20 वीं शताब्दी की उत्तरप्रदेशीय विद्वत् परम्परा
 
आचार्य राधेश्याम चतुर्वेदी
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जन्म स्थान गांव ओबरहा
स्थायी पता
गांव ओबरहा ,आजमगढ़

आचार्य राधेश्याम चतुर्वेदी

आजमगढ़ जनपद के ओबरहा नामक गांव में आचार्य राधेश्याम चतुर्वेदी का जन्म सन् 1940 में हुआ। इनके पिता का नाम पं0 मुरली धर चतुर्वेदी एवं माता का नाम सकला देवी है। बाल्यावस्था से ही कुशाग्र बुद्धि आचार्य चतुर्वेदी की आरम्भिक शिक्षा अपने जनपद में हुई। सन् 1960 में संस्कृत अध्ययन के लिए ये वाराणसी आये और वहां सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्राी आचार्य तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक एवं स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर 1971 में डी.फिल शोध उपाधि भी प्राप्त की है।

आचार्य चतुर्वेदी 1971 ई. से ही काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्यापक के रूप में नियुक्त हुए और वहाँ निरन्तर अध्यापन कार्य करते हुए सन् 2002 में सेवानिवृत्त हुए। तदनन्तर आचार्य चतुर्वेदी ने महात्मागान्धी काशी विद्यापीठ से संस्कृत विभाग में दो वर्षों तक शास्त्रा विद्वान् के रूप में अध्यापन कार्य किया तथा वर्तमान में इमेएमिरेट्स प्रोफेसर के रूप में देव संस्कृति विश्वविद्यालय में भाषा विभागाध्यक्ष का कार्य करते हुए संस्कृत अध्यापन किया।

आचार्य चतुर्वेदी द्वारा प्रणीत और सम्पादित सोलह ग्रन्थ आयुर्वेद, वेदान्त, मीमांसा तथा इत्यादि विषयों में प्रकाशित हैं। इनके मार्ग निर्देशन में 23 शोध छात्रों ने पी.एच.डी. उपाधि प्राप्त की है और वर्तमान में पाँच छात्रा शोध कार्य किया।

आचार्य चतुर्वेदी के प्रकाशित ग्रन्थों में प्रमुख शिव दृष्टि, गायत्रीमहातन्त्राम्, तन्त्रालोक, महाकाल संहिता उ.प्र. संस्कृत संस्थान द्वारा पुरस्कृत हुए हैं।