपकों का परिशीलन’ विषय पर सम्पन्न हुआ। आपका शोध मानव संसाधन विकास मन्त्रलाय के हिन्दी निदेशालय से सन् 1982 में प्रकाशित हुआ।

आपकी विशेष योग्यता का क्षेत्र साहित्य है, साहित्य में भी आप नाट्यशास्त्रे के अन्यतम विद्वान् हैं। आपके निर्देशन में 10 शोधार्थियों ने पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आपका शैक्षणिक अनुभव प्रायः 38 वर्षों का है।

संस्कृत, हिन्दी तथा अंग्रेजी भाषाओं पर आपका पूरा अधिकार है तथा साथ ही प्राकृत व पालि पर भी आप सिद्धहस्त हैं। आपके द्वारा प्रकाशित कुल 6 कृतियाँ हैं जिनमें तीन मौलिक व तीन सम्पादित हैं। इसके अतिरिक्त कई अन्य पुस्तकें अभी तक प्रकाशित नहीं कराई जा सकी हैं। यहाँ आपकी कुछ प्रमुख पुस्तकों के विवरण दिये जा रहे हैं-

‘कालंजर के विस्मृत रूपककार वत्सराज’ हिन्दी भाषा में लिखा हुआ प्रबन्ध ग्रन्थ है जिसे 1982 में प्रकाशित किया गया था। इसके साथ ही ‘व्यावहारिक-संस्कृतम्’, ‘संस्कृतभाषा’ तथा ‘भोजप्रबन्धः’ आपके द्वारा प्रकाशित प्रमुख ग्रन्थ हैं। आपने दुर्लभ नाट्यविधाओं समवकार, डिम, ईहामृगादि पर भी लिखा है आपके द्वारा 40 से अधिक शोधपत्र अन्तर्राष्ट्रिय सम्मेलनों में पठित व प्रकाशित कराये गये हैं जिनमें से ‘वत्सराजकृतरूपकेषु सम्प्राप्तमितिहाससूत्रम्’ को पंचम विश्व संस्कृत सम्मेलन वाराणसी में सन् 1980 में प्रस्तुत व प्रकाशित कराया गया था।

आप संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार से सम्बन्धित एस.जे.पी.एस. संस्थान, पलिया मलावन के सन् 2004 से अद्यावधि अध्यक्ष हैं, इसके साथ ही कोशल शोध जर्नल, अयोध्या के सन् 1980 से सदस्य भी हैं।

आपकी गुरु परम्परा में डॉ. हेमचन्द्र जोशी, डॉ. अतुलचन्द्र बनर्जी, आचार्य विश्वनाथ त्रिपाठी, आचार्य कालीदीन पाण्डेय, आचार्य सत्यनारायण सिंह, आचार्य हरिश्चन्द्र सिंह आदि प्रमुख रहे हैं। आपकी शिष्य परम्परा समृद्ध व सुदीर्घ रही है। प्रमुख शिष्यों में सरिता तिवारी (उत्तर प्रदेश सरकार में संयुक्त शिक्षा निदेशक), डॉ. अर्चना त्रिपाठी (प्राचार्या, रजत महाविद्यालय), सन्तराम सोनी (शिक्षा विभाग में संयुक्त निदेशक) आदि उल्लेखनीय हैं।

आपने डॉ. वी.राघवन प्राच्य विद्या पुरस्कार, शान्ति निकेतन, पूरा से सन् 1980 में प्राप्त किया। आपके विषय में कई बातें विशेष उल्लेखनीय हैं जिनमें से कुछ हैं-

आपने त्रिलोकनाथ महाविद्यालय में परास्नातक संस्कृत विभाग की स्थापना कराई। आप अम्बेडकरनगर जिले में संस्कृत से पीएच.डी. कराने वाले सर्वप्रथम आचार्य रहे। संस्था के प्राचार्य रहते हुए आपने संस्थान में बी.एड. विभाग की भी स्थापना कराई।

दुर्लभ नाट्यविधाओं डिम, समवकार व ईहामृग पर उपलब्ध एकमात्र महाकवि वत्सराज के ग्रन्थों त्रिपुरदाह, समद्रमंथन व रुक्मिणीहरण पर विस्तृत शोध कराया, साथ ही उनसे प्रेरित हो त्रिपुरदहनम् नामक डिम, पयोधिमथनम् नामक समवकार तथा रुक्मिणीपरिणयः नामक ईहामृग की रचना की। इन विधाओं में वत्सराज के बाद उपलब्ध ये द्वितीय ग्रन्थ हैं जिनका अभी तक प्रकाशन नहीं हो सका है। उक्त तीनों ही रचनाओं पर आपने तीन शोधछात्रों का निर्देशन करते हुए उपाधि प्रदान कराया। टाण्डा क्षेत्र में घर-घर, जन-जन संस्कृत प्रचार प्रसार योजना का सफल संचालन कराया। उ. प्र. संस्कृत संस्थानम् लखनऊ के सहयोग से संस्कृत प्रौढ शिक्षा पर एक सत्र आयोजित किया।